मेरठ ब्यूरो। एक जून को उप्र राज्य सडक़ परिवहन निगम की स्थापना की 51वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। एक जून 1972 को यूपी रोडवेज को निगम में बदल दिया गया था। लेकिन इतिहास के पन्नों को देखें तो मेरठ रोडवेज की बसों का सफर उप्र राज्य सडक़ परिवहन निगम से भी पुराना है। मेरठ रोडवेज का सफर 75 साल पहले 1948 में आजादी के साथ ही शुरु हुआ था। यानि एक जून को मेरठ रोडवेज की सिल्वर जुबली है। हालांकि आज इसके अवशेष भी रोडवेज परिसर में नहीं हैं। न कार्यशाला और न ही अन्य किसी स्थान पर संजोए हुए हैं। मेरठ रोडवेज के इस इतिहास के बारे रोडवेज से 1977 में रिटायर हुए चालक सुलेमान अली ने कई रोचक जानकारी दैनिक जागरण के साथ साझा की।

तीन पीढिय़ों से जारी रोडवेज की सेवा

साल 1977 में रोडवेज से रिटायर हुए चालक सुलेमान अली ने साल 1964 में बतौर चालक रोडवेज में नौकरी शुरु की थी। सुलेमान से पहले उनके पिता रमजान अली 1948 से मेरठ रोडवेज में अपनी सेवाएं दे रहे थे और वर्तमान में सुलेमान अली के बेटे गुलशाद अली मेरठ डिपो में बतौर जूनियर फोर मैन काम कर रहे हैं।

तब देहरादून था हेड क्वार्टर

तीन पीढिय़ों से रोडवेज की सेवा कर रहे सुलेमान अली ने बताया कि मेरठ रोडवेज का तब देहरादून हेडक्वार्टर हुआ करता था और मेरठ से दिल्ली, देहरादून, गढ़ और आगरा के लिए बस का संचालन किया जाता था। तब वर्तमान मेरठ डिपो के स्थान पर तंबू में रोडवेज बस डिपो का संचालन होता था। मेरठ में रोडवेज का हेडक्वार्टर 1964 में बन गया था। इसके बाद 1964 में टीन शेड में बस डिपो का संचालन शुरु हुआ।

हाथ से स्टार्ट होती थी बस

1948 में जब रोडवेज की पहली बस सडक़ पर आई तो देखने वालों की भीड़ जमा हो गई। तत्कालीन शेवरलेट की पहली पेट्रोल चेसिस की 22 सीटर बस को केंद्रीय कार्यशाला कानपुर ने निर्मित किया। उसके तकरीबन सात साल बाद केंद्रीय कार्यशाला ने सन् 1955 में एंगल आयरन से निर्मित पहली डीजल बस का निर्माण किया। उस दौर में डीजल चालित इस बस को खूब तरजीह मिली। इन बसों को जेनरेटर की तरह हाथ से हत्थी की सहायता से शुरु किया जाता था।

आठ आने था दिल्ली का किराया

1948 में जब पहली बार रोडवेज बस का संचालन हुआ था तब मेरठ से दिल्ली तक का किराया आठ आने हुआ करता था। इस दौरान तीन तरह की बसों का संचालन हुआ करता था। इसमें तूफान, एक्सप्रेस और पैसेंजर बस की सुविधा यात्रियों को मिलती थी। तूफान बस सेवा सीधा मेरठ से दिल्ली के पुराने रेलवे स्टेशन के पास बस स्टैंड तक जाती थी जबकि एक्सप्रेस मोदीनगर और मुरादनगर में रुका करती थी। पैंसेजर दिल्ली तक सभी कस्बो में रुका करती थी। तब केवल बुकिंग से टिकट मिलते थे।