- कोरोना लॉकडाउन के दौरान गरीबों की मदद को बढ़ाए हाथ

- खुद की चिंता छोड़ गरीबों की सेवा में भूले अपना सुख-चैन

LUCKNOW : कोरोना संकटऐसी आपदा जो न पहले किसी ने सुनी न देखी। देश ही नहीं, पूरी दुनिया में इस कदर खौफ कि लोगों ने खुद को अपने घरों में समेट लिया। काम-धंधा बंद होने से गरीबों के सामने कोरोना से बड़ी भूख की समस्या आ खड़ी हुई। ऐसे कठिन हालात में राजधानी के कुछ युवाओं ने खौफ के साथ सुख-चैन को तिलांजलि दे दी और निकल पड़े गरीबों की मदद करने। इसके लिये उन्होंने खुद की खून-पसीने की कमाई को भी खर्च करने में तनिक भर नहीं सोचा। इंटरनेशनल यूथ डे के मौके पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट शहर के ऐसे ही यूथ्स से आपको रूबरू कराने जा रहा है जिनकी सेवा भावना ने न सिर्फ मिसाल पेश की बल्कि, शहर का नाम भी रोशन किया। पेश है विशेष रिपोर्ट-

फोटो अरुण सिंह।

डॉक्टर की सलाह को दरकिनार कर सेवा में जुटे

यूपी एसटीएफ में इंस्पेक्टर अरुण सिंह एक दबिश के दौरान गाड़ी पलटने से गंभीर रूप से घायल हो गए। उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट के चलते डॉक्टर्स ने उन्हें हिलने-डुलने से भी मना कर दिया। कुछ दिनों तक डॉक्टर्स की सलाह पर अरुण ने बेड रेस्ट किया लेकिन, इसी बीच कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। दिल में गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करने का जज्बा हिलोरे मारने लगा। इंस्पेक्टर अरुण बताते हैं कि उनके एक मित्र का रेस्टोरेंट था, जो लॉकडाउन की वजह से बंद हो गया था। अपने चुनिंदा दोस्तों से उन्होंने उसे कम्युनिटी किचन बनाने का इरादा जाहिर किया। सभी दोस्त उनके इस विचार से सहमत हो गए। फिर क्या, रेस्टोरेंट के कर्मचारियों के साथ अरुण व उनके दोस्त हर रोज गरीबों के लिये लंच पैकेट बनाने में जुट गए। हर रोज इंस्पेक्टर अरुण व उनके दोस्त 2500 लंच पैकेट तैयार करते और शहर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर यह लंच पैकेट पहुंचाते। खास बात यह कि इस कम्युनिटी किचन में गरीबों के लिये हर रोज अलग-अलग मेन्यु तैयार किया जाता था। इसके लिये किसी से मदद भी नहीं ली और अपने संसाधनों से यह काम जारी रखा। उनका जज्बा देख यूपी एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश, एएसपी विशाल विक्रम सिंह, इंस्पेक्टर संजय खरवार भी उनके साथ जुड़ गए। लगातार कम्युनिटी किचन संचालित करने और उस भोजन को बांटने में उन्होंने अपनी बीमारी को आड़े नहीं आने दिया। वे कहते हैं कि जरूरतमंदों की दुआओं का ही नतीजा है कि वे अब करीब-करीब पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं और ड्यूटी पर वापस लौट आये हैं।

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गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन पहुंचाने से जो सुकून मिलता था उसकी तुलना किसी अन्य चीज से नहीं की जा सकती।

- अरुण सिंह, इंस्पेक्टर, यूपी पुलिस

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गरीबों के लिये शुरू कर दी मुहिम

जानकी विहार कालोनी जानकीपुरम निवासी युवा समाजसेवी दीपक मिश्र भी उन्हीं युवाओं में शामिल है जिन्होंने संकट की इस घड़ी में अपना अहम योगदान दिया। दीपक ने 'कोई भूखा न रहे अपना' मुहिम की शुरुआत की। इसके तहत लॉकडाउन की शुरुआत से ही दीपक ने निरंतर जरूरतमंद परिवारों को राशन किट पहुंचाई और फूड पैकेट भी वितरित किये। इस मुहिम में अभिषेक श्रीवास्तव, विकास गौर, गौरव सिंह, आदेश यादव, श्रीदत्त मिश्रा, सनी दीक्षित, आदर्श श्रीवास्तव, भोलू चौबे, पीयूष सिंह, मयंक मिश्र व रोहित उपाध्याय समेत अन्य युवाओं ने नि:स्वार्थ भाव से पूरा सहयोग किया। यही नहीं संकट की इस घड़ी में दीपक मिश्रा ने जानकीपुरम में चार नंबर चौराहे के पास कम्युनिटी किचेन की शुरुआत की। जहां डेली लगभग 700 दिहाड़ी मजदूरों व निर्धन परिवारों को भरपेट भोजन कराया गया। इस मुहिम की खासियत यह थी कि भोजन बनाने से लेकर परोसने तक में युवाओं की टीम ने नि:स्वार्थ भाव से कार्य किया। मुहिम से जुड़े जानकीपुरम निवासी युवा अभिषेक श्रीवास्तव इस कदर प्रभावित हुए की उन्होंने 25 मई को अपना जन्मदिन भी गरीबों के बीच मनाया। युवाओं की इस सराहनीय मुहिम से आसपास के लोग भी जुड़े और जरुरतमंदों की मदद के लिए आगे आये। किसी ने आर्थिक सहयोग किया तो किसी ने राशन व अन्य सामान उपलब्ध कराया। सभी के सहयोग से निरंतर 40 दिनों तक प्रतिदिन करीब 700 जरुरतमंदों को सम्मान बैठाकर भरपेट भोजन कराया गया। 7 जून को इस मुहिम का समापन हुआ। इस मुहिम में अपना योगदान देने वाले कोरोना योद्धाओं को दीपक मिश्रा ने अंगवस्त्र व सम्मान पत्र देकर सम्मानित भी किया।

