मिलना और बिछुड़ना दोनों जीवन की मजबूरी हैं,

उतने ही हम पास रहेंगे, जितनी हममें दूरी है।

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जो अभी साथ थे, हां अभी, हां अभी

वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी

है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी

दिन की जो प्राण के गेह में बंद थे

आज चोरी गई वो ही दौलत हुए।

दिन दिवंगत हुए!

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जि़ंदगी यूं भी जली, यूं भी जली मीलों तक

चांदनी चार क़्दम, धूप चली मीलों तक

Meerut । देश के विख्यात कवि और गीतकार डॉ। कुंवर बेचैन जिंदगी के मर्म समझाते-समझाते गुरुवार को मौत के आगोश में सो गए। कोरोना एक-एक करके साहित्यजगत के पुरोधाओं को हमने छीन रहा है। पश्चिमी यूपी पर भी इसकी मार पड़ रही है। कुछ दिन पहले सहारनपुर निवासी कवि राजेंद्र राजन का कोरोना से निधन हुआ और अब गाजियाबाद में रहने वाले बेचैन चले गए।

नोएडा में थे भर्ती

डॉ। कुंअर बेचैन पिछले कुछ समय से कोरोना संक्त्रमण से जूझ रहे थे। गाजियाबाद के एक निजी अस्पताल में उनकी हालत बिगड़ने पर कवि कुमार विश्वास की पहल पर केंद्रीय पर्यटन मंत्री डॉ। महेश शर्मा ने नोएडा स्थित अपने कैलाश अस्पताल में उन्हें शिफ्ट कराया था। वहां वह दो सप्ताह से बीमारी से लड़ रहे थे।

दो साल पहले आए थे मेरठ

डॉ। कुंअर बेचैन करीब दो साल पहले आखिरी बार मेरठ आए थे। यहां दिल्ली रोड पर एक बैंकेट हॉल में आयोजित कवि सम्मेलन में उन्हें आमंत्रित किया गया था।

शादी में आए थे

कवि सौरभ जैन सुमन बताते हैं कि कुंअर बेचैन उनकी शादी में 15 दिसंबर 2006 में आशीर्वाद देने आए थे। वह मुझे बहुत प्यार देते थे। शादी में वह न केवल पूरे समय ठहरे बल्कि सबको गीत भी सुनाया था, बहुत सारी स्मृतियां उनसे जुड़ी हैं। वह हमारे बेटे काव्य के पहले जन्मदिन पर भी घर आए थे। वह अक्सर युवाओं को सिखाते थे। जिनकी कविताओं को सुनकर भीतर मन में बुझ चुके चिराग जल उठते थे, आज कोरोना के इस झंझावत ने वो चिराग ही बुझा दिया। सौरभ की पत्‍‌नी कवयित्री अनामिका अंबर कहती हैं कि आज एक और सूर्य अस्त हो गया, काव्य जगत के शिखर, गीतों के राजकुंवर बेहद सहज, सरल महान कवि व गीतकार कुंवर बेचैन मेरे पिता समान थे। उनके चले जाने का यकीन नहीं हो रहा है। हिंदी काव्य मंचों पर ऐसा कोई कवि सम्मेलन नहीं होता था, जिसमें उनकी कविताएं-मुक्तक न पढ़े जाएं।

अंत तक बांध लेते थे

साहित्यकार शीलवर्द्धन गुप्ता कहते हैं कि कुंअर बेचैन जी का मेरठ-गाजियाबाद में आना-जाना लगा रहता था। हम जब 1992 में मेरठ से अखिल

भारतीय साहित्य परिषद के अधिवेशन में आयोजित कवि सम्मलेन में जा रहे थे, तो बेचैन वहां जाने की तैयारी से नहीं आए थे, अचानक कार्यक्त्रम बना था। उनके पास कोई सामान नहीं था, तो सभी ने उन्हें कुछ न कुछ भेंट किया था। मुझे याद है लेखिका आसारानी ने शॉल दी थी। उस समय मैं और मेरा बेटा उनके साथ थे। डॉ। कुंवर बेचैन हिंदी साहित्य जगत के ऐसे गीतकार थे, जिनके मधुर गीतों को सुनने वाले कवि सम्मेलनों में अंत तक जमे रहते थे।

कई ने किए शोध

कवि विमल ग्रोवर अपने संस्मरण याद करते हुए बताते हैं कि उनसे वैसे तो अनेक मुलाकात हई हैं, लेकिन दो साल पहले वह मेरठ में दिल्ली रोड पर कवि सम्मेलन में आए थे, तब की मुलाकात हमेशा याद रहेगी। उन्होंने नए कलाकारों को बहुत मौका दिया, वह कलाकारों की मदद के लिए काव्य व्याकरण की कक्षाएं चलाते थे, उन्हें बताते थे कि कैसे और अच्छा कर सकते हैं। वह सीधे सरल, विद्वान थे, जिनके ऊपर अनेक शोधार्थियों ने पीएचडी की।

कई जगह मंच साझा किए

देश के जाने-माने शायर डॉ। पॉपुलर मेरठी बताते हैं कि कुअंर बेचैन दो साल पहले उनके घर आए थे। तब उनके परिवार ने उनका सम्मान भी किया था। मेरठी कहते हैं, वह मेरे बहुत करीब रहे, मेरे साथ दिल्ली में लालकिला, इंदौर कई जगह मंच साझा किया। बहुत ही बड़े कवि थे, साहित्य व कवि जगत में बहुत बड़ी क्षति हो गई है। वो सबसे मोहब्ब्त करते थे। मुझे याद है कि उन्होंने कुछ समय पहले मेरे लिए मेरी शायरी पर दस मिनट की वीडियो बनाकर भेजी थी। मैं जब भी कहीं जाता था तो उनसे गाजियाबाद मिलते हुए जाता था।

हिंदी व्याख्यान रहेगा याद

सीसीएसयू कैंपस में हिंदी के विभागाध्यक्ष डॉ। नवीन चंद लोहानी बताते हैं कि कुंवर बेचैन सीसीसएसयू, मेरठ से संबद्ध गाजियाबाद के एमएमएच कॉलेज में हिंदी के रीडर और विभागाध्यक्ष रहे। गाजियाबाद में उनके साथ लंबे समय से जुड़ाव रहा। विश्वविद्यालय में अनेक कवि सम्मेलनों में उन्होंने भाग लिया। हमारे विभाग में विद्यार्थियों को व्याख्यान भी दिए। हिंदी विभाग से प्रकाशित हुई पत्रिका मंथन के प्रथम अंक के विशिष्ट अतिथि थे। हिंदी गीत गजल पर उनके द्वारा दिया गया व्याख्यान आज भी याद है। वह गीत-गजल में हिंदी की विशिष्ट पहचान थे। भारत और दुनिया के तमाम मंचों पर उन्होंने काव्य पाठ किया।