लखनऊ (ब्यूरो)। बच्चों को पालना व उनकी अच्छी परवरिश करने में उतना ही अंतर है जितना पढ़ाई करने और करियर बनाने में। यह तब जरूरी हो जाता है जब सोशल मीडिया के दौर में पैरेंट्स के साथ-साथ बच्चे भी एक्टिव हैं। उन्हें न केवल अच्छे बुरे की पहचान करानी चाहिए बल्कि उन्हें पहचानना भी जरूरी है। वर्किंग पैरेंट्स या किसी हाउसवाइफ पर पैरेंटिंग की अलग-अलग जिम्मेदारी होती है। आइए एक्सपट्र्स से जानते हैं कि पैरेंट्स को वर्चुअल वल्र्ड के इस दौर में किस तरह से परवरिश दी जाए, जिससे वे न केवल सक्सेसफुल हों बल्कि सोसाइटी में एक मिसाल भी बनें

वर्किंग व नॉन-वर्किंगपैरेंट्स की जिम्मेदारी

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के स्पेशल अभियान 'डार्क वेब' में सोशल मीडिया से बच्चों पर पढऩे वाले अच्छे व बुरे, दोनों पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की जा रही है। सोशल मीडिया के दौर में बच्चों की परवरिश कैसे की जाए और पैरेंट्स को क्या जिम्मेदारी निभानी चाहिए है, इसके लिए दो तरह की फैमिलीज को ली गईं। पहली वह जिसमें दोनों पैरेंट्स वर्किंग हैं और दूसरी वह जिसमें मदर हाउसवाइफ है और फादर जॉब वगैरह करता है।

न्यूक्लियर फैमिली में अच्छी पैरेटिंग सबसे जरूरी

कुछ दशक पहले तक फैमिली में तीन या चार बच्चे होना नॉर्मल था। इकलौते बच्चे को अक्सर बिगड़ैल और सामाजिक रूप से अयोग्य समझा जाता था, लेकिन समय के साथ सोच बदली। वहीं, महंगी एजुकेशन, वर्किंग मदर्स, न्यूक्लियर फैमिली कांसेप्ट में देर से मां बनना जैसे कई फैक्टर हैं जिनके चलते बच्चों के लिए पैरेटिंग का स्वभाव भी बदल रहा है। एक छोटे परिवार में बच्चे को जो परवरिश मिलती है वह उन परिवारों से अलग होती है जहां बच्चे को सिबलिंग्स यानी भाई बहन मिलते हैं। न्यूक्लियर फैमिली के लिए अलग चुनौतियों होती हैं। ऐसे में इकलौते बच्चे को सही माहौल और परवरिश मिले।

ऐसा माहौल दें जिससे सोशल इंटरेक्शन बढ़े

जर्नल ऑफ मैरिज एंड फैमिली में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पाया गया कि अकेले बच्चे के सोशल स्किल खराब होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप अपने इकलौते बच्चे को ऐसे माहौल दें जहां उनका सोशल इंटरेक्शन बढ़े। उन्हें कम उम्र से ही अपने साथियों के साथ बातचीत करने का मौका देना, उस कमी को दूर करने में मदद कर सकता है। अपनी उम्र के बच्चों के साथ जितना रहेंगे उतना ही शेयरिंग, केयरिंग, पेशंस जैसे सोशल स्किल्स सीखेंगे। उन्हें मोबाइल फोन देकर उनके बचपन को खराब न करें। जिससे आप का टाइम तो सेफ हो सकता है लेकिन बच्चे का बचपन छीन सकता है।

खुलकर हंसने का मौका दें

द बर्थ ऑर्डर बुक व्हाई यू आर द वे यू आर के लेखक डॉ। केविन लेमन के अनुसार, इकलौते बच्चे ही इतने तार्किक, विद्वान और सीधे सोच वाले हो सकते हैं कि वे काफी गंभीर प्रकृति के हो सकते हैं और ह्यूमर या हंसना, मजाक करने में असफल हो सकते हैं। भले ही किसी को सेंस ऑफ ह्यूमर सिखाया नहीं जा सकता, लेकिन पैरेंट्स एक अच्छा रोल मॉडल बन सकते हैं। जरूरत से ज्यादा स्ट्रिक्ट ना होकर, अपने बच्चे के साथ खुलकर हंसकर वह उन्हें एक ऐसा हेल्दी माहौल दे सकते हैं जिससे वह ज्यादा कॉन्फिडेंट फील करें।

