पॉलिटिक्स इज नॉट ए गेमम

-अखिलेश बोले, इट इज ए सीरियस बिजनेस

- कई सवालों से परहेज, कार्यकर्ताओं को देते रहे नसीहत

- सपा को बताया नंबर वन पार्टी, रार से नुकसान पर चुप्पी

LUCKNOW: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का 'समझौता फार्मूला' पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं को रास नही आया तो एक बार फिर पार्टी और सरकार मुसीबत में घिरती दिखी। सड़क पर फैलते जा रहे आंदोलन को शांत कराने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मीडिया से मुखातिब हुए तो सबसे पहले उनकी जुबान से पिता के दिशा-निर्देशों का पालन करने की बात निकली। कार्यकर्ताओं को आंदोलन नहीं करने की नसीहत मीडिया के माध्यम से दी तो यह भी इशारा कर दिया कि चाचा (शिवपाल सिंह यादवव) का प्रदेश अध्यक्ष बनना तो उन्हें मंजूर है लेकिन उन्हें पीडब्ल्यूडी विभाग देना नहीं। अपनी बातों को दम देने के लिए बोले कि 'पॉलिटिक्स इज नॉट ए गेम, इट इज ए सीरियस बिजनेस'।

चाचा को बधाई देकर आया हूं

अखिलेश ने कहा कि नेताजी ने चाचा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, मैं अभी उन्हें बधाई देकर आया हूं। 'आई नेक्स्ट' ने जब उनसे पूछा कि उनके बीच क्या बातचीत हुई तो बोले कि मैं प्रदेश अध्यक्ष के घर नहीं, अपने चाचा के घर गया था। बसपा सुप्रीमो मायावती की बात उठी तो बोले कि अमर सिंह को अंकल की तरह आज से मायावती को बुआ बोलना भी बंद कर दूंगा।

वरना यह भी छिन सकता है।

कार्यकर्ताओं से अपील की कि पार्टी के फैसलों को लेकर किसी तरह का पोस्टर, बैनर या होर्डिग नहीं लगना चाहिए। बूथ स्तर पर जाकर सरकार और पार्टी के कामकाज के बारे में बताना है। अपनी रथयात्रा शुरू करने का समय बदलने का संकेत देते हुए बोले कि पहले चार अक्टूबर को कानपुर में मेट्रो का शिलान्यास करेंगे फिर सही वक्त देखकर रथयात्रा शुरू करेंगे। यूथ संगठनों का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बात भूलने को लेकर पूछे गये सवाल पर बोले कि इसकी ज्यादा चर्चा मत कीजिए, वरना यह भी छिन सकता है।

सेल्फ गोल नहीं कर सकता

अपनी सरकार के कामकाज का बखान करने के दौरान अखिलेश यह भी कहने से नहीं चूके कि समाजवादियों के बारे में कहा जाता है कि वे कभी एक साथ नहीं रह सकते। इस पूरे प्रकरण का फायदा विरोधी दल उठाएंगे। वे प्रचार में भी बहुत माहिर हैं। समाजवादियों के झगड़े से उन्हें अच्छा मौका भी मिल गया है। मैं फुटबाल का खिलाड़ी रहा हूं, सेल्फ गोल नहीं कर सकता। मैंने पॉलिटिक्स को कभी गेम नहीं समझा, मुख्यमंत्री बनने के बाद जाना कि यह 'सीरियस बिजनेस' है। नये जमाने का हूं तो उसी के मुताबिक काम भी किया। मौका मिला तो घोषणा पत्र में किए वादे पूरे करने के बाद और कई बड़े काम भी किये। 2012 में तो हम सिर्फ वादों के साथ जीते थे, इस बार तो तमाम काम करके चुनाव में जा रहे हैं।

इन सवालों से किया परहेज

- शिवपाल को पीडब्ल्यूडी क्यों नहीं, पूछने पर कहा कि इस बारे में मत बोलिए।

- रार से पार्टी को कितना नुकसान हुआ, यह पूछे जाने पर कोई जवाब नहीं दिया।

- टिकटों के बंटवारे में उनकी भूमिका के सवाल पर भी साधे रहे चुप्पी।

- गायत्री को दोबारा मंत्री बनाने पर बोले कि छोड़ो, ये हो गया।