-कोड और लोगो बताएगा कि साड़ी असली या नकली

-आईआईटी बीएचयू ने डेवलप की टेक्निक

- साडि़यों की डुप्लीकेसी पर लगेगी रोक

-अंगिका सहकारी समिति द्वारा साड़ी का किया गया निर्माण

आईआईटी-बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की रिसर्च टीम ने हथकरघा साड़ी में एक नई टेक्निक डेवलप की है। जिसमें साड़ी का विवरण युक्त बुना हुआ क्यूआर कोड, हथकरघा का लोगो, रेशम चिह्न, और बनारस भौगोलिक संकेत (जीआई) लोगो इनबिल्ट रहेगा। जिससे साडि़यों की डुप्लीकेसी को रोका जा सकेगा। आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं के अनुसार साड़ी में इनबिल्ट वीविंग लोगो हस्तनिíमत हथकरघा साड़ी की शुद्धता को प्रमाणित करेगा। यह ग्राहकों को सही हथकरघा साड़ी चुनने व हथकरघा और उसके उत्पादों के दुरुपयोग को रोकने के लिए विश्वास दिलाएगा। कोई चाहकर भी इससे छेड़छाड़ नहीं कर पाएगा।

साड़ी पर बुना जाएगा कोड

मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग प्रो। डॉ। प्रभाष भारद्वाज ने बताया कि वाराणसी हथकरघा उद्योग को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। वर्तमान समय में अधिकांश ग्राहकों के पास मोबाइल फोन है। डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत के साथ, लोगों को तकनीक की अधिक आदत हो रही है। अध्ययन के अनुसार इस उद्योग में आईटी आधारित अनुप्रयोगों को शामिल करने की बहुत संभावनाएं हैं। वर्तमान में हमारी शोध टीम ने क्यूआर कोड तकनीक और साड़ी पर लोगो बुनाई की तकनीक तैयार की है। साड़ी निर्माता अपनी फर्म और निर्माण के विवरण के साथ साड़ी पर क्यूआर कोड बुन सकता है। जब भी ग्राहक किसी उत्पाद के बारे में जानना चाहता है तो उसे अपने मोबाइल में स्कैनर का उपयोग करना होता है। वह क्यूआर कोड में सभी विवरण दर्ज करवाएगा, जैसे निर्माता का स्थान, निर्माण की तारीख आदि। इन उपायों से ग्राहकों में विश्वास पैदा होगा और बिक्री में वृद्धि होगी।

डुप्लीकेसी को रोकने में होगा सफल

बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर एम कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बनारस हैंडलूम उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें मार्केटिंग प्रमुख है। उनके अध्ययन के अनुसार अधिकांश ग्राहकों को हथकरघा और पावरलूम साड़ी के बीच अंतर के बारे में जानकारी नहीं है। हथकरघा चिह्न और जीआई चिह्न के बारे में केवल सीमित संख्या में ही ग्राहक जानते हैं। उनके अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कस्टमर इस बात से अनजान हैं कि विक्रेता साडि़यों पर असली हैंडलूम मार्क प्रदान कर रहे हैं या उत्पादों के साथ डुप्लिकेट हैंडलूम चिह्न दे रहे। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए रिसर्च स्कॉलर एम। कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने साडि़यों पर ही लोगो और क्यूआर कोड की तकनीक का इजाद की है।

पैच पर किया जा रहा डिजाइन

उन्होंने बताया कि पूरी तरह से डिजाइन की गई साड़ी में 6.50 मीटर लंबाई होती है जिसमें एक मीटर ब्लाउज के टुकड़े शामिल होते हैं। साड़ी का हिस्सा पूरा होने के बाद ब्लाउज के बुनने से पहले सादे कपड़े का एक हिस्सा 6-7 इंच का होता है। इस पैच में क्यूआर कोड और अन्य तीन लॉग डिजाइन किए गए हैं। इन लॉग डिजाइनों को जगह-जगह लगाने से कपड़े की मजबूती और खूबसूरती कम नहीं होगी और साड़ी का लुक बरकरार रहेगा।

पहली बार किया तकनीकि का इस्तेमाल

अंगिका सहकारी समिति, वाराणसी के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा और डिजाइनर अंगिका ने पहली बार इस क्यूआर कोड की तकनीक को साडि़यों में लगाना शुरू किया है। उन्होंने कहा कि जीआई चिह्नों और हथकरघा चिह्नों के समुचित उपयोग के अभाव में ग्राहक हथकरघा पर बुनी साडि़यों और हैंडलूम से बनी साडि़यों में अंतर नहीं कर पाता। इसलिए, हम अपनी साडि़यों में इस क्यूआर कोड और हैंडलूम मार्क लॉग को इनबिल्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। यह हमारे स्थानीय और विदेशी ग्राहकों को हथकरघा उत्पाद और पावरलूम उत्पादों के बीच अंतर करने में मदद करेगा। टीम ने इनबिल्ट क्यूआर कोड और हथकरघा चिह्न लोगो के साथ सफलतापूर्वक एक साड़ी बनाई है।