लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी की प्रमुख मार्केट्स को स्मार्ट बनाने के लिए कई बार योजनाएं बनाई गईं, कुछ जगह काम भी हुआ, लेकिन गुजरते वक्त के साथ यूरिनल जैसी सबसे मूलभूत सुविधा ही लापता है। स्थिति यह है कि किसी मार्केट में यूरिनल तो हैैं, लेकिन वे यूज करने लायक नहीं हैैं, तो कहीं यह व्यवस्था नजर ही नहीं आती। इसकी वजह से व्यापारियों के साथ-साथ दुकानों में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों और मार्केट आने वाले ग्राहकों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इमरजेंसी में उन्हें इधर-उधर जगह तलाशनी पड़ती है। नगर निगम प्रशासन की ओर से भी इस व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

सभी मार्केट्स में हाल बेहाल

एक दो नहीं, राजधानी की सभी प्रमुख मार्केट्स में यूरिनल की कंडीशन चिंताजनक है। जिन मार्केट्स में रोजाना 50 हजार से 90 हजार कस्टमर्स का फुटफॉल है, वहां पर दो या तीन ही यूरिनल बने हुए हैैं और उनकी भी कंडीशन बहुत अच्छी नहीं है। इससे खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यापारियों के साथ कर्मचारियों और मार्केट आने वाले ग्राहकों को किस कदर समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।

सफाई कौन कराए

एक सच्चाई यह भी है कि कई मार्केट्स ऐसी हैैं, जहां स्पेस की प्रॉब्लम है। इसकी वजह से भी यूरिनल की सुविधा को डेवलप नहीं किया जा पा रहा है। इसके साथ ही यूरिनल की सफाई व्यवस्था को लेकर भी अक्सर सवाल उठते रहते हैैं। मुंशी पुलिया स्थित सुख कॉम्प्लैक्स की बात की जाए तो यहां यूरिनल की सुविधा तो है, लेकिन प्रॉपर सफाई नहीं होती है। जिसकी वजह से व्यापारी इसका यूज नहीं कर पाते हैैं। अगर गंदे यूरिनल का यूज किया जाए तो संबंधित व्यक्ति संक्रामक बीमारियों की भी चपेट में आ सकता है।

पब्लिक टॉयलेट से मिल रही राहत

कई मार्केट ऐसी हैैं, जहां पर यूरिनल की सुविधा नहीं है, लेकिन वहां पर पब्लिक टॉयलेट की सुविधा है। इस वजह से वहां पर तो लोगों को ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता है, लेकिन ऐसी मार्केट जहां पब्लिक टॉयलेट की सुविधा नहीं है और यूरिनल भी नहीं है, वहां पर स्थिति बेहद खराब है। ऐसे में, सबसे पहले ऐसी मार्केट्स में यूरिनल की व्यवस्था होनी चाहिए, जहां पर पब्लिक टॉयलेट की फैसिलिटी नहीं है।

बजट में रहता है फोकस

शहर सरकार की ओर से जब अपना बजट पेश किया जाता है तो उसमें नए टॉयलेट के निर्माण या मेंटीनेंस पर विशेष फोकस किया जाता है, लेकिन यूरिनल की व्यवस्था के लिए अलग से बजट की व्यवस्था नहीं की जाती है। इसकी वजह से भी यह व्यवस्था बेहतर होती हुई नजर नहीं आ रही है। वहीं, पीपीपी मोड पर भी यूरिनल की व्यवस्था की जा सकती है।

उठाने होंगे कदम

1-सभी प्रमुख मार्केट्स में यूरिनल की सुविधा

2-स्पेस की व्यवस्था करनी होगी

3-व्यापारियों का सहयोग

4-यूरिनल नहीं, तो पब्लिक टॉयलेट की सुविधा

5-यूरिनल में सफाई व्यवस्था का ध्यान

6-नियमित मॉनीटरिंग

ओडीएफ रेटिंग पर भी असर

अगर प्रॉपर यूरिनल की सुविधा नहीं है तो कहीं न कहीं इसका असर ओडीएफ रेटिंग पर भी देखने को मिलता है। नगर निगम प्रशासन की ओर से पहले से ज्यादा सुधार तो किया गया है, लेकिन अभी तक पूरी तरह से ओडीएफ फ्री रेटिंग नहीं मिल सकी है। ऐसे में सभी सार्वजनिक स्थानों और मार्केट एरिया में यूरिनल की व्यवस्था करानी होगी, जिससे रेटिंग में और बेहतर सुधार हो सके।