- ईद के दौरान भी लॉकडाउन के नियमों का पालन करने की अपील

LUCKNOW :फितरा जिसे जकात फितरा भी कहते हैं, इस्लाम में पूजा की अनिवार्य कामों में से एक है। जिसका मतलब है ईद फितर के दिन, एक निश्चित मात्रा और स्थिति में माल का भुगतान। गरीबों और जरूरतमंदों को फितरा देना अनिवार्य है। जिसकी मात्रा एक साअ लगभग 3 किग्रा गेहूंए जौए खजूर या किशमिश या उनका मूल्य प्रत्येक बालिग और समझदार व्यक्ति जो पूरे वर्ष अपने और अपने परिवार पर खर्च उठाता हो वह अपने और अपने परिवार का फितरा भुगतान करने के लिए वाजिब है। फितरा अदा करने का समय ईद-उल-फितर की नमाज से पहले या उसी दिन जुहर की नमाज से पहले का है। यह बात मुमताज उलेमा सैयद सैफ अब्बास नकवी ने बताई।

सतर्क रहना चाहिए

मौलाना सैयद सैफ अब्बास ने कहा कि इस साल फिरता एक व्यक्ति पर लगभग 75 रुपये होगा। कोरोना के कारण लॉकडाउन है। गरीबों का काम भी रुक गया है, इसलिए लोगों से अपील है कि वे फितरे के पैसे को गरीबों में जल्द वितरित कर उनकी मदद करें। इसके अलावा लॉकडाउन से हम ईद सादगी से मना रहे हैं। हमें गरीबों की मदद करने में ईद का कुछ हिस्सा खर्च करना चाहिए। सरकार छूट भी दे तो भी हमें सावधान और सतर्क रहना चाहिए। सोशल डिसटेंसिंग का ख्याल रखना चाहिए और मास्क पहनना चाहिए।

शिया हेल्पलाइन

सवाल- क्या पिता अपने पुत्र को जकात का पैसा दे सकता है।

जवाब- पिता अपने पुत्र को विवाह के लिए जकात का पैसा दे सकता है।

सवाल- क्या पुत्र माता-पिता की अनुमति के विपरित एतेकाफ में बैठ सकता है।

जवाब- अगर पुत्र के एतेकाफ में बैठने से माता.पिता को कठिनाई होती है तो पुत्र का एतेकाफ में बैठना सही नहीं है।

सवाल- क्या एतेकाफ जो तीन दिन का है बीच मे छोड कर उठ सकते है।

जवाब- शुरू के दो दिन मे एतेकाफ तोड़ा जा सकता है लेकिन अगर तीसरा दिन शुरू हो जाए तो एतेकाफ अनिवार्य हो जाता है।

सवाल- क्या सजदे की आयतों को लिखने और देखने से भी सजदा अनिवार्य हो जाता है।

जवाब- नहीं, सजदे की आयतों को लिखने और देखने से सजदा अनिवार्य नहीं होता है।

सवाल- क्या फितरा ईद के दिन भी निकाला जा सकता है।

जवाब- फितरा ईद के दिन दोपहर से पहले निकाल दें तो ज्यादा सही है।

सुन्नी हेल्पलाइन

सवाल- एक व्यापारी है उसका रुपया उधार है और कुछ नकद है तो वह पूरे रुपये की जकात अदा करेगा या केवल जो उसके पास नकद है उसकी।

जवाब- तमाम रुपये की जकात अदा करें लेकिन जितना रुपया कर्ज है उसकी जकात वसूल होने के बाद अदा करना जरूरी है।

सवाल- हमारे यहां इमाम साहब ने इशा की आखिरी रकआत में किरात जोर से कर दी तो क्या सज्दा सहू लाजिम है।

जवाब- जी हां, ऐसी सूरत में सज्दा सहू लाजिम होगा।

सवाल- क्या जकात की रकम से मस्जिद का जनरेटर खरीदा जा सकता है अगर दे दिया तो क्या जकात अदा हो जाएगी।

जवाब- सही नहीं है लेकिन यह हो सकता है कि कोई गरीब आदमी कर्ज लेकर जनरेटर खरीद कर मस्जिद को दे दे और जकात इस गरीब को कर्ज अदा करने को दी जाए।

सवाल- रोजे का कफ्फारा साठ गरीबों को खाना खिलाना है अगर इस खाने की कीमत से मदरसे में टाट खरीद कर दें तो क्या जायज है।

जवाब- इस रकम से मदरसे की मरम्मत और टाट वगैरा खरीद कर देना सही नहीं है।

सवाल- कोई हाव-भाव से अपने को जकात का हकदार बताता है तो देने वाले के लिए जरूरी है कि उसकी हालत के बारे में मालूम कर उसे जकात की रकम दे।

जवाब- जरूरी नहीं, अगर उसकी जाहिरी हालत से अंदाजा हो कि यह शख्स जरूरतमंद है तो उसे जकात दे सकते हैं।

कोट

ईद का दिन नजदीक आने के साथ ही हम लोगों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। रमजान के सभी रोजे मुकम्मल होने वाले हैं। ऊपर वाले से यही दुआ है कि इस बार ईद सभी के जीवन में खुशियां व सुकून लेकर आए और यह कोरोना का संकट जल्द दूर हो।

मस्सरत अली, आलमबाग

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