150 के करीब ट्रांसप्लांट एक साल में कोविड से पहले

70 के करीब ट्रांसप्लांट एक साल में कोविड काल में

300 से अधिक वेटिंग अब ट्रांसप्लांट के लिए

- किडनी ट्रांसप्लांट में लंबी वेटिंग बनी मुसीबत

- पीजीआई में ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे मरीज

बाराबंकी के 45 वर्षीय आनंद का ट्रांसप्लांट होना है और मां डोनर हैं। परिजनों ने किसी तरह पैसे जुटाए थे लेकिन वेटिंग के कारण ट्रांसप्लांट नहीं हो पा रहा है। ऐसे में डायलिसिस व दवाओं पर ट्रांसप्लांट के लिए बचाए पैसे खर्च हो गए हैं।

बहराइच निवासी 55 वर्षीय आशा का ट्रांसप्लांट होना है लेकिन कोविड के कारण उन्हें अभी तक डेट न मिल सकी है। ऐसे में उनका डायलिसिस पर जीवन चल रहा है। इलाज में अब तक लाखों रुपए खर्च हो गए हैं।

LUCKNOW:

कोरोना का सर्वाधिक असर मरीजों पर ही दिखाई दे रहा है। खासकर ऐसे मरीज जिनको ट्रांसप्लांट की सख्त जरूरत है। कोविड के कारण किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे मरीज डायलिसिस व दवाओं पर लाखों खर्च कर रहे हैं, जिससे उनका बजट गड़बड़ा गया है। एक साल से अधिक का समय बीत गया है लेकिन ऐसे लोगों को ट्रांसप्लांट की डेट नहीं मिल रही है। पीजीआई में भी करीब 300 से अधिक मरीजों की वेटिंग ट्रांसप्लांट को लेकर चल रही है।

आधी हुई ट्रांसप्लांट की संख्या

पीजीआई में कोरोना से पहले सप्ताह में 3-4 किडनी ट्रांसप्लांट होते थे। कोरोना के बाद यह संख्या घटकर आधी रह गई है। नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ। नारायण प्रसाद के मुताबिक कोरोना के कारण ट्रीटमेंट पर असर देखने को मिला है। हालांकि विभाग ने ट्रांसप्लांट व डायलिसिस की सुविधा बंद नहीं की है। यहां तक की कोविड मरीजों का भी डायलिसिस किया गया है। इस समय सप्ताह 2-3 ट्रांसप्लांट ही हो रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि संस्थान में कोरोना से पहले सालभर में करीब 150 ट्रांसप्लांट के मुकाबले अब संख्या घटकर आधी रह गई है। यह कोविड गाइडलाइन के कारण हुआ है।

वेटिंग से बढ़ा खर्च

ट्रांसप्लांट के लिए लंबी वेटिंग के चलते मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। संस्थान में ट्रांसप्लांट का खर्च करीब 3 लाख रुपए तक आता है। वहीं निजी में इसका खर्च 10 लाख रुपए से भी अधिक होता है। यही कारण है कि प्रदेश ही नहीं अन्य प्रदेशों के भी मरीज यहां ट्रांसप्लांट कराने आते हैं। वेटिंग लंबी होने के कारण इन मरीजों का ट्रांसप्लांट के लिए जुटाया गया पैसा दवाओं और डायलिसिस में ही खर्च हो रहा है। यहां डायलिसिस का एक माह का खर्च करीब 13 हजार रुपए और प्रतिमाह दवाओं पर दो हजार रुपए का खर्च आता है। जबकि निजी संस्थानों में यही खर्च करीब 50 हजार रुपए से अधिक होता है।

डॉ। नारायण के मुताबिक ट्रांसप्लांट होने के बाद जान बच जाएगी, ऐसा जरूरी नहीं है। समय-समय पर डायलिसिस जरूरी है, ताकि कोई दिक्कत न आए। मई बार इलाज बीच में बंद कर देने से भी मौत हो जाती है। ऐसे में अब ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रही मरीजों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है।

डॉ। नारायण प्रसाद, एचओडी, नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट, पीजीआई