-रमजान शुरू, रोजेदारों में दिखा खासा उत्साह

-घरों में जुटाया जरूरी सामान, महिलाओं की तैयारी भी खास

-बाजारों में रौनक, सेवइयां और खजूर से अटी पड़ी हैं दुकानें

Meerut : या अल्लाहजिस दिन का इंतजार सालभर से था, आज वो दिन आ गया। जी हां, मुबारक रमजान के पाक माह का पहला रोजा है आज। खास बात तो यह भी है पहला रोजा भी जुमे के दिन पड़ा है। शहर में हर ओर रमजान को लेकर रौनक नजर आई तो वहीं रोजेदारों में खासा उत्साह था। हो भी क्यों न, इस पाक माह में अल्लाह ताला से सीधा कनेक्शन जो होने जा रहा है।

खास है रमजान का माह

यूं तो इस्लाम हर माह, हर दिन को अल्लाह की इबादत के लिए खास मानता है, किंतु रमजान का अलग ही महत्व है। इस पाक माह में रोजेदार को दुआ का 70 गुना फल मिलता है। रोजेदार की हर सांस में इबादत है। सहरी से इफ्तार के बीच बिना कुछ खाए-पिए चेहरे पर रुहानी ताजगी इस एक माह अल्लाह ताला रोजेदार को अता फरमाता है।

साइंटिफिक रीजन भी

इस्लाम में एक माह रोजे के वैज्ञानिक विचार भी हैं। एक माह खानपान में नियंत्रण से रोजेदार की अंदरूनी ताकत मजबूत होती है तो वहीं आचार-विचार में परिवर्तन से उसका व्यवहार बदलता है। नेशनल फर्टिलाइजर्स पानीपत के पूर्व प्रबंधक सरताज खान का मानना है कि रोजे हमारे लिए ट्रेनिंग हैं। रमजान के एक माह दिन में प्यासे रहकर, झूठ न बोलकर, किसी के साथ बुरा व्यवहार न कर, चोरी आदि बुराई से दूर जाकर हम अपने जिस्म और दिमाग को अगले क्क् माह तक इसी माहौल में रहने का आदी बना लेते हैं।

दूर होती हैं सामाजिक बुराइयां

हुक्म-ए-इलाही के बिना जर्रा नहीं हिलता। रमजान में सामाजिक बुराइयां दूर होती हैं और आमतौर पर देखा गया है कि मुस्लिम, समाज के अन्य वर्गो के नजदीक आता है।

बाजारों में रही रौनक

रमजान को लेकर गुरुवार शहर के विभिन्न बाजारों में रौनक दिखी। शहर के घंटाघर, वैली बाजार, भगत सिंह मार्केट, खैर नगर, शाहपीर गेट, बेगम पुल, सिद्दीक नगर, लिसाड़ी गेट, श्याम नगर, इस्लामाबाद, जाकिर कॉलोनी आदि इलाकों में देर रात्रि तक चहल-पहल बनी रही। लोग सहरी और अफ्तार के लिए खरीददारी करते दिखे तो वहीं दुकानों पर सेवइयां और खजूर की जमकर खरीददारी हुई।

गैर मुस्लिम से मिलता है अपनापन

सरताज बताते हैं कि रमजान के दौरान कार्यालय में गैर मुस्लिम से जो सम्मान मिलता है, वो अद्भुत होता है। मेरा रोजा होता है तो हमारे दफ्तर में आकर हिंदू या कोई और भी पानी मांगने से परहेज करता है।

नहीं पड़ता है काम पर असर

कामकाजी मुस्लिम को रोजा रखने में परेशानी होती है, इस सवाल के जबाव में सरताज कहते हैं कि दिनभर बिना कुछ खाए-पिए रहने से शरीर में स्फूर्ति रहती है और आम दिनों से ज्यादा काम हो जाता है तो वहीं मजदूर रफीक का मानना है कि उसे आज तक कभी रोजे के दौरान पांच वक्त की नमाज अदा करने के लिए सोचना नहीं पड़ा, बल्कि साथी याद दिलाते हैं।