इंडिपेंडेंट बनाने के लिए प्रोत्साहित करें

अगर बच्चा इकलौता है तो पैरेंट्स का पूरा टाइम और अटेंशन उन्हीं पर होता है। कई बार ऐसे बच्चों को जैसे स्पून फीडिंग की आदत पड़ जाती है। क्योंकि पैरेंट्स ही उनके लिए सब कुछ कर देते हैं को यह उन्हें डिपेंडेंट और आलसी बना सकता है। इसीलिए कम उम्र से ही बच्चे को इंडिपेंडेंट बनने के लिए प्रोत्साहित करें जैसे। खुद से नहाना, वार्डरॉब सेट करना आदि। पैरेंट्स को चाहिए कि वह हमेशा इंटरटेनर ना बनते हुए बच्चे को अधिक स्वतंत्र बनने में मदद करें और उसे कुछ जिम्मेदारी दें जिससे वह कुछ सीखे भी और इंगेज भी रहे।

बच्चे को बच्चा ही रहने दें

सिंगल बच्चे कई बार मिनी एडल्ट की तरह बिहेव करते हैं। ओपिनियन होना और बात है लेकिन पैरेंट्स के रिश्ते पर बोलना या मॉनिट्री संबंधी बातों में समय से पहले राय देना इस आदत को विकसित होने से रोकने के लिएए पैरेंट्स को उनके सामने आग्र्युमेंट से बचना चाहिए। बच्चे से सिर्फ उनसे रिलेटेड मामलों में उनकी राय पूछें और एहसास कराते रहें कि अभी वह बच्चे हैं।

खुद के साथ खुश रहने की आदत डालें

कई बार बच्चे को अकेले खेलता देख पैरेंट्स उन्हें ज्यादा सा ज्यादा समय देना चाहते हैं जो बहुत अच्छी बात है लेकिन अपने बच्चे को आपको मी टाइम की आदत भी डालनी होगी ताकि वह खुद की कंपनी एंजॉय करना भी सीखें। रीडिंग हैबिट हो या कोई हॉबी क्लास, जितनी जल्दी बच्चा खुद के साथ खुश रहना सीख लेगा वह आपके लिए भी अच्छा है और बच्चे के आने वाले कल के लिए भी।

ऑलराउंडर बनाने का प्रेशर न बनाएं

पैरेंट्स की उम्मीद अपने बच्चों से होना जायज है लेकिन अपनी इच्छाओं और उम्मीदों का भार उन पर ना डालें। उम्मीद वही रखें जो वास्तविक हों। ये चाहत रखना कि उनका इकलौता बच्चा हर फील्ड में ऑलराउंडर हो यह तो ठीक बात नहीं है। कई बार अकेले बच्चे यह प्रेशर खुद ही ले लेते हैं। उन्हें लगता है कि क्योंकि वह अपने पैरेंट्स की इकलौती संतान हैं तो उन्हें खुशी देने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की है। अपने बच्चे को बताएं कि लक्ष्य निर्धारित करना अच्छा हैए लेकिन यह भी बताएं कि लाइफ में अगर वह ऊंचाइयों को ना भी छू सकें तो भी आप उनसे उतना ही प्यार करेंगे।

बच्चों को ना बोलना भी जरूरी

बच्चे कुछ भी डिमांड करेंगे उन्हें मिल जाएगा लेकिन एज ए पैरेंट्स आपको बाउंड्री सेट करना जरूरी है। कई बार जिद्द पूरी ना होने पर पैर पटकना, गुस्सा दिखाना आम बात है लेकिन आपको एक प्रैक्टिकल अप्रोच अपनाते हुए उन मांगों को पूरा करने से बचना है जो आपको अनुचित लगती हैं। नहीं का मतलब नहीं है यह समझना और समझाना आप दोनों के लिए जरूरी है।

पेट से भी कराएं दोस्ती

अगर पैरेंट्स दोनों वर्किंग हैं और बच्चे का ज्यादा समय टीवी या फोन में बिजी रहता है और उसमें अकेलेपन की भावना पैदा न हो इसके लिए घर में पेट एनिमल जैसे कुत्ता या बिल्ली लाकर बच्चे के अकेलेपन को कम किया जा सकता है। ऐसा कर कंपनी भी मिलेगी और उसे डिजिटल उपकरणों से भी दूर रख सकता है।

बच्चों के साथ दोस्त की तरह रहें

बच्चों को दबाकर रखने का जमाना चला गया है। अब बच्चों को दोस्त की तरह रखने की जरूरत है। पैरेंट्स को पता होना चाहिए कि बच्चा क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है। समर्थ परिवार के लोगों को भी बच्चों की हर जरूरत को पूरा नहीं करना चाहिए। बच्चों को उनकी गैर जरूरी डिमांड पर बताना चाहिए कि ये अभी उनकी जरूरत नहीं हैं। बच्चों पर इंटेलीजेंस सर्विलांस रखें लेकिन सख्त निगरानी नहीं। अधिक सख्ती से बच्चे चकाचौंध भरी दुनिया की ओर आकर्षित हो सकते हैं।

-आभा भारद्वाज, सोशल वर्कर

बच्चों में ग्रूमिंग की प्रॉब्लम

इस समय बच्चों में ग्रूमिंग की प्रॉब्लम भी देखने को मिल रही है। संयुक्त परिवार का चलन खत्म हो रहा है और एकल परिवार में बच्चों की ठीक से परवरिश नहीं हो पा रही है। बच्चे आसानी से यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। बच्चों को अगर शुरू से समझाया जाए कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत तो इसका सकारात्मक परिणाम सामने आता है।

-डॉ। देवाशीष शुक्ला, मनोचिकित्सक, बलरामपुर अस्पताल

क्या कहना था जनता का

मोबाइल पर अब बच्चे गलत चीजों को देख रहे हैं। इसके लिए बच्चों से अधिक उनके पेरेंट्स का दोष है जो बच्चों के हाथ में मोबाइल देकर अपने काम में बिजी रहते हैं। इसका असर आने वाले दिनों में और बुरा देखने को मिलेगा।

-प्रतिमा रघुवंशी

इंटरनेट पर अश्लील सामग्री आसानी से उपलब्ध है। बच्चे भी इसे देख रहे हैं। सरकार ने ऐसी कई साइट्स को बैन कर दिया है लेकिन इसके बाद भी हजारों की संख्या में वेबसाइट चल रही हैं जो बच्चों को मानसिक रूप से दूषित बना रही हैं।

-अनिल कुमार

इंटरनेट आज समाज को बिगाडऩे का काम भी कर रहा है। सरकार ने कई अश्लील साइट्स को बंद कर दिया है लेकिन बच्चे नेट पर अश्लील इमेज तलाशते हैं और फिर वहां से आसानी से गंदी साइट्स पर चले जाते हैं। इस बारे में भी सोचना होगा।

-राजेश गुप्ता

मुझे लगता है कि इस समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है, जितना कई लोग समझ रहे हैं। पेरेंट्स अपने काम में बिजी हैं। इसमें उनका भी दोष नहीं है। वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे बिगड़ें। इस समस्या का समाधान गहन चिंतन के बाद ही संभव है।

-प्रतीक कुमार

सामाजिक स्तर पर बदलाव से ही इस समस्या का समाधान संभव है। नेट पर सिर्फ अश्लीलता ही नहीं है, जिससे बच्चे बिगड़ रहे हैं। अपराध के तरीके भी बच्चे वहां से सीख रहे हैं। बच्चों को आउटडोर एक्टिविटीज में बिजी रखकर ही इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

-शिवाकांत शर्मा

आज कल के पेरेंट्स अपने आप को कार्यों में इतना इतना व्यस्त रख लिए हैं कि उनको मालूम ही नहीं है कि उनका बच्चा कौन सी क्रिया है कर रहा है। बच्चे सोशल मीडिया मैं खुद को व्यस्त कर लेते हैं और इससे उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है। यही नहीं उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।

-सुमन पाल