- लॉकडाउन में गरीबों की आगे आकर करें मदद

- रमजान में हर मदद का मिलेगा 70 गुना सवाब

LUCKNOW: रमजान में जितना महत्व खुदा की इबादत का है, उतना ही जकात और फितरा देने का भी होता है। जकात साहिब ए नसाब पर फर्ज है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका ढाई फीसद गरीब या जरूरतमंद को देना जकात है। फितरा वो रकम है जो संपन्न लोग जरूरतमंदों को देते हैं। ईद की नमाज से पहले इसे अदा करना जरूरी है। लॉकडाउन से गरीबों व जरूरतमंदों को काम मिलना बंद हो गया है और उन्हें खाने-पीने की दिक्कत हो रही है। ऐसे में समाज के लोग आगे आकर ज्यादा से ज्यादा जकात और फितरा देने का काम करें, ताकि सबकी ईद खुशियों वाली बन जाए

मिलकर हाथ बढ़ाना है

लॉकडाउन से लोग परेशान हैं। संपन्न लोग अपने स्तर से गरीबों और जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। मेरी अपील है कि ज्यादा जकात और फितरा देने से गरीबों की ही मदद होगी। इसका सवाब ऊपर वाला कई गुना बढ़ाकर देगा। इसी सोच के साथ हम सबको मिलकर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आना होगा। मिलकर ही हम इस संकट से भी जल्द उबर सकेंगे।

जुनैद अली, एक्टर व रायटर

गरीबों की करें मदद

लॉकडाउन की वजह से लोग बाहर नहीं जा सकते हैं। ऐसे में कोशिश करें कि हम अधिक से अधिक फितरा दें, ताकि गरीबों और जरूरतमंदों की मदद हो सके। इस मुश्किल वक्त में समाज के बड़े लोगों को आगे आकर काम करना चाहिए। अपने बच्चों को भी जकात के बारे में बताएं। रोजा, नमाज, जकात, हज फर्ज है। जकात कमाई का ढाई परसेंट निकालकर गरीबों और जरूरतमंदों को तकसीम किया जाता है।

प्रो। आसिफा जमानी

मदद के लिए आगे आयें

जकात एक तरह से इस्लॉमिक टैक्स है, जो हर साल देना होता है। ईमानदारी से लोग दें तो काफी पैसा आ सकता है। इसके अलावा हम अलग से अपनी कमाई से पैसा निकालते हैं। मौजूदा समय को देखते हुए डेली पांच सौ लोगों को खाना व राशन सामग्री दे रहे हैं। अगर आपकी हैसियत है तो ज्यादा से ज्यादा जकात निकालने का काम करें ताकि गरीब और जरूरतमंदों की मदद हो सके।

सोहराब अली खान, एक्टर

राशन या ईद का सामान दें

लोगों से अपील है कि जिन्होंने जकात के पैसे नहीं निकाले हैं वो गरीबों के घरों में भेज दें। उस पैसे से उनके खाने-पीने का इंतजाम हो जाएगा। ईद का चांद देखें तो आतिशबाजी करने की जगह उसका पैसा गरीबों को दान कर दें। इस पैसे से उन्हें एक वक्त का खाना मिल सकता है। आप किसी बीमार को दवा, बच्चे के स्कूल की फीस भी दे सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग सामने आकर गरीबों की मदद करें, इससे बेहतर क्या होगा।

मिर्जा मोहम्मद हलीम, इस्लामिक स्कॉलर