लखनऊ (ब्यूरो)। आजकल लोगों में लिवर से जुड़ी समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिसके चलते लिवर ट्रांसप्लांट की संख्या भी बढ़ रही है। लिवर ट्रांसप्लांट का खर्च निजी अस्पतालों में बेहद महंगा होता है। हालांकि, लिवर ट्रांसप्लांट अब पीजीआई और केजीएमयू में बड़ी संख्या में हो रहा है। जहां इसका खर्च आधे से भी कम होता है। वहीं, सक्सेस रेट भी 90 फीसदी से ऊपर है।

10-15 लाख का खर्च

राजधानी के संजय गांधी पीजीआई में अबतक 20-25 लिवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। निदेशक डॉ। आरके धीमन के मुताबिक, संस्थान में ट्रांसप्लांट का खर्च 10-15 लाख रुपये आता है, जो निजी अस्पताल के मुकाबले बेहद कम है। लिवर ट्रांसप्लांट की संख्या बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा है। वहीं, केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ। सुधीर सिंह ने बताया कि संस्थान में अबतक 21 सफल लिवर ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। सक्सेस रेट 90 फीसदी से ऊपर है। वहीं, लोहिया संस्थान में अभी लिवर ट्रांसप्लांट शुरू नहीं हो सका है।

दो तरह से होता है ट्रांसप्लांट

पीजीआई निदेशक प्रो। आरके धीमन के मुताबिक, लिवर की बीमारी जब आखिरी दौर में होती है यानि मरीज के 50 फीसदी से भी कम बचने का चांस होता है, उस स्थिति में लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है, जो दो तरह से की जाती है। पहला, मरीज को कोई सगा रिश्तेदार जैसे पैरेंट्स, बच्चा, पति या पत्नी आदि अपना आधा लिवर दे सकता है। दूसरा, कैडेवरिक यानि मृतक से लिवर मिला हो। वहीं, ट्रांसप्लांट के लिए डोनर का मैच होना, ब्लड ग्रुप मैच करना भी जरूरी है। इसके अलावा, काउंसलिंग टीम भी अपना काम करती है, ताकि डोनर या मरीज पर मानसिक दबाव ज्यादा न हो।