एमडीए वीसी की सुनवाई में हुआ खुलासा

तत्कालीन कर्मचारियों और अधिकारियों की फंसी गर्दन

विजीलेंस से होगी फर्जीवाड़े की जांच

Meerut। मेरठ विकास प्राधिकरण की जड़ों से उपजे संपत्ति खरीद-फरोख्त घोटाले की परतें अब खुल रही हैं। मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष राजेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि एमडीए अधिकारियों और कर्मचारियों ने कुछ कथित लोगों के साथ मिलकर एक 'गिरोह' बनाया है, जो सालों से प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में घोटाला कर रहा है। बीते दिनों एक केस की सुनवाई के दौरान घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। प्राधिकरण उपाध्यक्ष ने सभी पक्षों को 2 दिसंबर को प्राधिकरण में तलब किया है। वहीं पूरे प्रकरण की जांच शीर्ष एजेंसी से कराने के लिए शासन को लिखा है।

जरा समझ लें

मेरठ में प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में लंबे समय से घोटाला चल रहा है। एमडीए के अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ कुछ बाहरी लोगों का एक गैंग है, जो छदम संपत्ति की खरीद-फरोख्त करते हैं। एमडीए रिकार्ड में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर ऐसे प्लाट्स की बिक्री कर देते है जो 'मौजूद' ही नहीं है और किसी और के प्लाट के किसी और के नाम कर देते हैं। ऐसे में फंसते वो लोग हैं जो लुभावनी बातों में आकर विवादित प्रॉपर्टी की बिना जांच-पड़ताल खरीद कर लेते हैं। एमडीए की सभी आवासीय कॉलोनियों में सैकड़ों की संख्या में ऐसे केसेज हैं तो वहीं ठगी का शिकार हुए लोग लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी सड़क पर हैं। अब यह लोग एमडीए के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे ही एक केस का खुलासा एमडीए उपाध्यक्ष ने सुनवाई के दौरान किया है।

प्लॉट एक दावेदार दो

मेरठ की डिफेंस एन्क्लेव आवासीय योजना। एमडीए ने इन योजना में जमीन को एक्वायर किया और आर्मी की संस्तुति पर आर्मीमैन और रिटायर्ड आर्मीमैन को प्लाट्स का अलाटमेंट दिया। इसी योजना में 2002 में बी-287, बी-286 नंबर के 200-200 वर्ग मीटर के प्लाट कर्नल ज्ञानेश शर्मा को अलाट किए गए। दोनों ही प्लाट्स की कर्नल ने प्राधिकरण की किस्तों के भुगतान के बाद रजिस्ट्री करा ली। वहीं दूसरी ओर प्राधिकरण ने डिफेंस एन्क्लेव योजना में ही ए-312 नंबर का एक प्लाट नीलामी प्रक्रिया के तहत आवंटी मोहित को 2016 मे आवंटित कर दिया। 120 वर्ग गज के इस प्लाट की बिक्री कागजों में हो गई और इसका मुख्तार-ए-आम भी मोहित ने एक अन्य के नाम कर दिया। इस बीच आवंटी को मालूम चला कि उसका ए-312 नंबर का प्लाट मौके पर है ही नहीं बाद उसे प्राधिकरण ने कर्नल का प्लाट बी-287 अलाट कर दिया। इधर मोहित के मुख्तार-ए-आम ने बदले में मिले 200 वर्ग मीटर के प्लाट की बिक्री मिथलेश शर्मा के नाम कर दी। मिथलेश शर्मा जब कब्जा लेने पहुंची तो मालूम चला कि यह प्लाट को कर्नल ज्ञानेश शर्मा का है। मुख्तार-ए-आम ने मिथलेश को 45 लाख रुपए में प्लाट बेंचा था। वहीं दूसरी ओर 2019 में कर्नल ने भी इस प्लाट की रजिस्ट्री किसी और के नाम कर दी। इस केस में 60 वर्षीय महिला मिथलेश जेन्यून कस्टमर है जो अब प्राधिकरण के चक्कर काट रही है।

आवंटन में ऐसे हुआ खेल

एमडीए कर्मचारियों ने मिलीभगत कर करोड़ों के प्लाट नंबर ए-321 को कौडि़यों के दामों में मोहित को आवंटित किया। मोटी रकम लेकर मानकों के साथ छेड़छाड़ की गई।

मिलीभगत कर प्लाट ने मिलने पर एक ऐसे प्लाट को मोहित के नाम ट्रांसफर कर दिया गया जो पहले से कर्नल ज्ञानेश शर्मा के नाम आवंटित था।

एक ही प्लाट की दो बार बिक्री और नामांतरण भी किया गया। जबकि दोनों बार ग्राहक अलग-अलग थे। रजिस्ट्री विभाग की भूमिका पर भी उठीं उंगलियां।

प्राधिकरण के दो कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के बाद जानबूझकर मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया। जबकि दोनों कर्मचारियों के खिलाफ वीसी ने मुकदमे के आदेश दिए थे।

शासन भेजी रिपोर्ट

एमडीए उपाध्यक्ष ने इस केस के संबंध शासन में बातचीत की। और किसी सक्षम एजेंसी से जांच कराने की सिफारिश की है। वहीं उन्होंने संपत्ति विभाग को निर्देश दिए कि वे पूरे प्रकरण पर एक रिपोर्ट तैयार करें जिसमें तत्कालीन कर्मचारियों और अधिकारियों की भूमिका उजागर हो। वीसी ने इस केस में दोनों आवंटन से जुड़े 5 लोगों को नोटिस जारी 2 दिसंबर की सुनवाई में हाजिर होने के आदेश दिए हैं।

यह एक बड़ा भ्रष्टाचार है, जिसमें प्राधिकरण के अधिकारी-कर्मचारी कुछ बाहरी लोगों के साथ मिलीभगत कर लंबे समय से प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में घोटाला किया। करोड़ों के प्लाट्स कौडि़यों के बेचे गए। इस घोटाले की जांच अब शासन स्तर पर कराई जाएगी।

राजेश कुमार पाण्डेय, उपाध्यक्ष, एमडीए