लखनऊ (ब्यूरो)। प्रदेश में निकाले गए 2.5 करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर, जिसकी लागत लगभग 25000 करोड़ है के विरोध में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने गुरुवार को विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आर पी सिंह व सदस्य वी के श्रीवास्तव से मुलाकात की और एक लोक महत्व जनहित याचिका दाखिल की।

चार कलस्टर में टेंडर जारी

परिषद अध्यक्ष ने कहाकि वर्ष 2022-23 के टेरिफ आर्डर में विद्युत नियामक आयोग द्वारा रिवैम्प योजना की इस स्कीम को इसलिए खारिज कर दिया गया था क्योंकि इसका अप्रूवल विद्युत नियामक आयोग से नहीं लिया गया था। अब बिना अप्रूवल के केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के दबाव में स्मार्ट प्रीपेड मीटर का टेंडर जारी करना रेगुलेटरी प्रोसेस की अनदेखी है। परिषद अध्यक्ष ने कहाकि देश के कुछ निजी घराने उपभोक्ताओं के घर में लगे मीटर पर कब्जा करके निजीकरण के दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय से दबाव डालकर उत्तर प्रदेश में निकाले गए पूर्व में 4 जी स्मार्ट प्रीपेड मीटर के 8 कलस्टर के टेंडर को निरस्त करा कर 4 कलस्टर में जारी कराया गया। विद्युत नियामक आयोग चेयरमैन व सदस्य ने उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष को आश्वासन दिया कि पूरे मामले पर आयोग गंभीरता से विचार करेगा।

10 वर्ष तक चल सकते मीटर

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने विद्युत नियामक आयोग के सामने यह मुद्दा उठाया कि सभी बिजली कंपनियों ने इलेक्ट्रॉनिक मीटर के टेंडर के आदेश जारी किए हैं। बिजली कंपनियों द्वारा खरीदे गए मीटर की गारंटी 5 वर्ष है और इसकी आयु 10 वर्ष आंकी गई है। ऐसे में चलते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीटर उतारकर दूसरे स्मार्ट प्रीपेड मीटर कर्ज लेकर लगाना कहां की वित्तीय नीति है। परिषद अध्यक्ष का यह भी कहना है कि इसका भार सीधे उपभोक्ताओं की बिलिंग पर पड़ेंगे। अभी उपभोक्ताओं को टैरिफ में जो राहत मिली है, वे नए मीटर लगते ही समाप्त हो जाएगी। संभावना है कि नई व्यवस्था के बाद एक रूपये प्रति यूनिट तक बिजली बिल का भार आ सकता है।