महिलाएं भी तैयार

रोजाना सुबह दो बजे उठना। पूरे परिवार को जगाना, सहरी तैयार करने से लेकर किसको क्या पसंद है, कौन क्या खाएगा? इस सब बातों की फिक्र से खुशी मिलती है। रमजान को लेकर महिलाओं की तैयारी भी खास है। रुखसाना खान का कहना है कि मुबारक माह भर दिन रुहानी ताजगी के साथ गुजरता है।

युवा पीढ़ी को है साथ जोड़ना

शहनाज अहमद का कहना है कि इबादत के इस पाक माह में परिवार के

साथ-साथ बच्चों को रोजे के लिए तैयार करना, उनकी हर जरूरत हर पसंद का ख्याल रखना पड़ता है। सहरी में खानपान हल्का-फुल्का हो इस बात का ख्याल भी रखना होता है।

युवाओं ने की तैयारी

टीनएजर्स में भी रमजान को लेकर खासा उत्साह है। बीबीए स्टूडेंट मोहम्मद अली खान ने रोजे को लेकर अपनी तैयारी बयां करते हुए कहा कि यार-दोस्तों के साथ कई दिनों से रोजे को लेकर चर्चा हो रही थी, कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे? गरमी का मौसम है, बस प्यास परेशान करती है। इस बार दिन में घर से बाहर ही निकला जाएगा।

बढ़ रहा है सोच का दायरा

मुस्लिम समाज में सोच का दायरा बढ़ रहा है। एक आम मुस्लिम रोजे रख रहा है तो वहीं कामकाजी, महिलाएं, युवा और हाई प्रोफेशनल पीछे नहीं हैं। इस्लामिक पर्सनल लॉ के बड़े पैरोकार आफाक अहमद खान बताते हैं कि इस्लाम जीने के तौर-तरीकों के साथ अनुशासन भी सिखाता। त्योहार चाहे वो हिंदुओं का हो या मुस्लिम का, एक दूजे को पास लाने का काम करते हैं।

इसलिए रखें रोजे

आखिरी नवी हुजूर सल्लाहो अलाहि वस्ल्लम को अल्लाह ने भेजा और हर मुस्लिम को यह पैगाम देने के लिए कहा कि यदि वे उनकी सुन्नत पाना चाहते हैं तो रोजे रखें। कलमा, नमाज, हज, जकात की तरह रोजा भी उन पांच फर्ज में शामिल है, जो हर मुस्लिम को अदा करना होता है। यह कहना है मेरठ के जैयत उलेमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना सैय्यद अरीजुद्दीन का।

खुद से ज्यादा रखें पड़ोसी का ख्याल

मौलाना के मुताबिक रमजान में खुद से ज्यादा पड़ोसी का ख्याल रखें। रोजेदार को इस दौरान सब्र करने की ताकत मिलती है, अल्लाह कहते हैं कि रमजान के माह में अपने पड़ोसी को पहले खिलाएं, खुद बाद में खाएं। मुहब्बत बढ़ाने का जरिया है, रमजान का यह पाक माह।

मिलेगी सहूलियत

मौलाना ने बताया कि बीमारी की वजह से या सफर के चलते यदि कोई रोजेदार रोजा नहीं रख पाता है तो वो ईद के बाद किसी भी दिन रोजा रखकर इबादत को पूरा कर सकता है।

सुबह दो बजे उठ जाते हैं

रमजान के दौरान मौलाना सुबह दो बजे उठ जाते हैं, रोजेदारों को जगाने से लेकर सहरी का समय माइक पर वे बताते हैं। कुरान और तरावीह के अलावा पांच वक्त की नमाज वे पढ़ते हैं।

आज से मुबारक माह रमजान शुरू हो रहा है। हर मुसलमान पाबंदी से रोजों का अमल करें। तरावीह पढ़ें, पांच वक्त की नमाज अता करें, इबादत करें। यह कहना है, नायब शहर काजी जैनुल राशेदीन का। उन्होंने शहर के मुसलमानों से अपील की कि वे कोई काम ऐसा न करें जो इस्लाम और कुरान के खिलाफ है। ऐसा काम न करें जिससे किसी को तकलीफ हो।