अतिक्रमण से हो रहा पौधरोपण अभियान को नुकसान

Meerut। साल दर साल भले ही मेरठ में वन विभाग समेत अन्य सरकारी विभागों द्वारा जमकर पौधरोपण किया जा रहा हो, लेकिन इसके बावजूद शहर में हरियाली का स्तर लगातार घट रहा है। हालत यह है कि पौधरोपण के बाद सालभर उनके रखरखाव के प्रति लापरवाही के कारण अधिकतर पौधे या तो मर जाते हैं या फिर पशुओं का आहार बन जाते हैं।

मात्र 2.67 प्रतिशत वन क्षेत्र

मेरठ जनपद में कुल भूभाग का मात्र 2.67 प्रतिशत ही वन क्षेत्र है। इसकी पुष्टि 2019 की फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ने की है। राष्ट्रीय वन नीति के तहत 33 फीसदी भू-भाग पर वन क्षेत्र होना आदर्श मानक है। ऐसे में साल दर साल बढ़ रहा पौधरोपण महज खानापूíत साबित हो रहा है।

नही बढ़ रही हरियाली

वन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो मेरठ में पिछले दस साल में 20 लाख से ज्यादा पौधों के रोपे गए हैं। विभागीय दावा है कि इनमें से 80 फीसद पौधे सुरक्षित हैं, जबकि हकीकत में 40 फीसदी पौधे भी नहीं बचे हुए हैं। नगर निगम क्षेत्र समेत शहर की ग्रीन बेल्ट में लगाए गए अधिकतर पौधे सूख गए हैं या पशु खा चुके हैं।

24 लाख का दावा

वर्ष 2019 में पौधारोपण अभियान के तहत जनपद में करीब 966 हेक्टेयर भूमि पर 19.23 लाख पौधे लगाए गए थे। जबकि 2018 में 9.50 लाख पौधे लगाए गए थे। इन पौधों का सही से रखरखाव किया गया होता तो जिले में 9.7 वर्ग किमी भू-भाग पर वन क्षेत्र हो चुका होता। वहीं वन विभाग ने इस साल वन महोत्वस के तहत करीब 24 लाख पौधे रोपने का दावा किया है।

पिछले तीन साल में हुआ पौधारोपण

साल 2018 - 9.50 लाख पौधे

साल 2019- 19.32 लाख पोधे

साल 2020- 24.668 लाख पौधे

मेरठ के वन क्षेत्र पर नजर-

कुल भू-भाग 2559 वर्ग किमी।

अति घना वन क्षेत्र 00 वर्ग किमी।

मध्यम घना वन क्षेत्र 34 वर्ग किमी।

खुला वन क्षेत्र 34.4 वर्ग किमी।

कुल वन क्षेत्र 68.4 वर्ग किमी।

कुल क्षेत्रफल पर वन 2.66 फीसद

साल दर साल पौधरोपण कर शहर को हरा भरा करने का प्रयास किया जा रहा है। पौधों के देखभाल का जिम्मा संबंधित लोकल बॉडी का भी है। इसके लिए बकायदा नगर निगम व एमडीए स्तर पर देखभाल होती है। कई जगह ग्रीन बेल्ट पर कब्जा है। इसके कारण भी नुकसान हो रहा है।

अदिति शर्मा, डीएफओ