मेरठ ब्यूरो। खासतौर पर प्रकृति की फूड चेन को मेनटेन रखने वाले मगरमच्छ, गंगा डर्ॉिल्फन, कछुए आदि वन्य जीवों की संख्या में वृद्धि हुई है। जिले में वन्य जीवों की स्थिति पर एक रिपोर्ट गौरतलब है कि हस्तिनापुर वन सेंचुरी सभी प्रजाति के जीवों का आश्रय स्थल माना जाता है। बीते कुछ साल से यहां पर वन्य जीवों की संख्या में कमी आई है। हर तीसरे साल वन विभाग वन्य जीवों की गणना करता है। विभाग 30 प्रकार के वन्य जीवों की गणना करता है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में कुल वन्य जीवों की संख्या 11हजार 552 थी, जो साल 2022 में 12312 हो गई है।

तेंदुओं की संख्या बढ़ी
खास बात है कि गत वर्ष शहर में तेंदुए के आगमन से बार-बार हंगामा हुआ। मेरठ समेत आसपास के जिलों में तेंदुए ने हलचल मचाई थी। इसकी सबसे प्रमुख वजह मानी जा रही है कि प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण तेंदुए रिहायशी इलाकों में आ रहे हैं। जंगलों के कटान और शिकार के कारण तेंदुए शहर में आ रहे हैं। इस समस्या के बीच यह राहत की बात भी है कि तेंदुए की संख्या में इजाफा हुआ है। बिग कैट प्रजाति के तेंदुओं की संख्या बढक़र सात से नौ हो गई है। हालांकि, इस प्रजाति के अन्य सदस्य जैसे फिशिंग कैट, जंगली बिल्ली पर अभी संकट बना हुआ है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में फिशिंग कैट की संख्या महज 11 रह गई, जो कि तीन वर्ष पहले 39 थी। जंगली बिल्ली की संख्या भी 209 से घटकर 144 रह गई है।

बंदरों की बढ़ रही संख्या
यहीं नहीं, साल दर साल बंदरों की संख्या में इजाफा हो रहा है। मेरठ वन प्रभाग में मेरठ के साथ बागपत जिला भी आता है। इन दोनों जिलों में इस साल बंदरों की संख्या 7637 आंकी गई है। जबकि साल 2019 में इनकी संख्या 5607 थी। जंगलों के साथ शहरी क्षेत्र में बंदरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

मगरमच्छ की संख्या में इजाफा
नेचर की फूड चेन के लिए जरूरी मगरमच्छों की संख्या भी खादर और आसपास के क्षेत्र में बढ़ रही है। बीते साल 5 मगरमच्छ और 5 लकड़बग्घों को चिन्हित किया गया है। हालांकि घडिय़ालों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। उनकी संख्या 202 से घटकर 43 रह गई है। वन विभाग के मुताबिक घडिय़ाल विचरण करते हुए काफी दूर तक निकल जाते हैं। इसलिए इनकी संख्या कम हुई।

डॉल्फिन में इजाफा सुखद संदेश
गंगा नदी की स्वच्छता का प्रतीक माने जाने वाली गंगा डॉल्फिन की संख्या में इजाफा वन विभाग के लिए बहुत राहत की बात है। वन विभाग के अनुसार बिजनौर बैराज से नरौरा बैराज तक 40 से ज्यादा डॉल्फिन पाई गई हैं। डबल्यूआईआई और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने गंगा डॉल्फिन के लिए गत वर्ष इन क्षेत्र में सर्वे किया था। ये एरिया गैंगेटिक डॉल्फिन के लिए बेहद अच्छा है। डॉल्फिन की गणना के दौरान मेरठ के हस्तिनापुर स्थित मखदूमपुर गंगा घाट पर खूबसूरत डॉल्फिन दिखी थी। आमतौर पर डॉल्फिन की गणना हो जाती है लेकिन तस्वीर कैमरे में कैद नहीं हो पाती लेकिन इस बार डॉल्फिन की काउंटिंग के समय डॉल्फिन कैमरे में कैद की।

कछुए का हो रहा संरक्षण
वन विभाग व विश्व प्रकृति निधि के संयुक्त प्रयास से 2013 में कछुए के संरक्षण के लिए अभियान शुरू किया गया था। अब 10 साल बाद यह अभियान एक मुहिम का रूप ले चुका है। कछुआ संरक्षण कार्यक्रम के तहत कछुओं के अंडों को संरक्षित करने के लिए गंगा किनारे हैचरी लगाई गई थी। इसके अनुसार 2013 से अब तक लगभग पांच हजार कछुओं को संरक्षित किया जा चुका है। इस कार्यक्रम में गंगा मित्र बनाकर स्थानीय लोगों की भी मदद ली जा रही है। मखदूमपुर गंगा घाट पर यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 45 किमी क्षेत्र में शुरु किया गया था। जिसमें मखदूमपुर, सिरजेपुर व खरकाली घाट शामिल है। इसके तहत भारत की 29 प्रजातियों में से 12 प्रजाति के कछुए गंगा नदी में संरक्षित हो रहे हैं।

यह है वन्य गणना की स्थिति-
वन्य जीव 2019- 2022
बंदर 5607- 7637
मोर 703- 769
मगरमच्छ 0- 5
तेंदुआ 7- 9
फिशिंग कैट 39- 11
जंगली बिल्ली 209 -144
काला हिरन 0- 0
सांभर 38 -14
बारा सिंगा 9 -18
घडिय़ाल 202 -43
लकड्बग्घा 0 -5
कुल वन्य जीव 11552- 12312

मगरमच्छ, तेंदुए, बंदर, कछुए आदि की संख्या में इजाफा हो रहा है। प्रकृति आवास में दखल, शिकार में कमी होने के कारण संख्या में इजाफा देखा जा रहा है। गंगा डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि हमारे लिए बढ़ी उपलब्धि है।
- राजेश कुमार, डीएफओ