प्रथमा से आचार्य पर्यंत तक

इस महाविद्यालय में प्रथमा से आचार्य पर्यंत की पढ़ाई की जाती है। महाविद्यालय में प्रथमा छठी कक्षा से आठवीं कक्षा से शुरू होती है। जबकि पूर्व मध्यमा में नवीं और दसवी कक्षा होती है। उत्तर मध्यमा में ग्यारहवीं और बारहवीं तो शास्त्री में तीन साल की ग्रेजुएशन की पढ़ाई कराई जाती है। आचार्य पर्यंत में दो सालों की मास्टर डिग्री की शिक्षा दी जाती है। छठी और सातवीं की परीक्षाएं इंटरनल ही होती हैं। वहीं आठवीं से लेकर बारहवीं तक सभी परीक्षाएं बोर्ड की होती हैं।

तो यहां से है एफिलिएशन

महाविद्यालय में छठी से लेकर बारहवीं तक का विद्यालय यानि माध्यमिक शिक्षा यूपी माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद के नियमों के अनुसार संचालित होते हैं। जबकि स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार पढ़ाई कराई जाती है। माध्यमिक के एग्जाम अप्रैल में कराए जाते हैं। माध्यमिक और स्नातकोत्तर तक की शिक्षा लेने वाले कुल छात्रों की संख्या 300 है। माध्यमिक में 130 तो स्नातक और स्नातकोत्तर में कुल 170 छात्र पढ़ते हैं।

कई प्रांतों से आते हैं पढऩे

इस महाविद्यालय में कई प्रांतों से भी पढऩे यानि संस्कृत और संस्कृति का ज्ञान लेने को आते हैं। नेपाल(4), ओडिशा(16), मध्यप्रदेश(3), बिहार(20), उत्तराखंड(20), कानपुर(8), जयपुर(2), इलाहाबाद(3), वाराणसी(3) आदि देश के दूर दराज से शिक्षा ग्रहण करने को आते हैं।

हॉस्टल सुविधा भी

दूरदराज प्रांतों से आने वाले छात्रों के लिए इस महाविद्यालय के प्रांगण में छात्रावास की भी सुविधा भी है। यहां 10 छात्रावास है। एक छात्रावास में 8 से 10 छात्रों के रहने की सुविधा दी  हुई है।

नि:शुल्क है सब

अब आप कहेंगे कि इतना सब कुछ होने के बाद इस महाविद्यालय की फीस क्या होगी? जी पूरी तरह से नि:शुल्क है। प्रथमा से आचार्य पर्यंत तक की पढ़ाई पूरी तरह से नि:शुल्क है। एडमीशन लेते समय रजिस्ट्रेशन फीस 250 रुपए लिए जाते हैं। उसके बाद जितनी भी पढ़ाई होती है वो पूरी तरह से मुफ्त होती है।

प्रवेश परीक्षा से एडमीशन

महाविद्यालय में एडमिशन लेने के लिए प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है। इस प्रवेश परीक्षा में 50 फीसदी अंक लाना अनिवार्य है। उसके बाद एडमीशन प्रक्रिया शुरू की जाती है।

तो ये होती है दिनचर्या

सुबह पांच बजे सभी बच्चे उठ जाते हैं। नित्यक्रम करने के बाद सामूहिक संध्या होती है। जिसमें गायत्री मंत्रों का जाप होता है। स्वाध्याय और जलपान करने के बाद 10 बजे सभी छात्रों की क्लास शुरू हो जाती है। 12:30 बजे से 01:30 बजे तक लंच होता है। फिर चार बजे महाविद्यालय में पढ़ाई समाप्त हो जाती है। उसके बाद सांयकाल में शिवस्रोत और अन्नपूर्णा का पाठ होता है। आठ बजे सामूहिक भोज होता है। 9 से 10 बजे स्वाध्याय के बाद सभी का सोना अनिवार्य है।

