- बैंकों के पास नहीं पहुंच रही है नयी करेंसी

- पुराने और गले सड़े नोट भी ग्राहक लेने को मजबूर

LUCKNOW : बैकों में करेंसी शॉर्टेज बरकरार है। नये नोट आ नहीं रहे, दो हजार रुपये की करेंसी और सिक्के ग्राहक लेने से इंकार कर रहे और बैंकों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं। हालत यह हो गयी है कि महीनों पहले नोटों को कंडम घोषित कर आरबीआई को वापस भेजे जा चुके नोट बैंकों के पास दोबारा आ रही हैं और उन्हें ग्राहकों को दिया जा रहे हैं। ग्राहकों के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं है। नोट की किल्लत की वजह से मंगलवार को बैंकों में सन्नाटा रहा। वहीं अधिकतर एटीएम भी खाली नजर आये।

एटीएम में नहीं हैं पैसे

मंगलवार को भी अधिकतर एटीएम में पैसे नहीं पहुंच पाये। यहां तक कि एसबीआई की अधिकतर शाखाओं में भी घंटों एटीएम को कैश के लिए इंतजार करना पड़ा। अशोक मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांच के बाहर लगे एटीएम में सिर्फ एक बार ही कैश लोड किया जा सका, जो कुछ घंटों में ही खाली हो गया। वहीं शहर के ज्यादातर एटीएम कैश क्राइसेस से जूझते रहे।

डिपॉजिट मशीन भी 'हांफ' रही

ऐसा नहीं है कि लोग सिर्फ बैंक में पैसे निकालने ही नहीं जमा करने भी जा रहे हैं। पैसे जमा करने के लिए भी बैंकों ने अलग फार्म की व्यवस्था की है। जिसमें आईडी के साथ आपको पूरी डिटेल भरनी होती है। इसके लिए भी बैकों में लाइन लग रही है। साथ ही एटीएम में भी डिपॉजिट मशीन के सहारे भी पैसे जमा हो रहे हैं, लेकिन एक लिमिट के बाद डिपॉजिट मशीनें भी जवाब दे जा रही हैं।

और बन गय फर्जी दिव्यांग

लोग थोड़ी सुविधा के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे। कोई लाइन में रियायत पाने के लिए अपने घर में बुजुर्गो का वॉल्कर उठा लाया और विकलांग बन गया और कोई बैसाखी पर कैश एक्सचेंज कराने आ गया। नोट बंदी ने लोगों को क्या क्या बनने पर मजबूर कर दिया है। ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मेन ब्रांच में। यहां एक व्यक्ति कैश निकालने के लिए अपने बुजुर्ग पिता का वॉल्कर उठा लाया। वॉल्कर की वजह से उसे बैंक कर्मियों ने भी विकलांग समझा और उसे आगे जाने की जगह दे दी। लेकिन जब वह पैसे लेकर लौटा तो वाल्कर को हाथ में उठाये हुए वह आराम से बाहर निकला और गाड़ी में वाल्कर को रखा, स्टार्ट की और चला गया। लाइन में खड़े बाकी लोग ना सिर्फ उसे कोसते नजर आये बल्कि यह भी कहते रहे कि इसकी वजह से अब आरबीआई कहीं विकलांगों के भी सर्टिफिकेट की कॉपी न मांगने लगे।