लखनऊ (ब्यूरो)। अगर सर्दी के तीन महीनों को छोड़ दिया जाए तो राजधानी का एक्यूआई पुअर कैटिगरी (200-300) के बीच रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में एयर पॉल्यूशन के बढ़ते स्तर के कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। यूपीपीसीबी की आईआईटी कानपुर के साथ किए गए शोध में भी शहर की सड़कों से उड़ने वाली धूल को पॉल्यूशन का एक बड़ा कारण माना गया है। जिससे पीएम 10 के स्तर में 87 और पीएम 2.5 के स्तर में 77 फीसदी इजाफा होता है।

वाहनों की संख्या बढ़ रही

राजधानी में वाहनों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। बीते साल की तुलना में इस साल वाहनों की संख्या में 6.3 फीसदी का इजाफा हुआ है। बीते साल रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 26 लाख 50 हजार के करीब थी, जो अब 28 लाख 12 हजार 737 की गई है। इनमें हैवी व्हीकल में 7.7 फीसदी, लाइट कॉमर्शियल व्हीकल्स में 3.9 फीसदी, बसों में 5.9 फीसदी, टैक्सी में 24.4 फीसदी, टू व्हीलर में 4.2 फीसदी और कार में 11.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। पेट्रोल व डीजल की खपत भी बीते साल की तुलना में 20 फीसदी बढ़ी है।

डीजल का प्रभाव अधिक

आईआईटीआर के वैज्ञानिक एएच खान का कहना है कि डीजल के जलने पर फाइन पार्टिकल्स या पीएम 2.5 या इससे भी सूक्ष्म कण उत्सर्जित होते हैं। सल्फर डाई ऑक्साइड के मुकाबले डीजल से नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा भी अधिक निकलती है, जबकि पेट्रोल के जलने पर पार्टिकुलेट मैटर के साथ सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड दोनों ही निकलती हैं, लेकिन इसकी मात्रा डीजल के मुकाबले कम होती है। वही, सीएनजी वाहनों में नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ी होती है।

रोड डस्ट भी है कारण

यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, लखनऊ के प्रदूषण में पीएम 10 का 87 फीसदी और पीएम 2.5 का 77 फीसदी योगदान रोड डस्ट के कारण होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, शहर में उड़ने वाली धूल में कई तरह के पल्यूटेंट हो सकते हैं। पर मुख्य तौर पर पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 और पीएम 10 प्रदूषक माना गया है।

नहीं होता नियमों का पालन

पर्यावरणविद प्रो। ध्रुव सेन सिंह का कहना है कि प्रदूषण का बड़ा कारण निर्माण कार्य भी है। इसमें सड़क निर्माण कार्य के अलावा हर तरह के निर्माण कार्य को शामिल किया जाता है। निर्माण कार्य को लेकर कई तरह की गाइडलाइंस है जो फॉलो नहीं होती। ऐसे में एक तो निर्माण साम्रगी से पॉल्यूशन होता है, दूसरा निर्माण करने के दौरान जो धूल मिट््टी उड़ती है वह भी वायुमंडल में हवा के साथ घुल जाती है। शहर के अलग-अलग इलाकों में प्लाईवुड व प्लास्टिक की कई सारी फैक्ट्रीज हैं। इसके अलावा केमिकल फैक्ट्रीज भी चल रही हैं। फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं में डस्ट पार्टिकल, सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मेटल डस्ट, पॉली एरोमेटिक हाईड्रोकार्बन जैसे प्रदूषक तत्व मिलते हैं। मेटल डस्ट में लेड और निकिल भी पाया जाता है।

सर्दियों में अधिक समस्या

प्रो। ध्रुव सेन सिंह का कहना है कि सर्दियों में एक्यूआई इसलिए भी अधिक रहता है क्योंकि तापमान में कमी आती है और वायु का वेग कम हो जाता है। ऐसे में वातावरण में रोज के समय जो भी प्रदूषण होता है वह हवा के साथ बह नहीं पाता है।

