वाराणसी (ब्यूरो)एल्जाइमर रोग अनेक प्रकार के डिमेंशिया में से एक मुख्य प्रकार हैइस बीमारी की खोज अलोइस अल्जाइमर ने वर्ष 1906 में किया थाइस समय डिमेंशिया को अंग्रेजी में मेजर कॉग्निटिव इम्पेरेमेंट और हिंदी में मनोभ्रंश भी कहा जाता हैइस बीमारी की जागरूकता के लिए हर साल 21 सितम्बर को विश्व एल्जाइमर डिमेंशिया दिवस मनाया जाता है.

वृद्धावस्था में होती बीमारी

वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉशोभित जैन के अनुसार यह बीमारी वृद्ध अवस्था में ज्यादा होती है। 65 वर्ष के ऊपर हर 20 में से एक व्यक्ति में पायी जाती है। 80 वर्ष के ऊपर हर पांच में से एक व्यक्ति को यह बीमारी होती है.

मस्तिष्क को करते नष्ट

डॉजैन के अनुसार एल्जाइमर रोग में मष्तिष्क में कुछ प्रोटीन इकठा होते जाते हैं जिसे प्लेक और टैंगल के नाम से जाना जाता हैयह प्रोटीन धीमे-धीमे मष्तिष्क को नष्ट करते हैंइस कारण से मष्तिष्क छोटा होते हुए सिकुड़ जाता हैमष्तिष्क में सिकुडऩ के कारण मरीज की यादाश्त, सोचने और समझने की शक्ति कम हो जाती है और वह पहले की तरह काम नहीं कर पाता है.

यह जेनेटिक बीमारी

डॉजैन ने बताया कि एल्जाइमर रोग एक जेनेटिक बीमारी है और यह परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती हैकुछ शारीरिक बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर, डाईबेटिस, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल, विटामिन बी और डी की कमी, थाइरोइड की परेशानी, इन्फेक्शन शराब या धूम्रपान के सेवन से यह तेजी से बढ़ती है.

क्या हैं बीमारी के लक्षण

इसके लक्षण यादाश्त में कमी, नयी चीज या काम सीखने में कठिनाई, काम समझने में परेशानी, गलत निर्णय लेना, अपने में खोये रहना, मिलना-जुलना बंद कर देना, पुराने कार्यो को करना नहीं आना, परिवार के सदस्यों का नाम याद नहीं आना, लोगों को पहचान नहीं पाना, साधारण जोड़ या घटाना नहीं कर पाना, कार्यो को व्यवस्थित ढंग से या योजना बना कर नहीं कर पाना, बिना कारण ही बौखला जाना, चिल्लाना, रोना आदि हैं.

हो जाते दूसरों पर निर्भर

इस बीमारी में पहले घर के बाहर के कार्य करने में कठिनाई आती हैफिर धीरे-धीरे जैसे बीमारी बढ़ती है मरीज को घर के रोजाना के कार्यों में भी दुसरों पर निर्भर होना पड़ता है.

अभी कोई इलाज नहीं

डॉजैन के अनुसार इस बिमारी का अभी तक कोई जड़ से ठीक करने का इलाज नहीं हैवैज्ञानिक अब भी इस बीमारी के इलाज की खोज कर रहे हैंइसके इलाज के दौरान डाक्टर बीमारी को तेजी से बढ़ाने वाले कारणों को खोजने के लिए कई जांच कराते हैं और बीमारी की गति को धीमा करने वाली कुछ दवाईयां चलाते हैं.

कैसे करें मरीज की देखभाल

इस बीमारी में मरीज को नयी चीज सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिएजैसे ड्राइंग बनाना, म्यूजिक सीखना, डांस सीखना, छोटे बच्चों की किताबों का पुन: अध्यन करना, पजल, सुडोकू, स्क्रैबल खेलनाअगर मरीज कोई काम करने में असमर्थ हो तो बार-बार सीखने की कोशिश करेमरीज के असफल होने पर गुस्सा नहीं करेंमरीज की दिनचर्या का ध्यान रखेंरोज नियमित व्यायाम, योग और संतुलित आहार का ध्यान रखेंउन्हें अकेला नहीं छोड़ेंवे जिस कमरे में रहते हों उसमें ज्यादा सामान नहीं रखेंसिर्फ एक बिस्तर, कुर्सी, टेबल, आलमारी, घड़ी, कैलेंडर और आईना रखेंआलमारी में भी बस रोज उपयोग होने वाली वस्तुओं को व्यवस्थित ढंग से रखेंअगर मरीज घर का रास्ता भूल जाता है तो उसके पास पहचान पत्र या उनकी कलाई में घर का फोन नंबर का बैंड पहना दें.