लखनऊ (ब्यूरो)। 'मेरी उम्र महज साढ़े तीन वर्ष थी, न जाने कैसे मैं अपने माता-पिता से बिछड़ गई। पुलिस वालों ने मुझे अनाथालय भेज दिया। यहां से एक अमेरिकन लेडी ने मुझे गोद लिया और मैं अमेरिका पहुंच गई। पर वह लेडी मुझे अपनी बेटी मानने के बजाए मुझे टार्चर करने लगी। एक दिन उस लेडी की मौत हो गई, फिर पता चला कि मैं भारत के लखनऊ शहर से हूं। अब मैं अपने परिवार की तलाश में यहां की सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रही हूं, ताकि मैं अपने परिवार से मिल सकूं', यह दर्द अमेरिका की रहने वाली महागनी उर्फ राखी का है, जिसकी उम्र अब 26 साल हो गई है। अपनी दास्तां सुनाते ही राखी की आंखों से आंसू छलक पड़े और वह फफक कर रोने लगी।

2002 में राखी को लिया था गोद

राखी बताती हैं कि वह अमेरिका के मिनेसोटा में रहती हैं। वह अपने घर में मां क्रेयल के साथ रहती थीं, लेकिन उन्होंने कभी मुझे अपनी बेटी नहीं समझा। इस दौरान उनके साथ मारपीट भी खूब हुई। इसीलिए हाई स्कूल पूरा करने के बाद उन्होंने उनका घर छोड़ दिया था। वर्ष 2016 में क्रेयल की किसी कारण मृत्यु हो गई। वह घर पर थी, तभी उसे कुछ डॉक्यूमेंट मिले। पढ़ा तो वह हैरान रह गई, पता चला कि वह भारत के शहर लखनऊ की रहने वाली है और उसका नाम राखी है। वर्ष 2002 में क्रेयल ने उसको इसी शहर से अडॉप्ट किया था। इस फाइल में अडॉप्शन के दौरान की बचपन की फोटो भी लगी हुई थी। यह सब देख उन्हें बहुत दुख हुआ और अपने माता-पिता को तलाशने के लिए उन्होंने भारत आने का प्लान बनाया। पूरे सात साल पैसा जोड़ने के बाद वह अपने दोस्त क्रिस्टोफर के साथ लखनऊ आ गईं।

दोस्त के साथ अपनों को तलाशने आई राखी

अब लखनऊ की सड़कों पर राखी अपने परिवार की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रही है। अपनों की तलाश में जगह-जगह जाकर पूछताछ कर रही हैं। इनके साथ इनके दोस्त क्रिस्टोफर भी हैं। राखी को पता चला कि वर्ष 2000 में जब उसकी उम्र साढ़े तीन साल की थी तो वह लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर जीआरपी को लावारिस अवस्था में मिली थीं। जीआरपी ने उन्हें लखनऊ के मोती नगर स्थित लीलावती मुंशी बालिका बालगृह में रखवा दिया था। इसी में एडॉप्शन केयर सेंटर चलता है, जहां से वर्ष 2002 में उन्हें अमेरिका की रहने वाली क्रेयल नाम की महिला ने गोद ले लिया था, लेकिन उसे अमेरिका ले जाकर वह उसको मारती पीटती थी और गाली देती है। वह 21 साल बाद वापस लौटी है, ताकि अपनों को तलाश सके।

खंगाले रिकार्ड, नहीं मिला क्लू

राखी बताती हैं कि वह 8 सितंबर को अपने दोस्त क्रिस्टोफर के साथ भारत लौटी और लखनऊ आकर उन्होंने सबसे पहले चारबाग रेलवे स्टेशन जाकर देखा, वहां पर जीआरपी के रिकॉर्ड खंगाले लेकिन कुछ नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने लीलावती मुंशी बालिका बालगृह भी जाकर रिकॉर्ड देखे लेकिन वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी। अपनों को तलाशने में उन्हें दोस्त क्रिस्टोफर के साथ कैब ड्राइवर राजकमल पांडे का भी साथ मिला। वह वकीलों से भी मिल चुकी हैं। वह चाहती हैं कि उनका परिवार उन्हें देखे और उनसे संपर्क करे। वह कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनके भाई-बहन या माता-पिता उनसे संपर्क जरूर करेंगे।

7 साल से पैसे जोड़ रही हूं

राखी ने बताया कि अमेरिका में उन्होंने कैफे मैनेजर की नौकरी की। पेशे से वह एक आर्टिस्ट भी हैं और मॉडलिंग भी करती हैं। इसी से वह पैसा कमाती हैं। जो भी पैसे इन्होंने अब तक इकट्ठा किए थे। उन्हीं की मदद से वह लखनऊ लौटी हैं और यहां पर इंदिरा नगर के सेक्टर 18 में किराए पर कमरा लिया है। उनको भारत आए 18 दिन हो गए हैं, उनकी 9 अक्टूबर को अमेरिका के लिए वापसी की फ्लाइट है। वह कहती हैं कि अगर इस बीच उनके परिजन नहीं मिले तो वह फिर दोबारा लखनऊ आएंगी और यह उनके लिया तब तक जारी रहेगा, जब तक उनका परिवार नहीं मिलेगा।

अपनों को तलाशने में मिला दोस्त का साथ

राखी के दोस्त क्रिस्टोफर ने बताया कि करीब 6 साल पहले अमेरिका में उनकी मुलाकात महागनी से हुई थी। महागनी ने उनको बताया था कि उनका कोई भी नहीं है, उन्हें अपना असली नाम भी नहीं पता है और वह अपने जन्म की तारीख भी नहीं जानती हैं। सारी कहानी जानने के बाद उन्होंने महागनी को यह आईडिया दिया कि क्यों न वह अपने वतन लौटकर अपनों की तलाश करें। यहां पर वह अपनी दोस्त महागनी की इस संभव से सफर में उनका साथ देने के लिए यहां पर आए हैं।

वुमेन हेल्प लाइन में सुनाई फरियाद

बालगृह, जीआरपी, यूपीसीसीडब्ल्यू, 1090 समेत अन्य कई जगहों पर राखी अपनी फरियाद सुना चुकी है, लेकिन अब तक उसको किसी भी तरह की हेल्प नहीं मिली है। हर जगह जाने पर बस एक ही जवाब मिल रहा है कि इसके बारे में कोई रिकार्ड नहीं है। हालांकि, वुमेन हेल्पलाइन की तरफ से मंडलायुक्त को भी इसके बारे में जानकारी दी जा रही है, ताकि उच्च अधिकारियों के मामला संज्ञान में आने के बाद राखी के माता-पिता की तलाश तेज हो सके।