एयर पॉल्यूशन में 6 प्रदूषक

एयर पॉल्यूशन में 6 तरह के प्रदूषक आम तौर पर मापे जाते हैं। इनमें पीएम 10, पीएम 2.5, सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और ओजोन कूड़ा जलाने, वाहनों से निकलने वाले धुएं में पाए जाते हैं। धुएं से दो तरह से प्रदूषण होता है। अव्वल तो पार्टिकुलेट मैटर या फाइन पार्टिकल्स जो सॉलिड फॉर्म में होते हैं और दूसरी गैसें। पार्किकुलेट मैटर पीएम 10 के साथ-साथ कार्बन मोनो ऑक्साइड, एसओटू, एनओटू प्रदूषक निकलते हैं।

इस तरह होती हैं दिक्कतें

पीएम 10 और पीएम 2.5 पार्टिकुलेट मैटर जिनका साइज 10 या 2.5 मैक्रोमीटर से कम व्यास होता है। जो सांस लेने के समय गले के अंदर चले जाते हैं। यह ब्रोकांइटिस और दिल के रोग बढ़ा सकते हैं। सल्फर डाई ऑक्साइड इस गैस बढ़ने से आंखों में जलन, जुकाम और गले में खराश हो सकती है। नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड एनओटू के संपर्क से फेफड़ों का काम प्रभावित हो सकता है।

एक हफ्ते का एक्यूआई

25 नवंबर 252 खराब

26 नवंबर 247 खराब

27 नवंबर 251 खराब

28 नवंबर 246 खराब

29 नवंबर 279 खराब

38 नवंबर 211 खराब

1 दिसंबर 154 मॉडरेट

मॉनिटरिंग के जरिए पॉल्यूशन कम करने का प्रयास

उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारियों के मुताबिक, बोर्ड मॉनिटरिंग का काम करता है। बोर्ड की ओर से शहर के छह अलग-अलग जगहों पर मॉनिटरिंग स्टेशन हैं जहां पर एक्यूआई रिकॉर्ड होता है। इसके अलावा यूपीपीसीबी कॉम्प्रिहेंसिव एक्शन प्लान फॉर रिड्यूसिंग एयर पॉल्यूशन प्रोग्राम के जरिए 17 विभागों को शामिल कर एक्शन प्लान बनाया गया है। इन विभागों में परिवहन विभाग लखनऊ, यातायात पुलिस, आवास विकास प्राधिकरण, लोक निर्माण विभाग, जिला पूर्ति अधिकारी,नगर निगम को शामिल किया गया है। इसके नोडल जिलाधिकारी हैं। इस प्लान के तहत यूपीपीसीबी संबंधित विभाग के साथ मिलकर पॉल्यूशन बढ़ाने वाले कारकों की मॉनिटरिंग, उनको कम करने के उपाय करने और नियमों का उल्लंघन होने पर कार्यवाही करने संबंधित संस्था के खिलाफ कार्यवाही के लिए लिखता है।

ऐसे रोका जा सकता है एयर पॉल्यूशन

-सीएनजी, बायोडीजल, इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड बेस्ड व्हीकल्स को बढ़ावा दिया जाए। साथ ही दस साल पुराने वाहनों को हटा दिया जाए।

-सड़कों को बार-बार खोदने या काटने से बचें। सड़कों पर रोज सफाई की जाए और पानी का छिड़काव किया जाए।

-सड़क किनारे अधिक से अधिक पौधरोपण हो।

-लोगोंं को पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज करने के लिए मोटिवेट करें।

-सड़क पर अतिक्रमण को कम करें, जिससे ट्रैफिक की समस्या से पॉल्यूशन का स्तर बढ़े नहीं।

-सॉलिड वेस्ट, कूड़ा कचरा ले जाने वाले वाहनों को अच्छे से कवर करके ले जाएं। प्लास्टिक, कचरा और अन्य साम्रगी को जलाने से बचें।