-शहर को रोस्टिंग फ्री बताकर की जा रही अंधाधुंध बिजली कटौती

- डिमांड और सप्लाई में 400 मेगावाट का फर्क, फिर भी रोस्टिंग फ्री

-रोस्टिंग फ्री का झुनझुना थमा कर विभाग बना रहा जनता को बेवकूफ

Meerut: एक ओर जहां शहर बिजली की भारी किल्लत से जूझ रहा है, वहीं बिजली विभाग शहरवासियों को बेवकूफ बनाने से बाज नहीं आ रहा। यही कारण है कि विभाग मेरठ शहर को रोस्टिंग फ्री घोषित कर खूब बिजली कटौती कर रहा है। विभाग द्वारा जनता को बेवकूफ बनाए जाने का एक नमूना यह भी कि शहर में इस समय डिमांड की सापेक्ष ब्00 मेगावाट बिजली की कमी है, फिर इस फर्क को पूरा किए बिना शहर को रोस्टिंग फ्री कैसे घोषित किया जा सकता है।

यह कैसा रोस्टिंग प्लान

दरअसल, रमजान और कांवड़ यात्रा के चलते पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम ने मेरठ शहर को रोस्टिंग फ्री रखने यानी निर्बाध आपूर्ति मुहैया कराने की घोषणा की है। वो बात अलग है कि इस निर्बाध आपूर्ति को मेंटेन करने के लिए विभाग ने कर्मचारियों की एक पूरी फौज सड़क पर उतारने का फैसला किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि रोस्टिंग फ्री होने के पहले दिन ही विभाग ने इमरजेंसी रोस्टिंग के नाम पर दिन भर की बिजली काट ली। इस संबंध जब विभागीय अफसरों से जानकारी की गई तो उन्होंने इसे कंट्रोल रूम से इमरजेंसी रोस्टिंग बताते हुए पल्ला झाड़ लिया। यहां समझ से परे यह बात है, अब जब शहर के लिए रोस्टिंग फ्री प्लान लागू किया गया है, तो फिर अघोषित बिजली कटौती का क्या मतलब?

डिमांड और सप्लाई

मौजूदा समय समय में शहर में बिजली की डिमांड आठ सौ मेगावाट है, जबकि मांग के सापेक्ष विभाग के पास केवल चार सौ मेगावाट बिजली ही उपलब्ध है। गर्मी में बिजली की डिमांड दो गुणा अधिक बढ़ जाती है, जिसके चलते ओवरलोडिंग की समस्या शुरू हो जाती है। ओवरलोडिंग के चलते ट्रांसफार्मर जलने की समस्या जन्म ले लेती है। डिमांड और सप्लाई के बीच के अंतर को पाटने में जहां बिजली विभाग के भी पसीने छूट रहे हैं, वहीं मारे गर्मी के शहरवासियों के भी होश उड़े जा रहे हैं। नतीजतन रोस्टिंग शेड्यूल के नाम भी शहर में बिजली की भारी कटौती की जाती है। उधर, भीषण गर्मी और बिजली की कमी से बिलबिलाए शहरवासी न केवल सड़कों पर उतर आते हैं, बल्कि बिजली घरों में हंगामा तक करने को मजबूर हो जाते हैं।

तीन हजार मेगावाट की कमी

बिजली किल्लत की यह समस्या केवल शहर में ही नहीं, बल्कि समूचे राज्य में ही मुंह बाए खड़ी है। आकड़ों की मानें तो राज्य में बिजली की डिमांड क्भ् हजार मेगावाट है, जबकि उपलब्धता केवल क्ख् हजार ही है। ऐसे में बिजली की समस्या न केवल विकट रूप धारण कर लेगा, बल्कि इस समस्या से पार पाने के लिए भी विभाग के पार कोई उपाय नहीं होगा।

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नहीं बने नए बिजली घर

एक ओर जहां शहर में उपभोक्ताओं की संख्या के साथ बिजली की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है, बावजूद इसके पिछले पांच सालों में एक भी बिजली घर नहीं लगाया गया। हालांकि विभाग की मानें तो शहर में पांच बिजली घरों का निर्माण प्रस्तावित हैं, लेकिन जगह न मिल पाने के चलते बिजली घरों का निर्माण नहीं हो सका। बढ़ती उपभोक्ताओं की संख्या, बिजली घरों की कमी और डिमांड व सप्लाई के इस गणित से ही बिजली की किल्लत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

पांच साल में बढ़े एक लाख उपभोक्ता

बिजली विभाग से लिए गए आंकड़ों की मानें तो ख्0क्0 में शहरी उपभोक्ताओं की संख्या ख्,फ्8,फ्ख्8 थी। और इस समय शहरी उपभोक्ता की तादात सवा तीन लाख हो गई है। इसका साफ मतलब है कि इन पांच सालों में एक लाख अतिरिक्त उपभोक्ता बिजली विभाग से जुड़े हैं, लेकिन मजे बात तो यह है कि इन एक लाख कंज्यूमर्स के लिए विभाग ने न तो सप्लाई सिस्टम की क्षमता वृद्धि की है और न ही अलग बिजली घरों का इंतजाम। मतलब साफ है कि जो उपकरण पांच साल पूर्व की कंज्यूमर्स संख्या को लेकर गए थे। आज उन्हीं उपकरणों पर एक लाख अन्य कंज्यूमर्स का अतिरिक्त भार है। ऐसे में शहर के पॉवर सप्लाई सिस्टम कितनी बेहतरी से काम कर रहे होंगे इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

ओवरलोड बिजली घर

नौचंदी, लिसाड़ी गेट, आरटीओ, पीएल शर्मा रोड और माधव पुरम बिजली घर।

गर्मियों में बिजली की डिमांड का बढ़ना स्वाभाविक है। ओवरलोडिंग की समस्या खत्म करने के लिए कई योजनाओं में बिजली घरों की स्थापना की जा रही है। जगह के लिए संबंधित विभाग को पत्र लिखे गए हैं।

-विजय विश्वास पंत, एमडी पीवीवीएनएल

सैनिक विहार में बिजली विभाग को पॉवर स्टेशन बनाने के लिए जगह दी गई है, लेकिन विभाग उस पर कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखा रहा है। ऐसे में जगह न मिलने की बात बेमानी है।

-अजीत प्रताप सिंह, एसई एमडीए