- डेढ़ माह से अस्पताल की गैलरी में पड़ी जीत कौर

- वो बार-बार हाथ जोड़कर करती है अपने इलाज की दुहाई

Meerut वो बार-बार हाथ जोड़कर अपनी मदद की दुहाई करती है। उसकी नम आंखों में किसी फरिश्ते की तलाश दिखाई देती हैं। बूढ़ी आंखों से अब तो दिखना भी बंद हो गया है। कमर और पैर की टूटी हड्डी के सहारे वो जिला अस्पताल में डेढ़ महीने से अपनी लाचार किस्मत को कोस रही हैं। मगर बदकिस्मती से उसको न तो अस्पताल में कोई पूछ रहा है, न ही कोई सगा संबंधी। जब भी उससे किसी अपने के बारे में पूछा जाता है, तो वो बस यहीं बोलती है, जो अपना था उसी के कारण तो ये हालात हुए हैं। ये कोई कहानी नहीं, इंसानियत में छुपे लालच की हकीकत है। शुक्रवार को जिला अस्पताल में महिला वार्ड की गैलरी में लाचार पड़ी जीत कौर डेढ़ माह से अपने इलाज को तरस रही है। मगर न तो उसे कोई अस्तपाल में पूछ रहा है न ही उसका इलाज करने को तैयार है।

काश कोई तो सुन ले मेरी

शुक्रवार को अस्पताल की गैलरी में लाचार पड़ी जीत कौर हाथ जोड़कर बस यही दुहाई कर रहीं थी। काश उसकी कोई तो सुन ले। जीत ने बताया कि वह डेढ़ माह से अस्पताल में पड़ी हुई हैं। उसके भतीजे ने उसे मारपीट कर बुरी हालत में किठौर के ललियाना गांव से मेरठ आने वाली बस पर बैठा दिया था। उसने बताया वह एक दो दिन तक जली कोठी के पास सड़क पर ही रहीं, लेकिन जब किसी ने उसे देखा तो किसी तरह जिला अस्पताल में पहुंचा दिया था। जीत ने बताया कि उसे एक महीने बाद जाकर उसका यहां ख्म् सितम्बर में पर्चा तो बनाया गया है। मगर पर्चे पर एक दो गोली देकर इलाज करने से साफ मना कर दिया गया है। वह अब किसी भी डॉक्टर या कर्मचारी से इलाज की बात करती हैं तो हर कोई उसे अनदेखा कर देता है।

मांग कर चला रही है गुजारा

जीत ने बताया कि उसके पास तो न तन पर पहनने के लिए कपड़ा है न ही खाने को कुछ है, बस मांग कर गुजारा चला रहीं हैं। यहां एडमिट मरीजों के साथ जो भी तीमारदार आते हैं, उनसे ही कुछ न कुछ मांगकर गुजारा चला लेती हैं। लेकिन अस्पताल में तो हर कोई ये कह देता है अगर इलाज के बाद मर गई तो उल्टे हम पर इल्जाम आ जाएगा, इसलिए हम तेरा इलाज नहीं करने वाले हैं और न ही कुछ खिलाने वाले हैं।

दो लाख की थी मालकिन

जीत ने बताया कि उसके परिवार में उसका कोई नहीं है। एक भतीजा प्रदीप है जिसके पास वो रह रहीं थी। जीत के खाते में दो लाख रुपए थे, जो उसके थे। जीत ने सोच रखा था इस बुढ़ापे के समय में उसकी सेवा करेगा वह ये पैसा उसी को देगी। जीत ने बताया उसके भतीजे प्रदीप ने उसे कुछ महीनों पहले ही उसे बहला फुसलाकर सारा पैसा निकलवाकर अपने पास रख लिया। जिसके बाद उसकी बहुत पिटाई की। जीत ने बताया उसकी कमर व पैर की हड्डी टूट चुकी है, उसमें हिलाते हुए भी दर्द होता है। लेकिन कोई भी उसका यह घाव भरने की नहीं सोच रहा है। जीत से उसके किसी अपने के होने की बात पूछने पर उसने यहीं जवाब दिया कि जो अपने थे उनके कारण ही ये हालात हैं तो फिर गैरों से क्या उम्मीद लगाए।

जहां जगह मिलती है सो जाती हूं

तेज धूप हो या फिर धूल मिट्टी अब तो जहां जगह मिले अस्पताल में वहीं सो लेती हूं। जीत का बस यहीं कहना था किसी तरह से अब तो रहे सहे दिन कट जाए, क्योंकि अस्पताल में उसका इलाज नहीं हो रहा है। बाहर इलाज के लिए पैसा नहीं है, इसलिए कभी मिट्टी में पेड़ के नीचे तो कभी अस्पताल की गैलरी में फर्श पर ही क्षण भर के लिए सोने की कोशिश करती हूं।

सीएमएस को पता नहीं

सीएमएस डॉ। सहदेव वालिया ने कहा सुना तो है कि कोई बुजुर्ग लावारिस महिला अस्पताल में है, मगर पूरी जानकारी नहीं है। अब मामला जानकारी में आया है तो इस बारे में पहले थाने में रिपोर्ट लिखवाई जाएगी, उसके बाद ही इलाज शुरू किया जाएगा। अभी तक इलाज शुरू न करने का कारण बताते हुए वहां के डॉक्टर ने कहा कि लावारिस के इलाज करने से उसे कुछ होने पर अस्पताल पर ही इलाज में लापरवाही का आरोप थोपा जाएगा। इसलिए ही पहले यह थाने में सूचना देंगे और फिर इलाज होगा।