बनारस में बंदूक दुकानवाले हैं परेशान, नहीं मिल रहे मालिकान

शहर में 5000 बंदूकें ऐसी हैं, जिनका सालों से कोई वारिस नहीं है। कई बंदूकों के मालिक तो अब जिंदा भी नहीं है। इन बंदूकों का क्या करना है, इसका जवाब कोई नहीं दे पा रहा है। बंदूक दुकानदार बार-बार डीएम को पत्र लिख रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अब आलम यह है कि पंचायत चुनाव के कारण लोग अपने शस्त्र जमा करने दुकानदार के पास पहुंच रहे हैं, तो वे हाथ जोड़ ले रहे हैं। दुकानदारों का कहना है कि लावारिस बंदूकों की वजह से उनके पास जगह ही नहीं है, वे नई बंदूकें कहां से जमा करें?

पंचायत चुनाव ने बढ़ा दिया तनाव

पंचायत चुनाव को देख प्रशासन और पुलिस का सख्त आदेश है कि लोग अपने शस्त्र बंदूक दुकानों में जमा कर दें। ऐसे में बंदूक दुकानदार छोटे शस्त्रों को ले रहे हैं, लेकिन बंदूकों को लेने से मना कर दे रहे हैं। वरुणा पुल के पास स्थित एक दुकानदार ने बताया कि हर दिन दो-चार बंदूक जमा करने आ रहे हैं, लेकिन हमारे यहां जगह ही नहीं है। पुरानी इतनी लावारिस बंदूकें हैं कि अब नयी कहां रखें।

1952 की बंदूक तक है जमा

एक नामी बंदूक दुकानदार ने बताया कि सन 1952 तक की बंदूक दुकान में जमा है। आज तक इसको लेने कोई नहीं आया। ऐसी कई बंदूकें हैं, जो 30-40 साल पुरानी हैं। हाल ही में असलहा बाबू ने ऐसी पुरानी बंदूकों का रिकॉर्ड मांगा था। इसमें सामने आया कि बनारस शहर में लगभग 5000 ऐसी बंदूकें हैं, जिनका कोई मालिक नहीं है। अब इनका रखरखाव ही दुकानदारों के लिये खर्चीला होता जा रहा है, लेकिन प्रशासन इन्हें नष्ट करने के लिए कोई निर्णय ही नहीं ले रहा है।

यह है लावारिस बंदूकों के पीछे की कहानी

जब शहर के चार बड़े बंदूक दुकानदारों से यह पता किया गया कि आखिर ये बंदूकें आई कहां से तो अलग ही कहानी सामने आई। दुकानदारों ने जो बताया, वह चौंकाने वाला है-

- चुनाव के समय लोग अपनी बंदूक जमा करने आये। इसके बाद वे लेने ही नहीं आए। कुछ दिनों बाद पता चला कि उनकी मृत्यु हो गई। परिवार ने भी बंदूक लेने से इंकार कर दिया।

- अधिकतर बंदूकें ऐसी हैं, जिसमें बंदूक मालिक की मौत होने के बाद उनका वारिस अपने नाम लाइसेंस नहीं दर्ज करवा पाया।

- कुछ ऐसी बंदूकें भी हैं जिनके वारिस ने लाइसेंस अपने नाम करवा लिया, लेकिन बंदूक लेने नहीं आए।

- कुछ ऐसी बंदूकें भी हैं, जिनके मालिक ने पुरानी वापस कर नई खरीद ली।

मालखाना भी भरा हुआ है।

नियमानुसार अगर किसी दुकान पर दो साल तक बंदूक लेने कोई नहीं आता है तो इसे संबंधित थाने के मालखाने में जमा कर देना चाहिए। एक दुकानदार ने बताया कि पुलिस से उन्होंने इस संबंध में कई बार बात की, लेकिन हर बार पुलिस के अधिकारियों का कहना था कि मालखाने में जगह नहीं है।

सिरदर्द बन गई पुरानी बंदूकें

दुकानदारों का कहना है कि लावारिस बंदूकें सिरदर्द बन गई हैं। हर चार महीने में जिला प्रशासन को रिपोर्ट देनी होती है। इसके अलावा कभी कोई अधिकारी ऑडिट करने आ जाता है, तो सभी को निकालकर दिखाना होता है।

दुकानदारों से पुरानी बंदूकों की अंतिम सूची मांगी गई है। शासन को रिपोर्ट भेजकर इसे जल्द ही राइट ऑफ करवाया जाएगा।

कौशलराज शर्मा, डीएम, वाराणसी