मेरठ (ब्‍यूरो)। 10 मई 1857 की क्रांति से ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को हिलाने वाला मेरठ आजादी के लिए किए गए हर आंदोलन में आगे रहा। देश के किसी हिस्से में राष्ट्रीय आंदोलन हुए, उसमें मेरठ सीधे जुड़ता रहा। यही कारण रहा है कि महात्मा गांधी से लेकर उस समय के लगभग सभी नेता समय-समय पर मेरठ आते रहे। राष्ट्रीय नेताओं के आह्वान पर मेरठ के लोग स्वदेशी से लेकर अंग्रेजों की खिलाफत तक में देश के साथ खड़े हुए थे। 15 अगस्त 1947 देश के आजाद होने से पहले हर आंदोलन में मेरठ केंद्र में रहा।

जब ली थी स्वदेशी की शपथ

वर्ष 1906 कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वदेशी के प्रयोग का आह्वान किया गया था। तब मेरठ के लोग भी राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने स्वदेशी की शपथ ली। वर्ष 1907 में जब गोपाल कृष्ण गोखले मेरठ आए तो मेरठ के लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया था। हिंदू और मुस्लिम सभी ने उन्हें एक बग्गी में बिठाया एक साथ खींचा था।

काले कानून का विरोध

इतिहासकार डॉ। केके शर्मा बताते हैं कि 1919 में रौलट एक्ट, जिसे देश में काला कानून कहा गया था। उसका मेरठ में जबरदस्त विरोध हुआ था। मेरठ में जगह-जगह सार्वजनिक प्रदर्शन किए गए। मेरठ के छात्रों ने हड़ताल की। काले कानून के विरोध में 13 अप्रैल को जलियावाला बाग नरसंहार की घटना हुई तो मेरठ के छात्रों दो सप्ताह तक हड़ताल की। शहर में धारा-144 लगाने के साथ ही जनसभा करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। बावजूद इसके मेरठ के उत्साहित लोगों ने सूरजकुंड में एक जनसभा की। लोगों ने अंग्रेजी सरकार विरोधी भाषण दिए। 17 अक्टूबर को खिलाफत दिवस पर पूरा शहर बंद रहा।

असहयोग आंदोलन

डॉ। शर्मा कहते हैं कि जनवरी 1920 में खिलाफत सम्मेलन में रघुकुल तिलक शामिल हुए थे। गांधीजी ने पहली बार असहयोग आंदोलन की योजना इसी सम्मेलन में रखी थी। ऐसे में हम कह सकते हैं कि मेरठ वह स्थल है, जहां असहयोग आंदोलन का भी बीजारोपण हुआ। 1921 में महात्मा गांधी जब मेरठ आए तो उनका जोरदार स्वागत हुआ था। मेरठ से करीब 50 हजार लोग उनका भाषण सुनने के लिए एकत्रित हुए थे। इस आंदोलन में मेरठ के अनेक लोग जेल भी गए। अंग्रेजों की सख्ती के बाद भी विदेशी चीजों का बहिष्कार जारी रहा।