VARANASI

तुलसीघाट पर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी गुरुवार शाम को सैकड़ों साल पुरानी परम्परा 'नागनथैया' लीला फिर जीवंत हो उठी। काशी में उत्तर वाहिनी गंगा गुरुवार को यमुना में तब्दील हो गई थी। यमुना के तट पर श्रीकृष्ण सखाओं के साथ कंदुक क्रीड़ा में मग्न थे। खेलते-खेलते गेंद यमुना में समा गई। प्रभु श्रीकृष्ण ने कदंब की डाल से यमुना रूपी गंगा में छलांग लगाई तो तुलसी घाट पर लीला देख रहे श्रद्धालुओं की सांसें मानों थम सी गईं। इस दौरान कुछ क्षण तक लोग आश्चर्य से लहरों को निहारते रहे। सहसा नटवर नागर कालिया नाग के फन पर बंसी बजाते हुए नदी के बीचों-बीच प्रकट हुए हर तरफ जय श्रीकृष्ण, हर-हर महादेव और डमरूओं की निनाद से गुंजायमान हो उठा।

यह दृश्य था गुरुवार को 494 साल पुरानी श्रीकृष्ण लीला नागनथैया के दौरान। भगवान ने एक बार फिर से प्रदूषण के प्रतीक कालिया के फनों को नाथ दिया। प्रदूषण रूपी फुंफकार से यमुना के प्रवाह और गोकुल-वृंदावन की आबोहवा में जहर घोल रहे कालिया का दर्प भंगकर भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिया।