- बड़ा ऑर्डर देने के नाम पर लगा रहे चूना

- दो व्यापारियों के साथ हो चुकी है हजारों की ठगी

pankaj.awasthi@inext.co.in

LUCKNOW:

केस: 1

हुसैनगंज के सरोजनी नायडू मार्ग निवासी अनीश गर्ग सेनेटाइजर कारोबारी हैं। 24 अप्रैल को अनीश के पास कॉल आई। कॉलर ने खुद को एयरपोर्ट पर तैनात सीआईएसएफ कमांडेंट जोरा सिंह बताया। उसने अनीश को बताया कि उनका नंबर उसने इंटरनेट से निकाला है। उसने 100 लीटर सेनेटाइजर खरीदने की इच्छा जताई और एडवांस पेमेंट 30 हजार रुपये देने के लिये पेटीएम क्यूआर कोड भेजा। कोड को स्कैन करते ही अनीश के अकाउंट से 30 हजार रुपये कट गए। उन्होंने फौरन अकाउंट को ब्लॉक कराया।

केस: 2

महानगर के विज्ञानपुरी निवासी हरेराम अग्रवाल मास्क व सर्जिकल आइटम्स कारोबारी हैं। बीती 25 अप्रैल को उन्हें भी कॉल आई। कॉलर ने खुद को लोहिया हॉस्पिटल का परचेज मैनेजर बताते हुए 5000 ट्रिपल लेयर मास्क की जरूरत बताई और एडवांस के तौर पर 50 हजार रुपये देने के लिये गूगल पे लिंक भेजा। साइबर क्राइम से अनजान हरेराम अग्रवाल ने लिंक पर क्लिक कर दिया। क्लिक करते ही उनके अकाउंट से 50 हजार रुपये कट गए। ट्रांजेक्शन अलर्ट का मैसेज देखते ही उनके होश उड़ गए। उन्होंने फौरन अकाउंट ब्लॉक कराकर पुलिस को घटना की सूचना दी।

यह दोनों मामले तो महज बानगी भर हैं, कोरोना संकट के दौरान जालसाज ठगी का कोई भी तरीका नहीं छोड़ रहे। पीएम आपदा राहत कोष की फर्जी यूपीआई आईडी हो या फिर सीएम राहत फंड से पांच हजार मिलने का झांसा देकर बैंक की डिटेल हासिल करना। जालसाज इस संकट काल में भी लोगों को चूना लगाने से बाज नहीं आ रहे। ऊपर लिखे दोनों मामलों में पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज कर ली लेकिन, उनका पता लगाना टेढ़ी खीर ही साबित होगा। दरअसल, जालसाज अपनी करतूत के लिये फेक आईडी का सिम यूज करते हैं, जिस वजह से उन तक पहुंचना पुलिस के लिये भी बेहद मुश्किल है।

क्यूआर कोड करते हैं डेवलप

साइबर एक्सपर्ट सचिन गुप्ता ने बताया कि वर्तमान में बाजार में कई क्यूआर कोड डेवलपर सॉफ्टवेयर बेहद मामूली कीमत में उपलब्ध है। इसी डेवलपर की बदौलत जालसाज मनचाहा क्यूआर कोड बना लेते हैं। इस क्यूआर कोड में पेमेंट की डिटेल हाइड होती है। जब कोई शख्स इस क्यूआर कोड को पेटीएम वॉलेट, गूगल पे आदि पेमेंट एप पर स्कैन करता है तो उसके अकाउंट से तुरंत रकम पार हो जाती है। सचिन गुप्ता ने बताया कि एक बार रकम निकल जाने के बाद उसे वापस लाना नामुमकिन है। वहीं, जिन नंबरों पर जालसाज वॉलेट बनाते हैं, वे सभी फेक आईडी पर होते हैं। लिहाजा, पुलिस उन तक पहुंचने में नाकाम रहती है।

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पेमेंट रिसीव करने के लिये नहीं होता कोई क्यूआर कोड

साइबर एक्सपर्ट सचिन ने बताया कि पेमेंट एप के लिये बनाया जाने वाला क्यूआर कोड सिर्फ पेमेंट के लिये ही बनाया जाता है। पेमेंट रिसीव करने के लिये कोई भी क्यूआर कोड नहीं बनता। इसी तरह गूगल पे के लिये भेजे जाने वाले लिंक भी पेमेंट देने के लिये होता है न कि, पेमेंट रिसीव करने के लिये। उन्होंने बताया कि किसी को भी अगर पेमेंट रिसीव करने के लिये कोई क्यूआर कोड भेजा गया है तो समझिये उसे भेजने वाला जालसाज है।

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ध्यान दें

-अनजान लोगों द्वारा भेजे गए किसी भी लिंक को क्लिक या क्यूआर कोड को स्कैन न करें।

-क्यूआर कोड व गूगल पे लिंक सिर्फ पेमेंट करने के लिये होते हैं रिसीव करने के लिये नहीं।

-ऑनलाइन ट्रांजेक्शन परिचित के साथ ही करें, अनजान लोगों की बातों में फंसकर कोई ट्रांजेक्शन न करें।

-अपरिचित लोगों के साथ सिर्फ फोन पर कोई कारोबार न करें।

वर्जन

जालसाज क्यूआर कोड या लिंक भेजकर पेमेंट करने की बात करें तो उस पर कतई रिएक्ट नहीं करना चाहिये। इसके जरिए जालसाज आपकी मेहनत की रकम को साफ कर सकते हैं। ऐसी कोई भी घटना होने पर तुरंत पुलिस को सूचित करें।

राहुल सिंह राठौर, प्रभारी, साइबर क्राइम सेल