- कुडि़या घाट के क्रिया घर में दो साल से 14 अस्थि कलश को अपनों का इंतजार

- लोग अपने परिवार के दिवंगत हुए पितृ के अस्थि कलश विसर्जित करना ही भूल गए

- वारिस होने के बाद भी लावारिस अस्थि कलह का विधि विधान से समिति करेगी विसर्जन

LUCKNOW : पुरखों की आत्मा की शांति के लिए उनके तर्पण की परंपरा बरसों पुरानी है। मगर, नई पीढ़ी उस परंपरा से दूर हटने लगी है। शहर के तमाम परिवारों की नई पीढ़ी के लोगों ने अपने पुरखों का अंतिम संस्कार कराने के बाद उनके अस्थि कलश (फूल) कुडि़या घाट स्थित क्रिया घर में रखवा दिये, लेकिन ये परिवार नदी में अपने पितरों के फूल सिराने अब तक नहीं गये। वर्षो बाद भी जब परिवार के लोगों ने पुरखों के अस्थि कलश को नदी में नहीं सिराया तो इसके लिए समाजसेवी आगे आए। क्रिया घर में दो साल से करीब 14 अस्थि कलश रखे हैं, जिनका बुधवार को विधि विधान से श्री शुभ संस्कार समिति की ओर से गोमती नदी में विसर्जन किया जाएगा।

क्रिया घर में रखे हैं अस्थि कलश

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी अस्थियों को चिता से समेटकर नदी में सिराने की परंपरा है। ये अस्थियां दाह संस्कार के बाद ही चिता से बटोरकर एक कलश में रखी जाती हैं। दस दिन में उन्हें नदी में प्रवाहित किया जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की भटकती आत्मा को संसार से मुक्ति मिल जाती है। वह ईश्वर के चरणों में विलीन हो जाती हैं। मगर शहर के कुडि़याघाट स्थित क्रिया घर के अस्थि लॉकर में पिछले दो साल से करीब 14 अस्थि कलश प्रवाहित होने के इंतजार में रखे थे। परिवार के लोग अपने पुरखों का अंतिम संस्कार करने के बाद उनकी चिताओं से फुल चुनकर कलश में रख तो गए, लेकिन उन्हें समय पर ले जाकर नदी में प्रवाहित करना भूल गए।

नये निर्माण के दौरान हुआ खुलासा

कुडि़या घाट स्थित क्रिया घर की अस्थि लॉकर को तोड़कर नया अस्थि लॉकर बनाने का काम चल रहा है। इसके लिए पुराने लॉकर को जब हटाने का प्रयास शुरू किया गया तो लॉकर में 14 अस्थि कलश मिले। यह दो या उससे भी ज्यादा साल के पुराने बताए जा रहे हैं। कलश पर न तो किसी का नाम लिखा है और न ही कोई पहचान है। मगर हर कलश में एक शख्स के सबूत हैं। जिन्हें आखिरी समय में अपनों का दामन तो नही नसीब हुआ, मगर कुछ पराए जरूर इनके अपने हो गए। दो साल से अपनों के इंतजार में रखे गए अस्थि कलशों की अब मुक्ति यात्रा की तैयारी है।

समिति करेगी विधि विधान से विसर्जन

श्री शुभ संस्कार समिति के संस्थापक रिद्धि गौड़ ने बताया कि दो साल से ज्यादा तक अस्थि कलश मिलने पर उनके विधि विधान से विसर्जन की तैयारी शुरू की गई। इससे पहले समिति ने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में सूचना प्रसारित कराई कि जिनके अपनों के अस्थि कलश वहां रखे हैं वह उसे ले जाए। 16 दिसंबर बुधवार सुबह 9 बजे समिति के पदाधिकारी सभी अस्थि कलश का विधि विधान से गोमती नदी में विसर्जन करेंगे।

चुपचाप उठा ले गए एक कलश

सोशल मीडिया पर लावारिस अस्थि कलश की सूचना प्रसारित हुई। इस पर मंगलवार सुबह एक शख्स कुडि़याघाट पहुंचा और वहां क्रियाघर के अस्थि कलश लॉकर से एक अस्थि कलश विसर्जन के लिए चुपचाप ले गया। कर्मचारियों के पूछने पर उसने बताया कि वह लंबे समय से मुंबई में था और वापस लौटने पर उसे जानकारी हुई तो अपने पूर्वज की अस्थि को विसर्जन के ले जा रहा है। उसने कलश को उन्नाव जाकर गंगा में विसर्जित करने की बात कही।

यह है परंपरा

शहर के पश्चिम इलाके में हिंदु रीति रिवाज से लोग अपनों का दाह संस्कार गुलालाघाट पर करते हैं। गुलालाघाट से करीब आधा किमी स्थित कुडि़याघाट पर क्रिया घर बना हुआ है, जहां पर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि कलश रखा जाता है और दस दिन बाद वहां विधि विधान से पूजा कर उसे क्षमता अनुसार गंगा व गोमती में विसर्जित किया जाता है।

इसलिए किया जाता है अस्थि विसर्जन

अंतिम संस्कार का सबसे आखिरी पड़ाव है अस्थि विसर्जन। कभी आपने सोचा है कि अस्थि विसर्जन नदी में ही क्यों किया जाता है? एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है। हिन्दू धर्म में गंगा का स्थान इसलिए भी सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि देवी गंगा भगवान शिव की जटाओं में वास करते हुए धरती पर अवतरित हुई थीं। इंसान के मरने के बाद शरीर को अग्नि के हवाले किया जाता है। इसके बाद शरीर राख हो जाता है। माना जाता है अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति की आत्मा नए शरीर को आसानी से ग्रहण कर लेती है।

पापमुक्त जीवन की कामना के लिये

हिंदू धर्म के कुछ महान ग्रंथों में भी अस्थि विसर्जन के व्याख्यान पाए गए हैं। शंख स्मृति एवं कर्म पुराण में गंगा नदी में ही क्यों अस्थि विसर्जन करना शुभ है, इसके तथ्य पाए गए हैं। इस नदी की पवित्रता को दर्शाते हुए ही वषरें से अस्थियों को इसमें विसर्जित करने की महत्ता बनी हुई है। इसके अलावा सिख धर्म में भी अस्थि विसर्जन किया जाता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि वह गंगा नदी में ही हो बल्कि इसके लिए किसी भी पवित्र नदी का चुनाव किया जा सकता है, लेकिन शास्त्रों में खासतौर पर अस्थि विसर्जन को गंगा नदी से जोड़कर ही देखा गया है।

वर्षो तक गंगा में रहती हैं अस्थियां

हिंदू धार्मिक स्थल जैसे कि हरिद्वार, प्रयाग में गंगा का वास है। यहां एक बड़े स्तर पर विधि विधान से अस्थि विसर्जन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मनुष्य की अस्थियां वर्षो तक गंगा नदी में ही रहती हैं। गंगा नदी धीरे धीरे उन अस्थियों के माध्यम से इंसान के पाप को खत्म करती है और उससे जुड़ी आत्मा के लिए नया मार्ग खोलती है।

विसर्जन का वैज्ञानिक आधार

इंसान की अस्थियों एवं नदी को वैज्ञानिक रूप से भी जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि नदी में प्रवाहित मनुष्य की अस्थियां समय समय पर अपना आकार बदलती रहती हैं, जो कहीं ना कहीं उस नदी से जुड़े स्थान को उपजाऊ बनाती हैं।