मेरठ (ब्यूरो)। शहर में नगर निगम की चार पार्किंग हैं। इसके अलावा शहर में दर्जनों स्थानों पर अवैध पार्किंग चल रही हैं। क्योंकि निगम की टेंडर प्रक्रिया ही अभी पूरी नहीं हुई है। निगम द्वारा पार्किंग का टेंडर फाइनल न होने की वजह से फिलहाल शहर में अधिकतर सभी शॉपिंग प्लाजा, कॉम्पलेक्स, अस्पताल के बाहर तक अवैध पार्किंग का संचालन किया जा रहा है। कुछ प्लाजा संचालकों ने तो अपने व्यापारियों के वाहनों की सुरक्षा के लिए निजी पार्किंग बनाई हुई है। मगर वहां भी बाहरी लोगों से अवैध रूप से पार्किंग शुल्क लिया जा रहा है। हालांकि यह पार्किंग प्लाजा के अंदर होने के कारण प्लाजा में आने वाले ग्राहकों को सुविधा देती है लेकिन वसूली का कोई मानक नहीं है।

अवैध पार्किंग का मकडज़ाल
शहर में इस समय अवैध पार्किंग का धंधा खूब जोरों से चल रहा है। रसूखदार लोगों से सेटिंग कर कुछ दबंग किस्म के लोग सार्वजनिक इस्तेमाल की जगहों पर पार्किंग शुरू कर देते हैं। यही नहीं ये पार्किंग संचालक बिना किसी खौफ के न केवल लोगों से मनमानी रकम वसूलते हैं, बल्कि उसका विरोध करने पर मारपीट पर भी उतारू हो जाते हैं। सूत्रों की मानें तो पार्किंग के इस अवैध कारोबार में विभागीय अफसरों से लेकर शहर के राजनीतिक लोगों की भी खुली हिस्सेदारी होती है।

अवैध पार्किंग पर निगम शांत
शहर में जहां हर चौराहे और संस्थान पर अवैध पार्किंग की भरमार है। वहीं निगम की ओर से केवल 17 पार्किंग स्थलों को चिह्नित किया गया है। इनमें कैलाशी हॉस्पिटल कंकरखेड़ा, शॉप्रिक्स मॉल, किडनी हॉस्पिटल, मिमेहंस हॉस्पिटल, आनंद हॉस्पिटल, एपैक्स टॉवर, पीवीएस मॉल व एचडीएफसी बैंक आदि पार्किंग को अवैधता की श्रेणी में रखा गया है। जबकि अवैध पार्किंग पर निगम लगाम कसने की भी कवायद निगम प्रशासन द्वारा नहीं की जा रही है।

नहीं होती कार्रवाई
शहर में धड़ल्ले से हो रहे इस अवैध पार्किंग के कारोबार की खबर प्रशासन और नगर निगम को भी है। बावजूद इसके मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। निगम सूत्रों की मानें तो इस तरह के मामलों में कार्रवाई से पूर्व ही किसी न किसी रसूखदार का फोन आ जाता है और सारे मामले की वहीं हवा निकल जाती है। हालांकि इस मामले में जितने दोषी ये पार्किंग कारोबारी हैं, उससे अधिक दोषी नगर निगम के अफसर हैं।

पार्किंग मिलती नहीं तो मजबूरी में जो पार्किंग बनी हुई है, उसमें ही वाहन खड़ा करना पड़ता है। अब यह वैध है या अवैध इसकी जासूसी कौन करे।
अरुण

अवैध पार्किंग ही सही कम से कम बाजारों में अपने वाहनों के लिए सिक्योरिटी तो मिल ही रही है।
गौरव शर्मा

कॉप्लेक्स में पार्किंग व्यवस्था खुद निजी व्यवस्था होती है। अगर वहां पार्किंग न हो तो वाहन चोर एक भी वाहन ना छोड़ें।
डिपिन

अवैध पार्किंग का बस यही नुकसान है कि यहां मनमर्जी के पैसे वसूले जा रहे हैं। 20 से 30 रुपए एक एक घंटे के लिए ले लेते हैैं।
कृष्णा