लखनऊ (ब्यूरो)। दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। पर समय के साथ हिंदी के स्थान पर समाज अंग्रेजी को प्राथमिकता दे रहा है। जिससे हिंदी कहीं पीछे छूटती जा रही है। हालांकि, धीरे-धीरे इसमें बदलाव आ रहा है। जहां युवा पौध हिंदी के प्रचार-प्रसार के साथ इसमें करियर भी बना रही है। जहां कोई कविता के माध्यम से साइंस की मुश्किल बातें भी आसानी से समझा रहा है, तो कोई युवा रचनाकारों को मंच देने का काम कर रहा है। पेश है अनुज टंडन की खास रिपोर्ट

हिंदी से आसान कर रहे साइंस

वैसे तो मैं केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान लखनऊ में बतौर सीनियर तकनीकी अधिकारी काम कर रहा हूं। बचपन से ही हिंदी के प्रति लगाव था। साइंस के प्रति अधिक लगाव है, इसलिए इसपर ही हिंदी में कविताएं लिखना शुरू किया, ताकि लोगों को आसानी से समझ आ सकें। अब तक 9 किताबें लिख चुका हूं। इसके अलावा कई राष्ट्रीय अखबारों में कॉलम भी लिख रहा हूं। वहीं, 2 वर्ष पहले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया था। साथ ही इस वर्ष फरवरी में फिजी में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। मेरी कई कविताओं को अभिनेता अनुपम खेर ने अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया है। रचनाओं के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने दो बार पुरस्कृत किया है। देश में विज्ञान कवि सम्मेलनों की स्थापना का काम किया है। सही तौर पर कहा जाये तो मेरे दो काम हैं-पहला प्रयोगशाला में तन की दवा और दूसरा मंचों पर मन की दवा बनाना।

-पंकज प्रसून, साइंटिस्ट

हिंदी में ही कुछ करने की ठानी

मैंने पढ़ाई यूपी बोर्ड से की है। शुरुआत से ही हिंदी भाषा के प्रति लगाव रहा है। एमए हिंदी में करने के बाद बतौर हिंदी टीचर काम किया। फिलहाल मैं आकाशवाणी में बतौर एंकर काम कर रहा हूं। मुझे शुरू से ही हिंदी में लिखी रचनाओं को पढ़ना अच्छा लगता था। खासतौर पर महादेवी वर्मा और जयशंकर प्रसाद को पढ़ता था। उसी से प्रेरणा मिली कि मुझे भी लिखना चाहिए और धीरे-धीरे लिखना शुरू किया। पहले मैंने छंदों के बारे में जाना। इसके बाद गजल लिखी और कविता लिखने के बाद अब गीत लिखने लगा हूं। एक गीत संग्रह को युवा रचनाकार पुरस्कार भी मिल चुका है। मुझे हिंदी को लेकर ही काम करना है। उसे खोया हुआ सम्मान दोबारा दिलाना है। इसके लिए युवाओं को ही आगे आना होगा।

-राहुल द्विवेदी, गीतकार

बचपन से लिखती आ रही हूं

हिंदी से बचपन से लगाव रहा है। स्कूल के समय से ही कुछ न कुछ लिखती आ रही हूं। अबतक मेरी तीन किताबें आ चुकी हैं और दो किताबें आने वाली हैं। पहली पुस्तक भावना के पृष्ठ पर थी। जिसके लिए मुझे हरिवंश राय बच्चन युवा गीतकार सम्मान भी मिल चुका है। फिलहाल मैं बाल गीत लिख रही हूं। वैसे मैंने एलएलबी किया हुआ है और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हूं। इसके अलावा, नई प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए चारु काव्यांगन नाम से साहित्यिक संस्थान भी है। जहां नए लोगों को मंच देने का काम किया जाता है। हिंदी हमारी मातृभाषा होने के साथ संवाद की भी भाषा है। इसलिए इसे प्रचार-प्रसार के लिए लगातार काम कर रही हूं।

-डॉ। रेनू द्विवेदी, वकील और गीतकार

धीरे-धीरे रुझान बढ़ता गया

मैंने हिंदी साहित्य, सूक्ष्म अर्थशास्त्र, शिक्षा शास्त्र में पीजी किया है और मुझे बीएड व मानद उपाधि भी मिल चुकी है। मुझे बचपन से ही हिंदी कविताएं सुनना एवं याद करना बेहद अच्छा लगता था। धीरे-धीरे इस ओर रुझान बढ़ने लगा और खुद से ही रचनाओं का सृजन करना शुरू कर दिया। मातृभाषा होने के कारण रुझान का होना स्वाभाविक था। मैं लगातार हिंदी को बढ़ावा देने का काम कर रहा हूं। मैं वीर रस का कवि हूं। मेरी भगवान राम पर कविता 'प्रभु राम हमारे नायक हैं' और 'मैं भारत हूं' रचना पूरे देश में प्रसिद्ध है। इसके अलावा हिंदी संस्थान से रांगेय राघव पुरस्कार, भाऊराव देवरस सेवा न्यास से युवा रचनाकार सम्मान समेत कई सम्मान मिल चुके हैं।

-अतुल वाजपेयी, कवि