- हीनियस क्राइम के बढ़े केस, हत्या, रेप व हत्या के प्रयास के मामले

- लाइफ स्टाइल और इंटरनेट प्रोग्राम के चलते बदल रही मानसिकता

द्यह्वष्द्मठ्ठश्र2@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

रुष्टयहृह्रङ्ख : टीन एजर्स में क्राइम की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकार्ड के अनुसार यह आंकड़ा एक दशक में एक प्रतिशत से 28 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह रिकार्ड बदलते परिवेश और आधुनिकता की चकाचौंध के चलते देखा जा रहा है। दो दिन पहले ही मडि़यांव थाने में एक 15 वर्ष के बच्चे ने अपने 13 साल के साथी की गला दबाकर हत्या कर दी। यहीं नहीं हत्या के बाद शव को ईट से नीचे दबाकर भाग निकला। हत्या के पीछे मां से सिगरेट पीने की शिकायत का सच सामने आया था। इससे पहले भी राजधानी में नाबालिग हत्या, हत्या का प्रयास और रेप जैसे जघन्य वारदात को अंजाम दे चुके हैं। पारा स्थित संप्रेक्षण (बाल सुधार गृह) में सौ से ज्यादा किशोर हैं, जिसमें कई गंभीर अपराध के मामले में पकड़े गए।

गंभीर वारदातों एक नजर

वर्ष 2018

3 जून- इंदिरानगर के फरीदीनगर इलाके में 6 वर्षीय एक लड़की को उसके घर केचार नाबालिग युवकों ने अगवा कर लिया और फिर उसके साथ गैंग रेप किया।

6 अप्रैल- बक्शी का तालाब के मदारीपुर गांव में 12 साल की एक लड़की का कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया और चाकू से गोद गोद कर उसकी हत्या कर दी गई। दोनों को गिरफ्तार किया।

28 मार्च- 16 वर्षीय एक युवक ने 12 वर्षीय नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया और इटौंजा में सड़क किनारे फेंकने से पहले उसे बंधक बनाकर उसके साथ रेप किया।

वर्ष 2017

20 दिसंबर- 16 वर्षीय एक युवक ने 12 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ रेप किया, जब वह मलिहाबाद में नचुरल कॉल अटेंड करने जा रही थी।

3 अक्टूबर- बख्शी का तालाब (बीकेटी) में 15 और 16 साल की उम्र के दो नाबालिगों ने 15 साल की लड़की के साथ रेप किया गया।

20 जुलाई- बंथरा में सात साल की बच्ची से बलात्कार और हत्या के आरोप में दो नाबालिग भाइयों को गिरफ्तार किया गया।

11 जून- आलमबाग में 16 वर्षीय लड़की का तीन नाबालिग लड़कों ने गैंगरेप किया।

11 जून- निगोहां में 3 किशोरियों ने 8 वर्षीय बच्ची का रेप किया। तीनों गिरफ्तार।

क्या कहता है नेशनल क्राइम रिकार्ड

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के वर्ष 2014 के आंकड़ों के अनुसार कुल 38,455, वर्ष 2015 के अनुसार 33,433 व वर्ष 2016 के अनुसार 35,849 मामले किशोर अपराध के रजिस्टर्ड किए गए। भारत में साल 2011 की जनगणना के अनुसार किशोरों की संख्या 24 करोड़ से अधिक है। यह आंकड़ा देश की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा है।

लड़कियों के मुकाबले लड़कों में ज्यादा गुस्सा

एक रिपोर्ट के अनुसार बच्चों में ग़ुस्से की प्रवृत्ति उनकी उम्र के अनुसार बदलती जाती है। वर्ष 2014 में इंडियन जर्नल साइकोलॉजिकल मेडिसिन की रिसर्च के अनुसार लड़कों में लड़कियों के मुकाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिलता है। इस रिसर्च में शामिल लोगों में जिस समूह की उम्र 16 से 19 वर्ष के बीच थी उनमें ज्यादा ग़ुस्सा देखने को मिला जबकि जिस समूह की उम्र 20 से 26 वर्ष के बीच थी उनमें थोड़ा कम ग़ुस्सा था। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि किशोर उम्र के बच्चों में युवा अवस्था के मुकाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिलता है। इसी तरह लड़कों में लड़कियों के मुकाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिलता है। हालांकि इसी रिसर्च के अनुसार 12 से 17 वर्ष आयु वर्ग की लड़कियों में करीब 19 प्रतिशत लड़कियां अपने स्कूल में किसी न किसी तरह के झगड़े में शामिल मिलीं हैं।

ऐसे पहचानें किशोर का बदलता व्यवहार

- अगर बच्चा स्कूल जाने से आना कानी करने लगे

- स्कूल से रोजाना अलग अलग तरह की शिकायतें आने लगे

- साथी बच्चों को गाली देना, गलत संगत में बैठना

- किसी एक काम पर ध्यान ना लगा पाना।

- हर समय मोबाइल व इंटरनेट पर चिपके रहना

पैरेंट्स इसका रखें ध्यान

- बच्चों पर बहुत अधिक ध्यान देने का समय है, ऐसे हालात में बच्चों को वक्त देना बहुत जरूरी हो जाता है

- उसे बाहर घुमाने ले जाना चाहिए, उसके साथ अलग अलग खेल खेलने चाहिए।

- बातें करके उसकी समस्या जानकर उसका समाधान करना चाहिए।

- बात बात में उसकी गलतियां नहीं निकालनी चाहिए

यह है किशोर अपराध की वजह

- माता पिता में आपसी मनमुटाव व लड़ाई झगड़े के चलते तनाव पूर्ण होते रिश्ते

- एकल परिवार, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, सरलता से उपलब्ध पोर्नोग्राफी बच्चों को गलत दिशा में जाने के लिए प्रेरित करती हैं।

- अपराधी भाई बहन व परिजनों का होना, माता पिता का तिरस्कार, परिवार की खस्ताहाल माली हालात

- मनोवैज्ञानिक कारण, सामुदायिक कारण, सिनेमा और अश्लील साहित्य, नशीली दवाइयों का सेवन

- असामाजिक साथियों की संगत, आ‌र्म्स का आसान उपलब्धता

कोट-

बदलते परिवेश और बच्चों में हर चीज पाने की ललक ही उन्हें अपराध की राह में जाने के लिए खींचती है। पिछले एक दशक में टीन एजर्स में अपराध की प्रवृत्ति काफी बढ़ी है। उन्हें समय से रोका जा सकता है, इसके लिए सामाजिक व्यवस्था से पहले पैरेंट्स को जागरूक होना पड़ेगा।

डॉ। सुनीता शर्मा, सीडब्लूसी की मेंबर

हमारी जीवन जीने की शैली में आये परिवर्तन, टीवी, मोबाइल और सऊोशल मीडिया आदि ने हमारे परिवार में संवाद का अभाव पैदा कर दिया है। जिससे हम बच्चों की छोटी मोटी समस्याओं के बारे में न तो जान ही पाते है और न ही उसका हल निकालने की कोशिश करते है। आपसी बात चीत और पारिवारिक अपनेपन से पैरेंट्स और बच्चों के बीच की दूरी और दरार को मिटाकर बच्चों के मन से आपराधिक भावना दूर की जा सकती है। हमें बच्चों को भारतीय परंपरा, रीति रिवाज, मानवीय मूल्यों और और संवेदनाओं से जोड़े रखना होगा तभी हम उन्हें भटकने से रोक पाएंगे और उनके बचपन को सुदृढ़ता प्रदान कर पाएंगे।

- डॉ। सुशील पांडेय, राज्य मानसिक अधिकारी