स्पिक मैके के अनुभव कार्यक्रमों की श्रंखला में दीवान पब्लिक स्कूल के छात्रों ने कलाकारों से पूछे प्रश्न

Meerut। स्पिक मैके की ओर से कोविड महामारी को देखते हुए भारतीय कला व संस्कृति से सुसज्जित कार्यक्रम अनुभव को ऑनलाइन चलाया जा रहा है। इस कड़ी में भारतीय सिनेमा के जाने-माने लेखक व कलाकार जावेद अख्तर और शबाना आजमी से रूबरू होने वाले कार्यक्रम के ऑनलाइन संचालन की जिम्मेदारी छावनी स्थित दीवान पब्लिक स्कूल को मिली। स्पिक मैके से जावेद और शबाना का जुड़ाव करीब ढाई दशक का रहा है।

मिलने का जताया आभार

जावेद और शबाना ने बच्चों को भी स्वस्थ और सुरक्षित रहते हुए पढ़ाई के साथ ही देश की कला और संस्कृति से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम के दौरान जावेद अख्तर ने जज्बा, वक्त क्या है और खेल क्या है, शीर्षक की तीन कविताएं सुनाई। इन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद शबाना आजमी ने किया। कार्यक्रम के दौरान दीवान पब्लिक स्कूल के दो छात्रों को जावेद और शबाना आजमी से प्रश्न पूछने को मौका मिला।

पिता से गहरा रिश्ता

शबाना आजमी ने बताया कि मेरे पिता कैफी आजमी साहब के साथ मेरा बहुत गहरा रिश्ता था। उन्होंने बेटी समझकर कभी अंतर नहीं किया। हमेशा मेरे विचारों को महत्व दिया और आत्मविश्वास बढ़ाया। हमारे बचपने में जब हमारे घरों में उर्दू की महफिलें होती थी तब देख के अच्छा लगता था लेकिन कुछ ज्यादा समझ में नहीं आता था। मैं पर्दे के पीछे से झांकती थी। तब वह मुझे बुलाकर पास बिठाते और कहते पर्दे के पीछे नहीं पास बैठकर कर सुनिये।

बच्चे वहीं करते हैं

जावेद अख्तर ने कहाकि बच्चे वह नहीं करते हैं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है। बच्चे वहीं करते हैं जो बड़ों को करते हुए देखते हैं। जो बातें घर में होती हैं उनमें आधा सुनते हैं। आधी याद रह जाती हैं। वह भी उस समय समझ नहीं आती बल्कि बड़े होने पर कई सालों बाद समझ में आती हैं। यदि आपकी परवरिश मूल्यवान परिवार में हुई है जहां ओपन माइंडेड लोग हैं, धर्मनिर्पेक्षता है, लिटरेचर है, पोएट्री है, कला के प्रति आदर-सम्मान है वह आपमें स्वयं ही आ जाता है। हम लोग इस मामले में नसीब वाले हैं कि हमारे परिवार, रिश्तेदार कला से जुड़े थे। मैंने कैफी साहब के गुजर जाने के बाद एक कविता लिखी थी।