लखनऊ (ब्यूरो)। टमाटर के जल्दी पकने से उसको स्टोर करने में होने वाली परेशानी को दूर करने का उपाय शहर स्थित सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने निकाला है। वैज्ञानिकों ने टमाटर के जीन्स में बदलाव करके टमाटर के पकने के समय में पांच से दस दिन की बढ़त की है। वैज्ञानिक एक ऐसी वैरायटी की तरफ आगे बढ़ रहे हैं जिसे ज्यादा समय तक स्टोर किया जा सके। वैज्ञानिकों का कहना है कि अमूमन फूल आने से लेकर फल व सब्जी के पकने में 50 दिन का समय लगता है, लेकिन हम ट्रांसजेनिक टेक्नीक के जरिए टमाटर में इस समय को बढ़ाने में सफल हुए हैं। संस्थान अब क्रिस्पर कैस टेक्नोलॉजी के जरिए पकने के समय को बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ा रहा है। जल्द ही बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे।

एबसेसिक एसिड हॉर्मोन से पड़ता है प्रभाव

एनबीआरआई के चीफ साइंटिस्ट डॉ। अनिरुद्ध साने के मुताबिक, हमने यह शोध टमाटर की दो प्रजातियों एल्साक्रेट व अर्काविकास पर किया है। इन दोनों पौधों में हमने हॉर्मोनल रेगुलेशन देखा। आमतौर पर फलों व सब्जियों में एथिलीन के कारण राइपनिंग होती है। लेकिन टेक्नीक का इस्तेमाल कर ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर से हमें जानकारी मिली कि एथिलीन से पहले एब्सिसिस हॉर्मोन राइपनिंग में अहम रोल निभाता है। इस ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर या जीन को बदलने से एबसेसिस हॉर्मोन के लेवल को कंट्रोल किया जा सकता है। एबसेसिस के कंट्रोल होते ही एथिलीन की साइकल को भी डिले किया जा सकता है। अब क्रिस्पर कैस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इसी फैक्टर को बदलने पर काम चल रहा है।

पांच से दस दिन बढ़ जाएगी समय सीमा

डॉ। साने ने बताया कि इस शोध के जरिए टमाटर के पकने में पांच से दस दिन का अंतर देखा गया। अमूमन फूल निकलने से लेकर फल आने तक 40 दिन का समय लगता है। हरे रंग से लाल रंग होने में दस दिन का समय पौधा लेता है। इस टेक्नोलॉजी के जरिए इस सीमा को 55 से 60 दिन तक किया जा सकता है।

इससे पहले भी बना चुकी हैं ट्रांसजेनिक प्रजातियां

एनबीआरआई के साइंटिस्ट टमाटर से पहले दो ट्रांसजेनिक वैरायटी पर काम कर चुके हैं। चावल में आर्सेनिक की मात्रा को कम करने के लिए फफूंद के अनुवांशिक गुणों का इस्तेमाल कर चावल की नई ट्रांसजेनिक प्रजाति विकसित की थी। वहीं, संस्थान कॉटन पर भी ट्रांसजेनिक किस्म डिवेलप करने की कोशिश कर रहा है।

अभी मुश्किल है राह

आनुवांशिक संशोधित फसलों में जीन में बदलाव होते हैं, जिसे कई विशेषज्ञ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं। इसलिए ट्रांसजेनिक या आनुवांशिक संशोधित फसलों पर देश में रोक है। जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी के विकसित किए बीटी बैंगन को मान्यता देने के लिए भारत की जैव प्रौद्योगिकी संस्था में मामला विचाराधीन है। वैज्ञानिकों का इस बाबत कहना है कि सरकार शोध अप्रूव कर आज्ञा देती है। इन किस्मों से किसानों और आम लोगों को काफी फायदा मिलेगा। फिलहाल देश में कपास की एक किस्म बीटी कॉटन को ही मान्यता मिल पाई है।