कोरोना से फाइटर्स की तरह जीती जंग, सभी ने सोशल डिस्टेंसिंग और घर में रहने की अपील की

शनिवार को मेडिकल कॉलेज से नौ कोरोना पॉजिटिव रहे मरीज को मिली क्लीन चिट, सभी एहतियातन 14 दिन होम क्वारंटीन में रहेंगे

कोरोना फाइटर्स ने बयां किया जीत का जज्बा, इम्युनिटी और विल पावर के साथ डॉक्टर्स का मोटिवेशन बना जीत की सीढ़ी

Meerut । वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है, हारी बाजी को जीतना जिसे आता हैजो जीता वो ही सिकंदर फिल्म का ये गीत शनिवार को उस समय जेहन में गूंज उठा, जब मेडिकल कॉलेज से कोरोना वायरस को हराकर नौ लोग बाहर निकले। सभी के चेहरे पर कोरोना से जंग जीतने वाली जोशीली मुस्कान थी तो वहीं घर जाने की लालसा भी सभी की आंखों में साफ झलक रही थी। दरअसल, दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने कोरोना वायरस को मात देने वाले कोरोना फाइटर्स से जब ये पूछा कि वो लोग शहवरवासियों को कोरोना से बचाव के लिए क्या सलाह देना चाहते हैं तो सबका एक ही जवाब था, कि हमारा इलाज पूरा हो गया है लेकिन एहतियातन अभी हम सब डॉक्टर्स की एडवाइज के मुताबिक 14 दिन और होम क्वारंटाइन में रहेंगे। साथ ही लोगों से हमारी अपील है कि सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो करें और घर में रहे। दरअसल, महाराष्ट्र के अमरावती से मेरठ आए इकरामुद्दीन की पहचान मेरठ के पहले कोरोना पॉजिटिव मरीज के रूप में हुई थी। 26 तारीख को मेरठ मेडिकल कॉलेज में एडमिट हुए इकरामुद्दीन में 27 मार्च 2020 को कोरोना वायरस के संक्त्रमण की पुष्टि हुई थी। इसके बाद उनके परिवार के 16 अन्य लोगों में कोरोना का संक्त्रमण पाया गया। जिनमें से शनिवार को इकारमुद्दीन समेत उनके परिवार के आठ लोगों और एक अन्य को मेडिकल कॉलेज से क्लीन चिट दे दी गई।

कोरोना से डरें नहीं बल्कि मजबूती से लड़ें - डॉ। शर्फीन

28 मार्च 2020 को कोरोना वायरस से संक्त्रिमत होने वाली डॉ। शर्फीन कहतीं हैं कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं हैं। अगर आपकी इ युनिटी स्ट्रांग है तो इससे बचाव संभव है। कोरोना के दौरान हल्का नजला और खांसी की शिकायत बनी हुई थी। डॉ। शर्फीन बताती हैं कि उनके परिवार में सबसे पहले एक व्यक्ति को कोरोना का संक्त्रमण पाया गया था। संक्त्रमण की जानकारी मिलते ही मैंने खुद ही अपना टेस्ट करवाया। टेस्ट के दौरान मन में एक ही बात थी कि टेस्ट निगेटिव आना चाहिए। पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर जिस तरह डर का माहौल बना हुआ है, उसे देखकर या सुनकर कोई भी भयभीत हो जाएगा। मगर टेस्ट में पॉजिटिव आने के बावजूद मैंने हि त नहीं हारी। यहां आकर डॉक्टर्स के इंस्ट्रक्शन फॉलो किए। हालांकि जिन लोगों में इ युनिटी वीक है या जो उम्रदराज हैं, उन्हें टेककेयर के साथ-साथ बेहद सर्तक रहने की जरूरत है।

एक बार लगा कि अब जान नहीं बचेगी- रिजवाना

कोरोना वायरस से जंग जीत चुकी रिजवाना कहती हैं कि कोरोना से उनके सुसर की डेथ हो गई थी। जिससे कोरोना का डर दिल और दिमाग में बैठ गया था। घर-परिवार वाले सब सहम गए थे। सबको यही लगा रहा था कि अब हमारे साथ भी यही होने वाला है। बकौल रिजवाना जब मेरी टेस्ट रिपोर्ट आई तो पता चला कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं। ये पता चलते ही मौत के खौफ ने सारी उ मीदों की रीढ़ तोड़कर रख दी। हालांकि खुदा का शुक्त्र है कि जब मैं मेडिकल के कोरोना वार्ड में एडिमट हुई और यहां डॉक्टर्स ने मेरी काउंसिलंग शुरू की तो जीने की उमंग उ मीदें बढ़ाने लगी। धीरे-धीरे ट्रीटमेंट होने लगा तो लगा कि अब शायद मैं ठीक हो जाऊंगी। इसी का नतीजा है कि 28 मार्च को कोरोना पॉजिटिव से शुरू हुई लड़ाई आज जीतकर वापस घर जा रही हूं। इस बीमारी में बहुत जरूरी है कि जितना हो सके गर्म पानी पिएं और बार-बार स्टीम लें। इससे कोरोना से काफी हद तक बचाव होता है।

