मेरठ (ब्यूरो)। वो गौरैया जो घर के आंगन से लेकर छतों तक अठखेलियां करती नजर आती थी, वो गौरेया जो दीवार पर लगे आईने में चोंच से ठक-ठक करती थीन जाने कहां चली गई है, अब दिखाई नहीं देती है। लगता है अब उसके संरक्षण की नौबत आ गई है। पक्षी प्रेमियों की कोशिशों के चलते शहरों से लेकर गांव-देहात से लगभग विलुप्त हो चुकी गौरया अब आर्टिफिशियल घोसलों में नजर आने लगी है। मगर अभी भी गौरेया अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है।

1358 गौरेया की लोकेशन
गौरेया का अस्तित्व बचाने के लिए वन विभाग ने पिछले एक माह से गौरया के संरक्षण के लिए जागरूक अभियान चलाया हुआ है। इसके तहत 20 मार्च तक गौरेया की गणना कर उनकी लोकेशन को फोटो के माध्यम से एकत्र किया जा रहा है। वन विभाग ने फरवरी में जनपदवासियों से अपील की थी कि वह अपने-अपने क्षेत्रों में गौरया के बारे में जानकारी देते हुए जानकारी विभाग के इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर शेयर करें। इस अभियान के तहत 19 मार्च तक 38 लोकेशन पर 1358 गौरया होने की सूचना लोगों ने दी है। जबकि पिछले बार 85 लोकेशन 3343 गौरया होने की जानकारी मिली थी। अब 20 मार्च को विशेष अभियान चलाकर गौरेया की गणना की जाएगी।

इन लोकेशन पर अधिक मिल रही गौरेया
कैंट एरिया
मोदीपुरम
हस्तिनापुर
जागृति विहार एक्सटेंशन
शताब्दीनगर
गंगा सागर
मवाना रोड
गढ़ रोड़

गौरैया की फोटो और लोकेशन भेजें
गौरैया को विलुप्त होने के बचाने के लिए और गौरैया के संरक्षण के लिए वन विभाग ने व्हाट्सएप नंबर जारी किया हुआ है। गौरैया के घोंसले या फिर जहां वो अक्सर आती है तो उसका फोटो खींचकर वन विभाग और व्हाट्सएप नंबर 9410861386 पर भेजा जा सकता है। साथ ही वन विभाग द्वारा जीपीएस लोकेशन भी मांगी जा रही है। इस तरह 20 मार्च तक गौरया की गणना जारी रहेगी।

गौरेया के बारे में कुछ खास
बता दें कि गौरैया एक छोटी प्रजाति की चिडिय़ा है। यह एशिया, अमेरिका, यूरोप आदि देशों में पाई जाती है। शहरी इलाकों में गौरैया की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसैट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो शामिल हैं।

गौरया के लिए भोजन का संकट
कंक्रीट की इमारतें और रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग गौरया की संख्या मेरठ में ही नहीं पूरे भारत में कम हुई थी। अब यह पक्षी दिखने लगा है पर वरिष्ठ पक्षी विज्ञानी रजत भार्गव ने बताया कि शहरों में गौरया के लिए भोजन का संकट है विशेष रूप से ब्रीङ्क्षडग मार्च अप्रैल में इसका ब्रीङ्क्षडग सीजन होता है, इसे अपने चूजों को खिलाने के लिए लार्वा और छोटे कीटों की आवश्यकता होती है यहच् कच्ची नालियों, झाडिय़ों और गोबर आदि में पनपते हैं। शहर में यह उपलब्ध नहीं होते। बताया कि इसी लिए पार्कों और अगर घर में बगीचा हो तो वहां पर झाडियां आदि पनपने देना चाहिए। जहां से इस पक्षी को अपना भोजन मिल सके। घर में गमलों में कीकर, बोगेन बेलिया के पौधे लगाने चाहिए।

जिले में गौरेया के स्थलों को जीपीएस के माध्यम से तलाशा जा रहा है। गौरेया की गणना की 100 एंट्रीज के हिसाब से .1 प्रतिशत एरिया कवर हुआ माना जाता है। उसी हिसाब से गणना का अंदाजा लगाया जाता है। वन विभाग की टीम गौरेया के हैबिटेट को विकसित करने के लिए आम जन के सहयोग से प्रयास कर रही है।
राजेश कुमार, डीएफओ