-बनारसी साड़ी बनाने वाले बुनकर दूसरे काम करने को हो रहे मजबूर

-कोई बेच रहा सब्जी तो किसी ने लगा ली आटा चक्की

केस-1

गौरीगंज के मोहम्मद शादिक का पुश्तैनी काम साड़ी बुनाई। इनका परिवार यह काम पिछले 80 साल से कर रहा है। कोरोना की वजह से लॉकडाउन हुई तो काम बंद हो गया जो अभी तक नहीं शुरू हो सका। परिवार के सामने रोटी का संकट देखकर घर में रखे गहने बेच दिया आटा चक्की लगा ली।

केस-2

लगभग 50 साल से बनारसी साड़ी की बुनाई करने वाले अब्दुल अली वाहिद का लूम पिछले छह महीने से बंद है। पहले कोरोना अब हड़ताल के चलते काम नहीं हो रहा है। डेली कमाने-खाने वाले परिवार के आगे रोटी की संकट आ गया तो पुश्तैनी काम छोड़कर सब्जी ही बचने लगे हैं।

केस-3

साड़ी बुनाई करने वाले बजरडीहा निवासी अब्दुल रजाक का लूम 6 महीने से बंद पड़ा है। घर की छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी रुपयों की किल्लत होने लगी तो घर में ही चाय की दुकान खोल ली। पहले बुनकरी से हर रोज 100-150 रुपये मिल जाते थे। अब जो भी मिल जाए उसी से घर चलाना पड़ रहा है।

ये बुनकरों की पीड़ा है दुनियाभर में मशहूर बनारसी साड़ी बनाते हैं। महीनों से काम नहीं मिलने की वजह से उनकी खुद की पहचान खतरे में पड़ गई है। ऐसे एक दो नहीं हजारों बुनकर हैं जो मुफलिसी के दौर से गुजर रहे हैं। पिछले सात माह से काम बंद होने की वजह से मजबूर होकर अपने पुस्तैनी धंधे को छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। जो हाथ कभी करघे के ताने-बाने से मशहूर बनारसी साडि़यों की बुनाई करते थे, आज वे कुछ और काम करने रहे हैं।

नहीं मिल रहा काम

कोरोना महामारी से बनारसी साड़ी का करोबार भी नहीं बच पाया। इस कुटीर उद्योग से जुड़े लगभग दो लाख बुनकर और उनके परिवार संकट में हैं। यह पूरा कारोबार कब शुरू होगा, इसको लेकर अभी संशय की स्थिति बनी हुई है। क्या बुजुर्ग, क्या बच्चे और क्या महिलाएं घर का हर सदस्य बुनाई के काम के लिए व्यापारियों के पास चक्कर काट रहे है। मगर काम नहीं मिल रहा। बनारसी साड़ी का सालाना कारोबार पांच अरब रुपए से ज्यादा का है। पहले लॉकडाउन और अब हड़ताल की वजह से बनारस के बुनकरों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गयी है।

पिछले कई महीनों से बनारस में बुनकरी का काम प्रभावित है। सरकार जिस तरह से किसानों की मदद कर रही है, उसी तरह बुनकरों की भी मदद करे, क्योंकि किसान अन्न देता है, तो बुनकर तन ढंकने के लिए कपड़ा देता है। आज हमारे पास परिवार का पेट भरने के लिए पैसे नहंी है।

रौशन अहमद, बुनकर

जिन लूम के जरिए हमें और हमारे परिवार को रोटी मिलती उनकी हालत कब्रिस्तान जैसी हो गयी है। जिन जगहों पर कभी 10 से 20 बुनकर एक साथ काम करते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। कमाई का कोई जरिया न दिखा तो उसी एक कोने में पत्‍‌नी के गहने बेचकर आटा चक्की लगा ली।

मो। शादिक, बुनकर

हमारी किसी पीढ़ी ने भी आज तक ऐसी स्थिति नहीं देखी जो हम देख रहे है। कुछ बुनकर साथी ठेले पर सब्जी बेचने को मजबूर हो रहे हैं। लेकिन उनके पास उसके लिए भी पैसे नहंी है। सात माह से घर में ही बैठे है। बस किसी तरह से उधार पर जिंदगी चल रही है।

शमीम अहमद,

यहां है बुनकरों की बस्तियां

सरैया, जलालीपुरा, अमरपुर बटलोहिया, कोनिया, शक्करतालाब, नक्खीघाट, जैतपुरा, अलईपुरा, बड़ी बाजार, पीलीकोठी, छित्तनपुरा, काजीसादुल्लापुरा, जमालुद्दीनपुरा, कटेहर, नवाबगंज, कमलगड़हा, पुरानापुल, बलुआबीर, नाटीईमली में हजारों की संख्या में बुनकर हैंडलूम और पावरलूम पर करते हैं।

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हजार करोड़ सालाना बनारसी साड़ी का कारोबार

7

महीने से बंद है बुनकरी का काम

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लाख परिवार जुड़े हैं बनारसी साड़ी कारोबार से

100

करोड़ का कारोबार हर रोज प्रभावित हो रहा हड़ताल के चलते