पहले डर गई थी लेकिन धीरे-धीरे डर गायब हो गया- खुशनुमा

सबसे पहले मेरे पिता इकरामुद्दीन कोरोना पॉजिटिव आए थे। उसके बाद मुझे शक हुआ तो मैंने भी अपना टेस्ट करवाया। मैं सबसे ज्यादा तब डर गई जब पिता के बाद एक-एक करके परिवार के कई लोग एक साथ इंफेक्टड हो गए थे। टीवी और अखबारों में कोरोना से दुनिया में लगातार हो रही मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा था। सच कहूं तो कोरोना का डर आपके दिमाग में घर लेता है लेकिन मेडिकल के कोरोना वार्ड में एडमिट होने के एक-दो दिन बाद डर थोड़ा कम हुआ और दिल ने विश्वास दिलाया कि नहीं अभी ये अंत नहीं है। यहां मैंने ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर्स की हर इंस्ट्रक्शन बारीकी से फॉलो की। इस दौरान हमें ये एहसास भी हुआ कि बीमारी से इतना डरने की जरूरत नहीं है जितना हम डर रहे थे। सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करें और इस वक्त सभी एक-दूसरे से दूर रहे।

डॉक्टर्स ने दिलाया विश्वास तो बढ़ी हि मत- राहत

परिवार में बहनोई पॉजिटिव थे, जिनके संपर्क में परिवार के बाकी लोगों के साथ मैं भी आया था। जब मैं इंफेक्टेड हुआ तो एक बार तो ये लगा कि मुझे कोरोना कैसे हो गया। कोरोना का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं क्योंकि इसकी कोई दवाई नहीं है, इसलिए मेरा डर जाना लाजिमी था। मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड में डॉक्टर्स ने समझाया कि इच्छाशक्ति और इ युनिटी मजबूत हो तो किसी भी बीमारी से लड़ा जा सकता है। डॉक्टर्स की इस बात से हि मत बढ़ी। बीमारी के दौरान मैंने हॉस्पिटल में बिल्कुल वैसा ही किया, जैसा डॉक्टर्स कहते गए। खाने-पीने से लेकर हाइजीन तक में मैं एहितयात बरतने लगा। इसके बाद डर कम हुआ, जिससे ये महसूस होने लगा कि मैं कोरोना को हरा दूंगा और आज मुझे यकीन नहीं हो रहा कि ये सच हो गया है। मेरी यही कहना है कि अगर किसी को लगता है कि वह कोरोना की चपेट में आ गया है तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास जाकर टेस्ट कराना चाहिए। सही समय पर इलाज मिलेगा तो बीमारी जरूर ठीक हो जाएगी।

सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है

इकरामुद्दीन के परिवार के ही एक और पॉजिटिव हुए मरीज ने नाम छापने की शर्त पर बताया कि जिस दिन मुझे पता चला कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं तो दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। परिवार के कई लोग को एक-एक करके कोरोना से इफेक्टेड होते देखने से मन की घबराहट बहुत बढ़ गई। मेडिकल कॉलेज में एडमिट होने पर ये डर लगने लगा कि कोरोना का इलाज भी हो पाएगा या नहीं। हालांकि पहले ही दिन से डॉक्टर्स लगातार ये कह रहे थे कि आप जल्द ठीक होकर घर जाएंगे। इससे हि मत तो मिल रही थी पर डर कम नहीं हो रहा था लेकिन स्टाफ ने हि मत बढ़ाई और बताया कि बड़ी-बड़ी उम्र के लोग कोरोना को हराकर घर जा रहे हैं। बस फिर क्या था मन को मजबूत कर डॉक्टर्स द्वारा बताए गए नियमों को फॉलो किया। खान-पान का याल रखने के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग की अहमियत भी समझ में आई। कोरोना से 14 दिनों तक चली लड़ाई हमेशा याद रहेगी क्योंकि बीमारी उतनी घातक नहीं जितना इसका खौफ है। लोगों से अपील है कि वो सराकर के आदेशो का पालन करें और घर पर ही रहें।

ठीक होकर घर जाना एक सपने जैसा है- सबा

सबा कहती हैं कि कभी सोचा नहीं था कि मुझे कोरोना जैसी बीमारी होगी। परिवार में एक व्यक्ति पॉजिटिव आया तो हम सभी डर गए थे। बकौल सबा हम िकिसी गफलत में नहीं रहे। मैंने सबसे पहले मेडिकल जांच कराने का फैसला लिया तो मेरा रिजल्ट भी पॉजिटिव आया। पहले परिवार के व्यक्ति के लिए मन में डर था कि उनका क्या होगा लेकिन खुद के संक्त्रमित होने के बाद लगा कि क्या मैं बीमारी से लड़ पाऊंगी क्योंकि हर जगह ये सुनने को मिल रहा था कि इस बीमारी की कोई दवा नहीं है। अपनी जान पर आती है तो किसी की बात पर विश्वास भी नहीं होता। शुरू-शुरू में मैं बहुत डरी हुई थी, वहीं कोरोना के बारे में लोगों की बातें सुनती थी तो और डर जाती थी। मगर मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड में डॉक्टर्स ने लगातार काउंसलिंग की तो लगा कि जो इलाज चल रहा है, उसी से कोरोना को हरा दूंगी। करीब एक ह ता लगा लेकिन हौंसले मजबूत हुए तो आज रिजल्ट सबके सामने है। आज घर जाना एक सपने जैसा है, लेकिन एडमिट होते वक्त ठीक होकर वापस घर जाने के बारे में सोचा भी नहीं था।

