मेरा नाम छाया कराना है, मेरा घर मेरठ के पास खरखौदा में हैं। बचपन में क्रिकेट की बॉल से खेलना मेरा शौक था, लेकिन यह शौक कब जुनून में तब्दील हो गया मुझे पता नहीं चला। यही जुनून अब करियर बन गया है। मेरे पिता धीरज सिंह खरखौदा में मेडिकल स्टोर चलाते हैं। वे कैंसर से पीडि़त हैं। मां गायनकोलॉजिस्ट हैं, पिता के बीमार होने के बाद सारी जिम्मेदारी मां ही उठा रहीं हैं।
लडक़ों के साथ खेलती थी
आमतौर पर मैं भी बच्चों की तरह गली क्रिकेट खेलती थी। मोहल्ले के लडक़ों के साथ क्रिकेट की पिच पर दिनभर चौके छक्के लगाती। मेरी उम्र करीब 6 से 8 साल की रही होगी, मैं बच्चों की टीम की कैप्टन बन गई थी। मेरा भाई भी मेरे साथ क्रिकेट खेलता था। अमूमन हम दोनों घर में ही बैट बॉल से खेला करते थे, तो गाहे-बगाहे मम्मी डांटती भी थीं। कि &इन्हें देखो घर में चौके छक्के जड़ रही है&य।
सभी तालियां बजाते थे
अच्छा तो तब लगता था कि लडक़ों की टीम के साथ खेलते हुए अच्छे खासे रन बनाती थी, तो सभी तालियां बजाते थे। कहते थे कि लाली बहुत बढिय़ा खेलती थी। अब धीरे-धीरे क्रिकेट ही मेरे जीवन का हिस्सा बन रहा था। हाथों में बैट को थामकर घंटों प्रैक्टिस करती थीं। टीवी पर मैच देखकर शॉट खेलना सीखती थी। मम्मी पापा भी यह सब कुछ देखकर अचंभित हो जाते थे। कि बेटी क्या करने वाली है। पहले वो डांटते थे, फिर उन्होंने मेरी स्पोट्र्स फीलिंग को समझा।
महिला क्रिकेट के बारे में पता नहीं था
मुझे यह नहीं पता था कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम भी होती है। वहां भी महिलाएं क्रिकेट खेलती हैं। मुझे सिर्फ पुरुष क्रिकेट टीम के बारे में जानकारी थी। मैं क्लास 8 में थी, जब 2007 में स्कूल की ओर से जूनियर खेली। तब पता चला कि क्रिकेट में महिलाओं की भी टीम होती है। यही मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। मैं संकल्प लिया कि अब क्रिकेट ही जीवन है और यही करियर है।
दिन-रात खूब प्रैक्टिस की
अब रास्ता सीधा था और मंजिल सामने। भारतीय महिला क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाने के लिए मैंने प्रैक्टिस शुरू की। इसके लिए कैलाश प्रकाश स्टेडियम में कोच नवीन त्यागी की देखरेख में ट्रेनिंग शुरू की। इसके बाद साल 2011 में संजय रस्तोगी सर के निर्देशन में प्रैक्टिस की।
अंडर-19 में खेला
साल 2019 में हरियाणा से रणजी खेला। उसके पहले 2017 में टी -20 भी खेला। वहीं, साल 2011 से 2013 तक लगातार तीन साल अंडर-19 टीम के साथ खेला। साल 2011 में टीम ने चैंपियनशिप भी जीती थी। खेल के साथ-साथ मैंने हरियाणा यूनिवर्सिटी से बीए बीपीएड कंप्लीट किया।
बेटियों के लिए कम मौके
मैं यह देखती थी कि मेरठ और आसपास के गांव में शूटिंग, एथलेक्टिस, रेसलिंग आदि गेम्स में तो बेटियां बेहतरीन प्रदर्शन कर रहीं हैं, लेकिन क्रिकेट में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें पर्याप्त मौके नहीं मिल पाते हैं। इसलिए महिला क्रिकेट में मेरठ के खिलाड़ी नहीं पहुंच पाते हैं। इस संघर्ष को मैने खुद देखा और समझा था। इसलिए मैंने संकल्प लिया कि मेरठ की बेटियों को भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुंचाकर ही दम लूंगी।
हाथों में छाले पड़ गए
पहले मैंने कनोहरलाल के मैदान पर कुछ लड़कियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की। यहां बहुत गंदगी थी। एक दिन मैंने और अन्य लड़कियों ने खुद इस मैदान की गंदगी साफ की। मैं जब घर आई तो हाथों में छाले हो गए थे। इसे मेरी मां कमलेश तोमर देखा, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा कि बेटा अब भटकने की जरूरत नहीं है। मां ने ही बिजली बंबा बाईपास स्थित करीब 3 हजार वर्ग मीटर खेत की जमीन पर क्रिकेट एकेडमी तैयार कराई। तभी से यहां पर बेटियों को मैं क्रिकेट की ट्रेनिंग दे रही हूं।
