- क्या आप मेरठ पहली बार आई हैं?

मेरठ होकर तो कई बार गई हूं, लेकिन यहां पहली बार आई हूं।

- टीचर ट्रेनिंग डिप्लोमा के बाद पढ़ाई के लिए विदेश। फिर एक्टिंग में कैसे आना हुआ?

दरअसल परिवार में शुरू से ही बच्चों को कुछ करने को प्रोत्साहित किया जाता था। घर वालों के सपोर्ट से ही मैंने एक्टिंग की पढ़ाई की और जिस कॉलेज से पढ़ी, वहीं पर पहले लेक्चरर बनी। इसके बाद एनएसडी दिल्ली में चाइल्ड विंग शुरू कराया।

- फिल्म या थियेटर में से क्या पसंद है?

मेरी आत्मा में थियेटर है। मुझे थियेटर बहुत पसंद है। फिल्मों के मुकाबले थियेटर और प्ले में अधिक काम किया है।

- आज कल क्या कर रहीं हैं?

आज कल मैं दिल्ली में एक एनजीओ के बच्चों के साथ मिल कर रविंद्रनाथ टैगोर के एक ड्रामा की तैयारी कर रही हूं। जल्द ही थियेटर में पेश किया जाएगा।

- क्या जल्द ही छोटे पर्दे पर भी दिखाई देंगी?

- हां, एक प्रोग्राम शूट करके चैनल को भेज दिया गया है। अभी प्रोजेक्ट पूरा नहीं है। इसलिए न ही प्रोग्राम का नाम डिसक्लोज कर सकती हूं न ही चैनल का, लेकिन इतना पक्का है कि जल्द ही दर्शकों को दिखाई दूंगी।

- इसके अलावा कुछ नया करने को कोई तैयारी?

हां, मैंने ड्रामा स्टूडेंट्स के लिए एक किताब भी लिखी है। ‘स्टेज प्ले’ इसका अंग्रेजी अंक तो पहले ही छप चुका है। अब हिंदी में ‘रंग मंच’ नाम से इसका अनुवाद 29 नवंबर को दिल्ली में जारी होगा।

- इस किताब में खास क्या है?

किताब में मैंने अपने जीवन के बारे में ही लिखा है। समय के साथ जैसे जैसे हम ड्रामा को समझते गए और सीखते गए उन्हें अनुभवों को संजोकर स्टूडेंट्स के लिए रखा है। ताकि उन्हें सीखने में मदद मिल सके।

- आज कल हास्य कार्यक्रमों के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है। जनता क्या करे?

जनता को ऐसे कार्यक्रम देखने ही नहीं चाहिए। जनता के हाथ में रिमोट है। एक बटन ही तो दबाना है, बदल दो चैनल। मैं भी आज कल के कॉमेडी सीरियल पसंद नहीं करती। इससे अच्छा तो डिस्कवरी या नेशनल जियोग्राफिक जैसे चैनल देखने चाहिए।

- क्या आपको लगता है कि नए स्टूडेंट्स को एक्टिंग और ड्रामा में जाना चाहिए?

मेरे हिसाब से आज कल के बच्चे एक्टिंग और ड्रामा को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। बल्कि उनमें हमसे ज्यादा समझ है, उन्हें पिकअप करने में ज्यादा समय नहीं लगता। मेरा मानना है कि स्कूलों में ड्रामा सब्जेक्ट भी होना चाहिए।