डॉक्टर्स ने बंधाई हि मत तो कोरोना के डर से किया डील- खुर्शीदा बेगम

खुर्शीदा बेगम ने खुद तो कोरोना वायरस को मात दे दी लेकिन इसी बीमारी से जूझते अपने पिता को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। खुर्शीदा के पिता की उम्र 72 साल थी। वह कहती हैं कि इस बीमारी से लड़कर भले ही मैं जीत गई लेकिन जो खोया है, उसकी भरपाई सारी जिंदगी संभव नहीं है। पिता के गुजर जाने के बाद पूरा परिवार डर गया था। यूं तो डॉक्टर्स लगातार कह रहे थे कि आप हि मत रखिए लेकिन आप ही सोचिए जब एक ही परिवार के 17 लोग एक ऐसी खतरनाक बीमारी की चपेट में हों जिसका कोई इलाज ही नहीं तो भला व्यक्ति के मन में जीने की इच्छा जिंदा रह सकती है। पूरा परिवार टूट चुका था। बुरे वक्त में डॉक्टर्स ने हि मत बंधाई जिसका नतीजा आज मैं घर जा रही हूं। कोरोना का डर शुरू के एक ह ते मुझे डराता रहा लेकिन बाद में मैंने इससे डील करना सीख लिया। मेरी लोगों से अपील है कि वो घरों से बाहन न निकले क्योंकि ये वायरस आपके घर तभी आएगा, जब आप बाहर से इसे लेकर आएंगे।

डॉक्टर्स के मोटिवेशन से मजबूत हुई विल पावर

हरमन दास रोड स्थित सूर्यनगर निवासी फिलिपींस से आई एक युवती ने बताया कि बीमारी इतनी खतरनाक नहीं है, जितना इसके बारे में अफवाह फैलाई जा रही है। अगर सही समय पर कोरोना वायरस के लक्षणों की पहचान किसी इंसान को हो जाए और वो मेडिकल जांच करा ले तो इससे सौ फीसदी बचा जा सकता है। मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स का गाइडेंस काफी अच्छा रहा। साथ ही दवाइयों से इ युनिटी बढ़ी और डॉक्टर्स से मिले मोटिवेशन से विल पावर मजबूत हुई, जिससे मैं फिजीकली और मेंटली रिकवर होती चली गई। इस वक्त सभी लोगों के लिए जरूरी है वह घर में ही रहे। मजबूरी में बाहर निकलना भी पड़े तो मास्क लगाकर ही निकलें। कहीं भी जाते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग का याल रखें।

इलाज के साथ मोटिवेशन की डोज ने निभाया अहम रोल - डॉ। आरसी गुप्ता

मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। आरसी गुप्ता ने बताया कि कोरोना पेशेंट्स के रिकवर होने में डॉक्टर्स की टीम ने पूरा एफर्ट किया.जहां कोरोना इंफेक्टेड पेशेंट्स का नाम सुनकर कोई पास नहीं जाता, वहीं टीम ने पूरी मेहनत और लगन के साथ पेशेंट्स का इलाज किया है। इसके अलावा पेशेंट्स की विल पावर ने भी अहम रोल निभाया है। डिस्चार्ज हुए सभी मरीजों ने डॉक्टर्स को इलाज में पूरा सहयोग किया। दवाइयों के साथ उनको मोटिवेट करना इलाज का अहम हिस्सा रहा। कोरोना वायरस के लक्षणों के आधार पर उनको टेमी लू और एंटी बॉयोटिक दवाएं दी गई। वहीं हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर भी काफी कुछ बताया जा रहा था। मलेरिया में प्रयोग होने वाली इस दवाई को भी मरीजों को दिया गया। हालांकि कोरोना का नाम सुनकर लगता है कि इसे बचना संभव नहीं है। मगर नौ मरीज जिस तरह से रिकवर हुए हैं, उसके बाद डरने की कोई बात नहीं हैं। लोगों को चाहिए कि वह घर में रहकर खुद के साथ अपने परिवार और समाज का बचाव करें। मजबूरी में बाहर निकलते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग का याल रखने के साथ ही खान-पान का भी विशेष याल रखना बेहद जरूरी है। ज्यादा तला-भुना खाने से परहेज करें क्योंकि हाइजीन बहुत जरूरी है। आसपास सफाई रखने के साथ ही शरीर की सफाई पर भी ध्यान दें। दिन में कई बार अपने हाथों को धोएं। सभी को ध्यान देना चाहिए कि बीमारी छिपाने से बढ़ती है और सही समय पर इलाज मिलेगा तो गंभीर परिणाम भुगतने से बचा जा सकता है।