मेरठ के कई चिकित्सक और एक शोध संस्था पहुंची दिल्ली हाईकोर्ट

याचिका में किया दावा, बुखार की दवा व एंटीबायोटिक से बढ़ीं मौतें

Meerut। कोरोना के इलाज के प्रोटोकाल को लेकर नई बहस छिड़ गई है। स्टेरायड व एंटीबायोटिक की ओवरडोज से ब्लैक फंगस बढ़ने से सवाल खड़े हुए हैं। मेरठ के आर्थोपेडिक सर्जन डा। संजय जैन ने डाक्टरों व निर्माया रिसर्च संस्थान के साथ मिलकर दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर आइसीएमआर और नीति आयोग को भी पक्ष बनाया है।

की गई मांग

याचिका में कहा गया है कि कोरोना इलाज के प्रोटोकाल में शामिल दवाओं से शरीर की अपनी प्रतिरोधक क्षमता खत्म हुई। इससे मरीज साइटोकाइन स्टार्म से बाहर नहीं निकल पाए, और बड़ी संख्या में मौतें हुईं। अब नई गाइड लाइन जारी करने की मांग की गई है।

मेडिकल जर्नलों का भी हवाला

डा। संजय जैन ने बताया कि दुनिया भर के लैंसेट समेत अन्य मेडिकल जर्नलों से तथ्य शामिल किए गए हैं। कोरोना मरीजों को पहले दिन से बुखार की गोली दी जाती है जबकि बुखार शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली का हिस्सा है। शरीर अपना तापमान बढ़ाकर वायरस को खत्म करता है। पैरासीटामाल देने पर शरीर का रिएक्शन कमजोर पड़ने से साइटोकाइन स्टार्म व इंफ्लामेट्री मार्कर बढ़ते हैं, जो मौत की बड़ी वजह है। उन्होंने बताया कि बुखार में माक्रोफेजेज सक्रिय होकर साइटोकाइन को उभरने से रोकते हैं। लगातार बुखार की दवा खाने से शरीर का यह रिस्पांस बंद हो जाता है। यह कोरोना मरीजों की मौत की बड़ी वजह है। एंटीआक्सीडेंट के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया असंतुलित हो जाती है। याचिका में एंटीबायोटिक देने पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। वायरस संक्रमण में एंटीबायोटिक देने से प्रतिरोधक क्षमता गिरती है। शोध के हवाले से कहा गया है कि एंटीपायरेटिक दवाएं वायरल संक्रमण में देने से मौतों की दर बढ़ जाती है। याचिका करने वालों में डा। अतुल गर्ग, विवेकशील अग्रवाल समेत कई अन्य शामिल हैं।