धमक जमा रहीं बेटियां
कई बेटियां बहुत अच्छा कर रहीं हैं। इस समय अनम राणा तमिलनाडु में अंडर 19 का कैंप कर रही है। अर्शी चौधरी भी तमिलनाडु में सीनियर कैंप में है। इसके अलावा ऋतु सिंह भी दिल्ली से खेल रही है। नंदिनी भी अंडर-19 की तैयारी कर रही है। मेरी एकेडमी में कई ऐसी बच्चियां हैं जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। ऐसी लड़कियों को भी ट्रेनिंग देकर क्रिकेट की पिच पर बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए उत्साहित करती हूं। बस मेरा यही एक सपना है कि वूमन क्रिकेट टीम में भी मेरठ से झूलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना, शेफाली वर्मा, हरमनप्रीत कौर जैसी खिलाड़ी निकलें।
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पिता के अधूरे सपने को करूंगी पूरा : अनम

मेरठ में तारापुरी की रहने वाली अनम बहुत अच्छी विकेट कीपर है। अनम अपने पिता के जाने के बाद से उनके अधूरे सपने को पूरा करने में जुटी हैं। 5 साल पहले अनम के पिता का हार्ट अटैक से देहांत हो चुका है। अनम ने भी अपनी कोच छाया कराना की देखरेख में ट्रेनिंग ली है। अनम ने बताया कि मुस्लिम परिवार से हूं, तो क्रिकेट खेलने का विरोध होता था, हालांकि मेरे पापा साथ थे। उन्होंने ही मुझे क्रिकेट में जाने के लिए प्रेरित किया। मैं एक दिन विक्टोरिया पार्क में ट्रायल के लिए गई थी, मेरा सिलेक्शन हो गया। वहीं पर मुझे छाया दीदी मिली। वे ही मुझे अपने साथ ले क्रिकेट सिखाने के लिए ले आईं। मेरी जिंदगी को बदलने में छाया दीदी का बहुत रोल है। मैं बीते 4 साल से छाया दीदी के साथ हूं। इस समय मैं तमिलनाडु में अंडर 19 कैम्प में हूं जो छाया दीदी की बदौलत हूं। मेरा बस एक सपना है कि भारतीय महिला टीम में खेलकर पापा का सपना पूरा कर सकूं।
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देश के लिए खेलने की है चाहत : अर्शी
मेरठ की अर्शी चौधरी इन दिनों तमिलनाडु में सीनियर कैंप में है। उनके पिता का काम प्लास्टिक रिसाइकिल का है। अर्शी ने अपने स्कूल से मैच खेलना शुरू किया था। अर्शी ने बताया कि एक बार जामिया से आदिल सर आए थे तो वहां से मुझे दिल्ली खेलने ले गए, उसके बाद कोच रजनीश से मैने सीखा और नेशनल स्टेडियम खेलने गई, उसके बाद मैं मंसूरपुर अपने रिलेटिव के आई थी। वहां स्टेडियम जाने लगी तो वहां पर मेरी मुलाकात छाया दीदी से हुई तो उन्होनें मेरी बैटिंग देखी तो मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया और अपने साथ मेरठ ले आई। उनकी देखरेख में मैं बेहतर कर रही हूं।
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किसान पिता से मिली प्रेरणा : रश्मि
अंडर-16 की तैयारी कर रहीं रश्मि अंजू को अपने पिता से ही खेलने की प्रेरणा मिली है। रश्मि ने बताया कि मेरे पिता किसान हैं। एक दिन मैनें उनको खेती करते हुए देखा तो मन में बना लिया कि मुझे कुछ करना है। पहले मैं गली में क्रिकेट खेलती थी। मैनें सोचा इसी को जुनून बना लूं, मैने चार साल पहले अपनी एक जानकार से इसके बारे में जानकारी ली और मुरादाबाद से मेरठ पहुंची। इसके बाद विक्टोरिया पार्क में आयोजित ट्रायल में मेरा चयन हो गया। वहीं छाया दीदी ने मेरी बैटिंग देखी। उन्होनें उस समय मुझसे कहां तुम अच्छी बैटिंग करती हो। मैनें कहा पर कैसे आगे बढू़ंगी ये नहीं पता। क्या कुछ करना है। इसके बाद दीदी ने कहा कि मेरे साथ चलो मैं सिखाऊंगी। तभी से दीदी की देखरेख में सीख रही हूं।