तो ऐसे बढ़ा महाविद्यालय

- लिखित में रिकॉर्ड के अनुसार 1821 में महाविद्यालय की स्थापना।

- 1927 में महाविद्यालय को स्नातकोत्तर का दर्जा प्राप्त हुआ।

- 1933 में महाविद्यालय के मैनेजमेंट का गठन हुआ। 17 मेंबर चुने गए। हर तीन साल में चुनाव होते हैं।

- 1949 में मेरठ कैंटोन्मेंट से स्नातकोत्तर के लिए नई बिल्डिंग के लिए लैंड मिली। आज पूरा महाविद्यालय 0.66 एकड़ में बना हुआ है।

- 1951 में नई बिल्डिंग का शिलान्यास तात्कालिक केंद्रीय वाणिज्य मंत्री श्रीप्रकाश वर ने किया।

- 1953 में बनी इस नई बिल्डिंग का उद्घाटन देश के प्रथम उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन ने किया।

संस्कृत से मिलते हैं कई ऑप्शन

- आईएएस

- पीसीएस

- शिक्षक

- आर्मी

- पुलिस

- सोशल

- रिलिजियस

- वास्तुविद

- ज्योतिष

- प्रवचनकर्ता

- कर्मकांड

ये है एतिहासिक महत्व

प्राचार्य चिंतामणि जोशी महाविद्यालय के महत्व के बारे में बताते हुए कहते हैं कि बाबा बिल्वेश्वर नाथ मंदिर रामायण काल से है। जहां वेद मंत्रों के बिना पूजा नहीं होती होगी। ऐसे में यहां गुरुकुल या विद्यालय जरूर होगा। वहीं मंदिर के बारे में बताते हैं कि त्रेतायुग में बाबा विश्वनाथ वाराणसी से मय दानव को वरदान देने आए थे। मय दानव ने बाबा से वरदान लेने के बाद अपने स्वरूप में यहीं स्थापित होने की प्रार्थना की तो बेलों के बीच में बाबा विश्वनाथ बिल्वेश्वरनाथ के रूप में स्थापित हो गए।

ऑस्टे्रलिया तक छोड़ी है छाप

प्राचार्य चिंतामणि जोशी की मानें तो इस महाविद्यालय के कई स्टूडेंट्स ने देश के कोने-कोने में अपनी छाप छोड़ी है। वहीं विदेशों में भी जाकर देश का नाम रोशन किया है। मुझे जो एक नाम याद आ रहा है जो इसी महाविद्यालय का छात्र रहा है उनका नाम है लालकांत झा हैं। जो वहां संस्कृत के टीचर हैं। एक स्टूडेंट और जिनका नाम याद नहीं हैं। जो बीएसएफ में आध्यात्मिक शिक्षक हैं।

जुदा है शिक्षक प्रणाली

प्राचार्य चिंतामणि जोशी बताते हैं कि यहां की शिक्षा बाकी कॉलेजों की शिक्षा प्रणाली से काफी जुदा है। बाकी कॉलेजों में बच्चों को नौकरी के लिए तैयार किया जाता है। उन्हें नैतिक ज्ञान और संस्कृति के बारे में न तो जानकारी दी जाती है न ही कुछ प्रयास किए जाते हैं। यहां संस्कृत पढ़ाने के साथ बच्चों में देश की संस्कृति और नैतिकता का पूरा ज्ञान दिया जाता है। ताकि वो शिक्षा ग्रहण करने के बाद जहां भी जाएं वहां अपने व्यवहार से देश की संस्कृति को प्रदर्शित करने में सफल हो सकें।

दो शिक्षकों से जग रही

है संस्कृत की अलख

इस महाविद्यालय में 11 शिक्षकों के पद हैं। लेकिन मौजूदा समय में प्रथमा से लेकर आचार्य पर्यंत तक दो शिक्षकों से ही महाविद्यालय चल रहा है। इस बारे में प्राचार्य चिंतामणि बताते हैं कि सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए। शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए कई बार कहा चुका है। अब पुराने स्टूडेंट्स को बुलाकर या एडहोक पर टीचर्स को बुलाकर पढ़ाई कराई जा रही है।

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