लखनऊ (ब्यूरो)। डॉक्टर बनने के लिए हर साल प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में स्टूडेंट्स दाखिला लेते हैं। पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की कमी बड़ी समस्या बनती जा रही है। प्रदेश के यूनानी कॉलेजों में खासतौर पर फैकल्टी से लेकर अधिकारियों तक की कमी है। यहां 60 फीसदी तक फैकल्टी कम है, जबकि निदेशालय में भी अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्या काफी कम है, जिसका खामियाजा स्टूडेंट्स भुगत रहे हैं। हालांकि, अधिकारी जल्द ही कमी दूर करने का दावा कर रहे हैं।

निदेशालय में भी अधिकारियों की कमी

प्रदेश में करीब 14 वर्ष पूर्व यूनानी निदेशालय बनाया गया था, ताकि यूनानी शिक्षा और पद्धति को बढ़ावा दिया जा सके। पर आलम यह है कि प्रदेशभर के सभी कॉलेजों व यूनानी अस्पतालों का संचालन करने वाले निदेशालय में निदेशक समेत कई अधिकारी ही नहीं हैं। यहां तक कि कार्यवाहक निदेशक के सहारे विभाग का काम चलाया जा रहा है, जबकि निदेशालय में अपर निदेशक, उप निदेशक और प्रशासनिक अधिकारी समेत कई अन्य महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं, जिससे कामकाज भी प्रभावित हो रहा है।

फैकल्टी से लेकर स्टाफ तक कम

प्रदेश में दो राजकीय यूनानी मेडिकल कॉलेज और 13 निजी समेत कुल 15 यूनानी मेडिकल कॉलेजों का संचालन हो रहा है। इसमें सरकारी कॉलेजों में बीयूएमएस की 150 सीटें और निजी में 730 सीटें मौजूद हैं। जिनपर दाखिले के लिए हर साल स्टूडेंट्स आवेदन करते हैं। पर इन दोनों तरह के सरकारी कॉलेजों में मानकों के अनुरूप फैकल्टी से लेकर स्टाफ तक नहीं है। यहां प्रोफेसर के 28 पदों में 10 खाली हैं, जबकि रीडर के 34 पदों के सापेक्ष 14 कार्यरत हैं और 45 प्रवक्ता के सापेक्ष 34 पद खाली हैं। संकाय वर्ग में 109 पदों में मात्र 43 टीचर्स ही कार्यरत हैं।

पढ़ाई से लेकर रिसर्च तक पर असर

इन कॉलेजों में फैकल्टी आदि की कमी का असर स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर तो पड़ ही रहा है। साथ ही, रिसर्च जैसे काम भी प्रभावित हो रहे हैं। जिसकी वजह से स्टूडेंट्स को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

स्टाफ की कही कोई कमी नहीं है। संविदा पर पद भरे जा रहे हैं।

-डॉ। अब्दुल वहीद, कार्यवाहक निदेशक, यूनानी विभाग