दिमाग में नेचुरली डोपामाइन रिलीज होने पर इंसान को मिलती है खुशी

आर्टिफिशियल प्लेजर के लिए ड्रग्स के आदी बन रहे मेरठी नौजवान

Meerut। कुछ पल का सुकून, टेंशन से निजात, दुनियादारी से मुक्ति या कहें कि आर्टिफिशियल प्लेजर समेत शून्य की खोज वाली चाह अब यंग जनरेशन को नशीली दुनिया के उस पायदान पर ले गई है, जहां नशे के असीमित सोर्स और स्टेज हैं। मेडिकल एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक जब रूटीन जिंदगी में इंसानी दिमाग नेचुरली डोपामाइन रिलीज करता है तो व्यक्ति को खुशी का एहसास होता है। मगर हर वक्त उसी एहसास में बने रहने की ललक के चलते युवा नशे के आदि होते जा रहे हैं। ड्रग्स के माध्यम से आर्टिफिशियल प्लेजर की तलाश के चलते युवा खुद को नशे की दुनिया में डुबो रहे हैं। नशे का कारोबार करने वाले युवाओं की रगों में हेरोइन, कोकीन और एलएसडी का जहर घोल रहे हैं, जो युवाओं को आर्टिफिशियल प्लेजर के साथ ही मानसिक रूप से बीमार भी बना रहा है।

1. हेरोइन

यह ड्रग्स अफीम के पौधे मिलती है। इस अफीम को पहले साफ किया जाता है फिर इससे ही केमिकल हेरोइन बनाई जाती है।

शरीर पर प्रभाव

जब हेरोइन मुंह से, इंजेक्शन के माध्यम से या सिगरेट के माध्यम से शरीर में जाती है तो यह अफीम में बदलकर दिमाग पर असर डालना शुरू कर देती है। इसके असर से प्रभावित दिमाग के नर्वस सेल्स डोपामाइन रिलीज करते हैं और दिमाग में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर व्यक्ति को आर्टिफिशियल प्लेजर का अहसास कराने लगता है। यही सकून इस नशे का आदी होने का प्रमुख कारण बन जाता है। इस ड्रग्स के लगातार उपयोग से नसों और हार्ट वॉल्व में संक्रमण का खतरा बन जाता है। लंबे समय तक हेरोइन यूज करने से तपेदिक और गठिया जैसे रोग भी हो सकते हैं।

2. कोकीन

असल में हॉस्पिटल में कोकीन का इस्तेमाल टोपिकल एनेस्थेटिक के रूप में किया जाता है, यानि बेहोश करने वाली दवा के रूप में। यह आमतौर पर नाक के माध्यम से सूंघने या मसूड़ों पर रगड़कर इस्तेमाल किया जाता है। कुछ मामलों में तेजी से रिएक्शन लेने के लिए इसका इस्तेमाल पानी में घोलकर इंजेक्शन के रूप में भी किया जाता है।

शरीर पर प्रभाव

कोकीन के सेवन से तेजी से दिमाग में डोपामाइन का स्तर बढ़ जाता है। यह नर्व सिस्टम को प्रभावित कर व्यक्ति को खुशी की चरम सीमा का अनुभव कराने लगता है। इस ड्रग को लेते ही इंसान के दिमाग की संरचना बदलने लगती है। सिरदर्द, उबकाई, हाथ-पैरों चेहरे की मांसपेशियों में खिचाव, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, हाई बीपी, तापमान में बढ़ोतरी, तेज सांस आदि का असर कोकीन लेने के 30 मिनट के अंदर ही शुरू हो जाता है। अधिक मात्रा में लेने से इससे शरीर में ऐठन, झटके लगना और बेहोशी तक आ जाती है। जिससे व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।

3- एलएसडी

यह ड्रग्स गोलियां या जिलेटिन के रूप में आती है। यह एक प्रकार का अरगट कवक है जो राई जैसे अनाज पर बढ़ता है। इसका कोई मेडिकल उपयोग नहीं है लेकिन एलएसडी लेने वाले को कुछ ही समय में आर्टिफिशियल प्लेजर भरी दुनिया के नजारे मिलने लगते हैं। इसी तलाश में एलएसडी का चलन युवाओं में क्रेज बनता जा रहा है।

शरीर पर प्रभाव

इसे लेने के बाद एलएसडी दिमाग में सेरोटोनिन रिसेप्टर्स को तेजी से एक्टिव करना शुरु कर देता है। जिससे दिमाग की गतिविधियों में तेजी और इमेजिंग आने लगती है। यह दिमाग को बहुत तेजी से प्रभावित करता है। लंबे समय तक इस ड्रग्स के सेवन से इंसानी दिमाग के समझने और सोचने की क्षमता कम होने लगती है।

अलग-अलग ड्रग्स में अलग-अलग तरह के हानिकारक केमिकल पाए जाते हैं। जो तरह-तरह का असर दिमाग और शरीर पर डालते हैं। मगर सब ड्रग्स लेने के तरीके और उसकी डोज पर निर्भर करता है। जरुरी है कि समय से पहचान कर पॉजिटिव वे में नशे की लत को छुड़ाने का प्रयास किया जाए। अन्यथा यह जानलेवा भी जो सकता है।

डॉ। विकास सैनी, न्यूरो साइकेट्रिस्ट

नशे के आदि लोगों को रिकवर होने की 30 प्रतिशत तक संभावना होती है। वह भी जरुरी है कि हम समय से उनकी पहचान करके इलाज दें। आज का युवा काम के दबाव के चलते कृत्रिम खुशी की तलाश में नए-नए ड्रग्स का एक्सपेरीमेंट कर रहा है। आजकल ड्रग्स को ज्यादा जहरीला और एडवांस बनाया जा रहा है ताकि जो इन्हें एक बार ट्राई करे वो इनका आदी बन जाए।

डॉ। रवि राणा, साइक्लोजिस्ट