कारीगरों को घर चलाने के लिए करनी पड़ रही मशक्कत

कारीगरों ने कहा, करते रहेंगे तिरंगा बनाने का काम

Meerut। हर वर्ष 15 अगस्त के मौके पर देश की राजधानी दिल्ली समेत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी मेरठ के गांधी आश्रम में बने शांति, त्याग और समृद्धि के रंगों को ख़ुद में समेटे तिरंगे ही लहराते हैं। मगर कोरोना काल में कम हुई तिरंगे की डिमांड ने कारीगरों की कमर ही तोड़ दी है। सैलरी का संकट सिर पर खड़ा है लेकिन कारीगरों का जज्बा हर सकंट से बड़ा है। कारीगरों का कहना है कि वो आखिरी सांस तक तिरंगा बनाने का काम करते रहेंगे।

पहली बार डिमांड कम

बता दें कि मेरठ में आजादी के बाद से तिरंगा झंडा बनाया जाता है और पूरे देश में डिमांड पर सप्लाई किया जाता है। मगर इस बार कोरोना काल के चलते प्राइवेट और प्रशासनिक कार्यक्रमों पर भी पाबंदी है। वहीं प्रभात फेरियां निकालने पर भी बैन होने के साथ ही स्कूल और कॉलेज भी बंद चल रहे हैं। आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि गांधी आश्रम में बने तिरंगे की डिमांड कम हुई है।

सैलरी का संकट

जब गगन में राष्ट्रध्वज लहराता है तो मन गर्व से भर जाता है। देशभक्ति का अहसास न्यारा है, तभी सब कह उठते हैं विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा उंचा रहे हमारा। तिरंगा झंडा प्रतीक है हमारे देश के सम्मान, प्रतिष्ठा, एकता और अखंडता का। इतना ही नहीं तिरंगे के तल खड़े होकर जो जज्बा रोमांच बनकर व्यक्ति के लहू में दौड़ता महसूस होता है, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। अब जरा सोचिए कि तिरंगा बनाने वाला कैसा महसूस करते होंगे। बताते चलें कि तिरंगा बनाने वालो के जुनून में कमी नहीं आई है लेकिन केवल जुनून पेट नहीं भरता। आलम ये है कि तिरंगा बनाने वाले कारीगरों को वक्त पर सैलरी भी नहीं मिल पा रही है। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। मगर कारीगरों का कहना है कि चाहे जो हो जाए लेकिन वह आखिरी सांस तक यही काम करते रहेंगे। भारत हमको जान से प्यारा है, सबसे न्यारा गुलिस्तां हमारा हैयही गीत गुनगुनाते हुए तिरंगा बनाने वाले कारीगर सुबह से लेकर शाम तक अपने काम में जुटे रहते हैं। चरखा चलाते हुए बाबूजी कहते हैं कि इस काम मे उन्हें असीमित शांति मिलती है। शांति और समृद्धि के रंगों को ख़ुद में समेटे मेरठ का तिरंगा देशभर में लहराता है तो इनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है कि इस आन-बान-शान को तैयार करने में उनका भी अंश मात्र योगदान रहा है, उनके लिए बस इतना ही काफी है।

सरकार से मदद की दरकार

गांधी आश्रम संस्था के मंत्री पृथ्वी सिंह रावत का कहना है कि अगर सरकार की तरफ से तिरंगा कारीगरों को कुछ मदद मिल जाए तो बेहतर होगा क्योंकि इन कारीगरों ने तिरंगे के अलावा कोई और काम न करने की कसम खाई है। उन्होंने बताया कि कई परिवार तो ऐसे है जो पीढि़यों से इसी काम को करते आ रहे हैं। मेरठ में गांधी आश्रम के ऑर्डर पर सुभाषनगर के नत्थे सिंह का परिवार कई पीढि़यों से तिरंगा बना रहा है। नत्थे सिंह का निधन हो चुका है लेकिन तिरंगों को बनाने का काम उनके परिवार ने संभाल रखा है।

लकड़ी से सांचे से तैयार

मेरठ के गांधी आश्रम में पहले की तरह ही तिरंगा आज भी लकड़ी के सांचे से बनाया जाता है। सांचे के बीच में कपड़ा रखकर उस पर चक्र बनाया जाता है, इसके बाद कपड़े को केसरिया और हरे रंग से रंगा जाता है। एक तिरंगा बनाने में उसे कितने स्टेप से गुजरना पड़ता ये भी जानकर आप हैरान रह जाएंगे। पहले चरखे से सूत काता जाता है और फिर कपड़ा तैयार होता है। उसके बाद कपड़े की रंगाई होती है। फिर मानक के हिसाब से इसे तैयार किया जाता। बाद में तिरंगे के बीच के चक्र की छपाई होती है।