वाराणसी (ब्यूरो)। नगर आयुक्त प्रणय सिंह बताते हैं कि कचरे से कोयला बनाने का कार्य विश्व में अब तक कहीं नहीं हुआ है। यह पहला अवसर होगा जब कचरे से बिजली बनाने का कार्य होगा। इसके लिए दादरी में एनटीपीसी ने प्रयोग कर लिया है, जिसे अब धरातल पर उतारने की तैयारी हो रही है। प्लांट निर्माण के लिए नगर निगम ने रमना में 25 एकड़ जमीन चिन्हित कर दी है। 20 एकड़ में प्लांट निर्माण होगा तो पांच एकड़ में कोयला निर्माण के दौरान निकले अवशेष को निस्तारित करने के लिए वैज्ञानिक विधि से व्यवस्था की जाएगी। एक्सईएन अजय राम बताते हैं कि बनारस में प्लांट की उपयोगिता सिद्ध हुई तो इंदौर में भी प्लांट निर्माण होगा।

600 टन कचरे से 200 टन कोयला
दादरी में हुए अध्ययन के अनुसार 600 टन कचरे से 200 टन कोयला बनेगा। प्लांट निर्माण कार्य आने वाले 25 साल को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है। नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार प्रतिदिन शहर से छह सौ मीट्रिक टन कचरा निकलता है। शहर विस्तार के बाद करीब आठ सौ मीट्रिक टन कचरा निकासी का अनुमान लगाया जा रहा है। इसलिए प्लांट की क्षमता आठ सौ मीट्रिक टन से अधिक कचरा प्रसंस्करण करने की क्षमता होगी।

एक किलो कोयला, छह रुपये खर्च
अब तक के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि एक किलो कोयला बनाने में छह रुपये खर्च आएंगे। वहीं, कचरे से बिजली बनाने के लिए देश में जहां भी प्लांट लगा है, वहां पर प्रति यूनिट 11 से 12 रुपये खर्च आता है। बाजार में प्रति यूनिट बिजली की बिक्री अधिकतम आठ रुपये होती है। ऐसे में कचरे से बिजली बनाने का प्लांट घाटे का सौदा साबित हो रहा है। इसे देखते हुए दादारी में एनटीपीसी ने कचरे से कोयला बनाने का प्रयोग किया। उसके बाद बनारस में इसे स्थापित करने का निर्णय लेते हुए नगर निगम से करार किया।

180 करोड़ होंगे प्लांट निर्माण पर खर्च
इस प्लांट के निर्माण में 180 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें निर्माण करने वाली कंपनी दो साल तक इस धनराशि में संचालन करेगी। इसके बाद वाराणसी नगर निगम को प्लांट सुपुर्द कर दिया जाएगा। करीब एक साल में प्लांट निर्माण कर लिया जाएगा।

ईको फ्रेंडली होगा प्लांट
योजना को अलग-अलग उप-विधाओं के संयोजन, परीक्षण, रखरखाव और प्रतिस्थापन के लिए माड्यूलर फैशन में डिजाइन किया जाएगा। यह प्लांट गंधहीन होगा। लागू उत्सर्जन मानदंडों के अनुरूप होगा। शोर सीमा मानक के अनुरूप प्लांट स्थापना की जाएगी। संयंत्र एक सुंदर वातावरण से घिरा होगा। साथ ही, यह हानिकारक पदार्थों के निर्वहन को रोकने के लिए कचरा लीचेट उपचार प्रणाली (जमीन में गड्ढा खोदकर निस्तारण करने की विधि) से गुजरेगा। इसके अलावा, मानव जोखिम सीमित रहेगा, क्योंकि इसके संचालन और रखरखाव में स्थापित मशीनें स्वचालित होंगी।