LUCKNOW NEWS: लखनऊ (ब्यूरो)। शहर में आए दिन लावारिस लाशें मिलती हैं और पोस्टमार्टम के बाद भी ऐसे कई मामलों में मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता है। ऐसे ही केसों को हल करने के लिए अब फोरेंसिक टीम के डॉक्टरों के पैनल के सामने शवों का पोस्टमार्टम किया जाएगा। इससे मौत का कारण तो सामने आएगा ही साथ ही पेंडिंग केसों की संख्या भी कम होगी।

विवेचकों पर रहती है आफत
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दो साल में शहर के अलग-अलग हिस्सों से 450 के तकरीबन अज्ञात डेडबॉडी मिली हैं। अधिकतर केसों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लेट तलीफी के चलते विवेचक हत्या और हादसे के बीच फर्क तय नहीं हो पाता है। जिसका असर मुकदमों पर असर पड़ता है। मुकदमे लंबित हो रहे हैं और विवेचकों को फटकार मिलती है।

आठ डॉक्टरों का पैनल
अधिकारियों के मुताबिक, पोस्टमार्टम हाउस में रोज 30 से अधिक डेडबॉडी आती हैं। इनमें अज्ञात डेडबॉडी भी होती हैं। ऐसे में इन डेडबॉडी को फ्रीजर में रखकर इनके परिवारों को इंतजार किया जाता है। जब परिवार का सदस्य नहीं आता है तो पोस्टमार्टम कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में मौत के कारणों का भी पता नहीं चलता है। जिसे देखते हुए फोरेंसिक टीम के आठ डॉक्टरों की टीम का गठन किया गया है।

ये मिलेगा फायदा
संदिग्ध मौत या हत्या में पोस्टमार्टम होने के बाद भी कुछ नमूने सुरक्षित रखे जाते हैं। शरीर के हर जरूरी अंग की जांच कर मौत की असल वजह जानने का प्रयास होता है। फोरेंसिक डॉक्टरों के जांच के फायदे की बात करें तो किसी भी वारदात के अनुसार ही कार्रवाई होती है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई जहर से मरता है तो इसमें सामान रखने के कंटेनर्स को भी लिया जाता है। साथ ही गैस्ट्रिक लावास नाम का एक नमूना लिया जाता है। इससे मामले की गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया जाता है।

कई सालों तक रिपोर्ट पेंडिंग
कई केस ऐसे होते हैं, जिनमें हत्या की आशंका होती है। पीएम में हत्या का कारण सामने नहीं आने पर विसरा फोरेंसिक लैब भेजा जाता है। एक आंकड़ों के मुताबिक, विसरा के पांच हजार से अधिक नमूने जांच के इंतजार में अटके हैं, ये लखनऊ के अलावा, सीतापुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली और लखीमपुर खीरी आदि कई शहरों के केस हैं। सूत्रों का कहना है कि हाई प्रोफाइल मामलों में अधिकारियों के हस्तक्षेप से जांच हो जाती है।

यहां रहती है जांच अधूरी
- शवों के फिंगर प्रिंट नहीं लिए जाते हैं
- विज्ञापन देने की जगह खबर प्रकाशित करने पर फोकस
- अधिकतर शवों के डीएनए सैंपल नहीं लेते
- कपड़े तक संभाल कर नहीं रखे जाते
- ऐसे शवों के फोटो व अन्य जानकारी नहीं दी जाती

इसे भी जानें
- 450 से अधिक आ चुक हैं केस
- 01 डेडबॉडी हर दूसरे दिन मिल रही
- 05 हजार से ज्यादा विसरा रिपोर्ट पेंडिंग
- 15 से 20 विसरा औसतन रोज आते हैं