लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में भारी संख्या में स्टूडेंट्स स्कूली बसों में सफर करते हैं, जिसके लिए परिवहन विभाग द्वारा कई मानक भी तय किए गये हैं। पर इसके बावजूद बसें बिना मानकों के राजधानी में दौड़ रही हैं, जबकि इन बसों में सफर करने वाले बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा स्कूल प्रबंधकों के हाथों में है। मानकों को दरकिनार कर दौड़ती स्कूली बसें अक्सर हादसों का शिकार भी हो जाती हैं, तब जाकर जिम्मेदार कुछ समय के लिए जागते हैं। हादसों के बाद कोई ठोस रणनीति न बनने का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। वहीं, आरटीओ भी महज चालान काटकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री का लेता है। ऐसे में न केवल कड़े नियम बनने चाहिए बल्कि समय-समय पर उनकी जांच भी सुनिश्चित कराई जानी चाहिए। पेश है अनुज टंडन की खास रिपोर्ट।

मानक विपरीत दौड़ रहीं बसें

आरटीओ में केवल बस और वैन ही स्कूली वाहनों के तौर पर रजिस्टर किए जा सकते हैं। राजधानी में करीब 800 रजिस्टर्ड स्कूली वाहन दौड़ रहे हैं। वहीं, स्कूली बसों की 26 मानकों पर सघन जांच की जाती है। जिसमें कई बार बसों में सभी मानक पूरे नहीं मिलते हैं, जिसके बाद इन बसों का चालान काट कर अधिकारी इतिश्री कर लेते हैं। बसें बच्चों के लिए सबसे सेफ साधन मानी जाती हैं, पर अक्सर ड्राइवरों द्वारा ओवर स्पीडिंग या फिर गलत तरीके से बसें दौड़ाने से हादसे भी होते हैं, जिसके चलते पूर्व में कई हादसे हो चुके हैं, जिसमें छात्रों के घायल होने के साथ मौतें तक हो चुकी हैं।

मानकों का नहीं होता पालन

राजधानी में पूर्व में हुए कई बस हादसों के बाद शासन द्वारा रजिस्ट्रेशन से पहले बसों के लिए 12 कड़े मानकों को तैयार किया गया था। जिसके बाद ही रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। जिसमें स्कूली बस में कंडक्टर ड्रेस में होने के अलावा स्कूल की टीचर, अगर गल्र्स सफर कर रही हैं तो खासतौर पर फीमेल टीचर का मौजूद होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा, कंडक्टर द्वारा बच्चों को सेफ्टी के साथ बस से उतारने से लेकर सड़क तक पार कराकर सुरक्षित घर तक पहुंचाना शामिल होता है। पर इसके बावजूद कई स्कूल इन नियमों को नहीं मानते। बस में कभी टीचर होता है तो कभी नहीं। वहीं, कंडक्टर भी बच्चे को बस से उतार कर छोड़ देता है। इसके अलावा कई बार बस ड्राइवर खतरनाक तरीके से बस चलाते हुए नजर आते हैं।

बसों में सीसीटीवी तक नहीं लगे

बसों में किसी प्रकार की छेड़छाड़ या अन्य घटना न हो, इसके लिए बसों में सीसीटीवी कैमरे और जीपीएस सिस्टम लगाने का भी नियम है। पर अधिकतर बसों में यह सिस्टम लगा ही नहीं है। स्कूल प्रबंधक भी इसे लगाने में कोई रुचि नहीं ले रहे। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा के साथ खेला जा रहा है। वहीं, पैरेंट्स भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे। इन कमियों को लेकर पैरेंट्स भी स्कूल प्रबंधक से कोई शिकायत नहीं करते हैं, जिसकी वजह से बिना जरूरी सिस्टम के बसें फर्राटा भर रही हैं। ऐसे में नियमों की अनदेखी से बच्चों की जिंदगी भी खतरे में पड़़ रही है।

ये हैं बसों के लिए मानक

-वाहन रजिस्ट्रेशन

-प्रदूषण और इंश्योरेंस सर्टिफिकेट

-जीपीएस एवं स्पीड गवर्नर

-फिटनेस सर्टिफिकेट

-गाड़ी में अग्निशमन यंत्र

-सीसीटीवी कैमरा

-ड्राइवर लाइसेंस

-पुलिस वैरीफिकेशन

-वाहन पर स्कूल का मोबाइल नंबर

-पुलिस हेल्पलाइन नंबर

क्या कहते हैं पैरेंट्स

स्कूल प्रबंधकों को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि बसों में सभी मानकों का पालन किया जा रहा है या नहीं। यह बच्चों की सुरक्षा का सवाल है।

-अंशिका सिंह

शासन-प्रशासन को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बिना मानकों के स्कूली बसों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगे। इससे बच्चों की जान खतरे में पड़ सकती है।

-रंजीता स्वरूप

विभाग कुछ समय अभियान चलाकर और चालान काटकर अपना काम पूरा कर लेता है, जबकि यह अभियान लगातार चलता रहना चाहिए, ताकि बच्चों का सफर बसों में सुरक्षित हो सके।

-विनीता सेठ

बसें बच्चों के लिए सबसे सेफ साधन मानी जाती हैं। पैरेंट्स को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा जिस बस में जा रहा है, उसमें सभी मानकों का पालन हो रहा है कि नहीं। अन्यथा की स्थिति में स्कूल प्रबंधक से शिकायत दर्ज करानी चाहिए।

-गौरव

स्कूली बसों में सीसीटीवी लगे हों और चालू अवस्था में भी हों, इस पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही ड्राइवर और कंडक्टर को समय-समय पर नियमों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।

-डॉ। गौरव विशाल श्रीवास्तव

क्या बोले जिम्मेदार

समय-समय पर स्कूली वाहन के विरुद्ध अभियान चलाया जाता है, जिसमें मानक विरुद्ध मिलने पर कार्रवाई की जाती है। अभी सभी बसों में सीसीटीवी नहीं लग पाया है। इसके लिए स्कूल प्रबंधकों को लिखा गया है।

-संदीप कुमार पंकज, आरटीओ, प्रवर्तन