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'कोई भूखा न रहे अपना' मुहिम सभी के अथक परिश्रम से ही यह मुहिम सफल हुई। कोरोना योद्धाओं को सम्मानित करना उनके लिए खुद का सम्मान करने जैसा है।

दीपक मिश्र, समाजसेवी

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मरीजों की मदद में नहीं आने दी कोई कमी

कोरोना संकट के दौरान जरूरतमंदों की तमाम तरह से मदद पहुंचाने में शहर के युवाओं ने मिसाल कायम की। जहां कई युवा शहर के अलग-अलग हिस्सों में गरीबों की मदद में जुटे थे वहीं, राम सागर मिश्र हॉस्पिटल के डॉक्टर रोहित सिंह ने भी अपने साथ 5 अन्य साथी डॉक्टर्स को जोड़कर ग्रुप बनाया और मरीजों की मदद में जुट गए। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल में कई कोरोना संक्रमित बच्चे भी लाए गए। इन बच्चों को हॉस्पिटल का खाना अच्छा नहीं लगता था। आखिरकार उन लोगों ने उन बच्चों के लिये अलग से खाने का इंतजाम किया। इलाज के दौरान बच्चों का मन लगा रहे इसके लिये उन लोगों ने खुद से पैसे जुटाकर उनके लिये तमाम किताबें और ड्राइंग वर्कबुक लाकर दीं। कई गरीब मरीजों के पास रोजमर्रा की जरूरतों का भी सामान नहीं होता था। जिसे वे लोग अपने खर्च से जुटाते और उन गरीब मरीजों को देते। यह काम आज भी जारी है। उन्होंने कहा कि इस काम से उन्हें जो सुकून मिलता है उसे बयां नहीं किया जा सकता। इसके अलावा खाली समय में हॉस्पिटल के आसपास हरियाली के लिये काम किया और सैकड़ों पौधे भी लगाए। इसमें भी जो खर्च आता वे आपस में मिल-बांटकर वहन करते।

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कोरोना काल के दौरान मेरे साथियों ने भी मेरे साथ कंधे से कंधा मिलकार काम किया। इस काम से मिलने वाले सुकून को बयां नहीं किया जा सकता है।

डॉ। रोहित सिंह, राम सागर मिश्र हॉस्पिटल

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मजदूर की हालत देख पसीज उठा दिल

खुर्रमनगर के बाल विहार में रहने वाले सैय्यद जामिन अब्बास जाफरी इंटीग्रल यूनिवर्सिटी से पास आउट हैं। जामिन लॉकडाउन के दौरान 22 मार्च को मानस इंक्लेव की एक दुकान में राशन लेने गए। जहां उनहोंने देखा कि करीब की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले कुछ मजदूर व उनके घर की महिलाएं दुकानदार से चांदी की पायल गिरवी रख राशन देने की बात कह रहे थे। यह देख उनका दिल पसीज उठा। वे उन गरीब मजदूरों को जेब में मौजूद 800 रुपये देकर वहां से वापस लौटे और 'फाइट अगेंस्ट कोरोना' नामक वॉट्सएप ग्रुप बनाया। इस ग्रुप में उन्होंने अपने सभी बैचमेट्स को जोड़ा और गरीबों की मदद के लिये सभी से सहायता मांगी। सभी दोस्त उनके साथ आ गए। इसके बाद गरीबों की मदद के लिये शुरू हुआ अभियान। जामिन ने बताया कि ग्रुप में शामिल सौरभ सिंह, फरहान, डॉ। आरिफ, अनुपम कुमार समेत सभी दोस्तों ने मदद के इच्छुक लोगों से राशन व अन्य जरूरी सामान इकट्ठा करना शुरू किया। इसके बाद उन्हें बराबर-बराबर थैलियों में पैक किया गया और उसे गरीबों में वितरित करना शुरू किया। उन लोगों ने शहर के विभिन्न इलाकों में अपने कलेक्शन सेंटर स्थापित किये जहां जो लोग भी गरीबों की मदद करना चाहते हैं, वे अपनी स्वेच्छा से सामान दे जाते। इसके अलावा उन लोगों ने भी खुद के रुपये कलेक्ट कर राशन व दवाएं खरीदीं और उन्हें हाइवे, गरीबों की बस्तियों और हॉस्पिटल्स में जाकर वितरित किया। जामिन ने बताया कि उनके एक अन्य साथी सागर पांडेय जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहे हैं, अपने चाचा के घर की छत पर कम्युनिटी किचन खोल दी और वहां हर रोज 500 लंच पैकेट तैयार कर बांटते रहे। इस लंच पैकेट की खास बात थी कि हर रोज इसमें अलग-अलग व्यंजन तैयार होते थे। इसके अलावा सड़क पर पैदल जा रहे लोगों को लंच पैकेट के अलावा ग्लूकोस बिस्किट व पानी की बोतलें भी वितरित कीं। उनकी यह मुहिम संपूर्ण लॉकडाउन जारी रही। जामिन कहते हैं कि अगर कहीं आगे भी किसी जरूरतमंद को मदद की जरूरत होगी तो वे लोग हमेशा तैयार हैं।

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लॉकडाउन की शुरुआत में सबसे ज्यादा दिक्कत गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों को हुई। इसी को देखते हुए मैं अपने दोस्तों के साथ मिलकर उनको राहत पहुंचाने के काम में जुट गया।

- सैय्यद जामिन अब्बास जाफरी, स्टूडेंट