मेरठ ब्यूरो। मेडिकल कॉलेज में लगे फायर सेफ्टी सिस्टम ही बुझे-बुझे से नजर आते हैं। हालांकि, मेडिकल कॉलेज प्रशासन का दावा है कि इमरजेंसी में यह सिस्टम आग पर काबू पा लेगा, लेकिन हकीकत देखेंगे तो होश उड़ जाएंगे।
पौने पांच करोड़ का प्रोजेक्ट
गौरतलब है कि 10 जून 2016 को मेडिकल कालेज के फायर सेफ्टी सिस्टम का प्रोजेक्ट शुरु किया गया था। करीब 4.82 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट के तहत पूरे कॉलेज व अस्पताल को कवर किया जाना था। प्रोजेक्ट के तहत काफी संख्या में पाइप मंगाए गए थे, लेकिन आज तक पाइपलाइन का जाल अधूरा है। खासतौर पर पुरानी बिल्डिंग के फ्लोरों तक पाइपलाइन जगह जगह अधूरी पड़ी है या पहुंची ही नही है। कई जगह खुले में पड़े पाइपों में जंग लग चुकी हैं। वहीं नई इमरजेंसी समेत पुरानी बिल्डिंग में लगाए गए फायर अलार्म, वाटर स्प्रिंकल तक शोपीस बने हुए हैं। आग लगने पर ये चलेंगे इसकी कोई गारंटी तक नही है। क्योंकि इनकी वायरिंग तक जगह जगह खराब है।

रिवायरिंग का काम भी अधूरा
गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज परिसर करीब 155 एकड़ में फैला हुआ है। लेकिन इसके बाद भी यहां करीब 200 से अधिक अग्निशमक यंत्र लगे हुए हैं। इसमें करीब 150 सिलेंडर एडमिनिस्ट्रेशन ब्लॉक व पुरानी बिल्डिंग में लगे हैं, जबकि करीब 50 से अधिक नई इमरजेंसी में। कई जगह फायर अलार्म भी खराब हैं। 1966 के बाद से यहां 2021 में रीवायरिंग का काम शुरु किया गया लेकिन अभी तक यह काम पूरा नही हुआ है। क्योंकि यहां बिजली की वायरिंग बेहद पुरानी और जर्जर थी इसलिए यह अलार्म भी राम भरोसे चल रहे हैं। वहीं पुरानी बिल्डिंग के चारों फ्लोर केवल इन्हीं अग्निशमन यंत्रों के भरोसे सुरक्षित है हालांकि यहां इमरजेंसी के दौरान पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन पहुंचाई जा चुकी है। लेकिन यह पाइप लाइन भी जगह जगह अधूरी है या ब्लॉक है। जबकि कई विभागों में पुराना लकड़ी का फर्नीचर आदि आसानी से जलने वाला सामान इधर-उधर पड़ा है।

हमारे यहां फायर सेफ्टी सिस्टम को पूरी तरह अपडेट कर दिया गया है। सभी फ्लोर तक पाइप लाइन पहुंंचाई जा चुकी है। वाटर टैंकर से कनेक्ट किया जा चुका है। फायर अलार्म और वाटर स्ंिकलर्स को भी मॉक ड्रिल कर चेक करते रहते हैं।
- वीडी पांडेय, मीडिया प्रभारी मेडिकल कालेज

मेडिकल कॉलेज में व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना चाहिए। अगर कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा। जिम्मेदार अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
रमन ढींगरा
मेडिकल कॉलेज में करोड़ों रुपए के प्रोजेक्ट बेकार हो गए हैं।फायर बुझाने वाले यंत्र ही यहां बुझ गए हैं। ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों को सोचना चाहिए।
अजय
मेडिकल कॉलेज में रोजाना हजारों लोग आते हैं। कई लोग तो भर्ती होते हैं। ऐसे में अगर कोई अनहोनी हो गई तो जिम्मेदार कौन होगा।
सोनू