-बीएचयू में प्रस्तुत हुआ कार्यक्रम, चौमासा, प्रकृति और मानव के संबंधों को बेहतर करने की एक सामाजिक कला

- विधानसभा स्पीकर हृदय नारायण और सत्य साई के मधुसूदन ने किया संबोधित

बीएचयू स्थित भारत अध्ययन केंद्र में मंगलवार को चौमासा का शुभारंभ हुआ। कन्नड़ और भोजपुरी संगीत की प्रस्तुतियों में गंगा-कावेरी संगम का एहसास हुआ। बीएचयू में चौमासा पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी की शुरूआत मधुर लोकगीतों और आध्यात्मिक संबोधनों से हुई। लोक कवि हरिराम द्विवेदी ने चौमासा का गायन प्रस्तुत कर मन मोह लिया। भारत की मूल परंपरा को समझना है तो हम इसे चातुर्मास (सावन से लेकर कार्तिक तक) द्वारा सरलता से समझ सकते हैं। इन पर बने गीतों के माध्यम से किसी भी क्षेत्र की विशेषता का पता लगा सकते हैं। वहीं भारतीय नारी को चातुर्मास का सर्वश्रेष्ठ संवाहक बताया गया। शताब्दी पीठ की आचार्य प्रो। मालिनी अवस्थी द्वारा संगोष्ठी की विषय स्थापना के बाद कर्नाटक से आनलाइन जुड़े मुख्य अतिथि श्रीसत्य साई यूनिवर्सिटी फार ह्यूमन एक्सीलेंस, कलबुर्गी के संस्थापक मधुसूदन साई ने संबोधन दिया। कहा कि जिस प्रकार से चीनी-पानी घुलकर मिठास उत्पन्न करती हैं ठीक उसी प्रकार से चौमासा की गतिविधियां हमें आध्यात्मिक बनाती हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय संस्कृति ब्रह्मांडीय संविधान से चलता है। इसमें प्रकृति के सारे तत्व नियमबद्ध हैं।

धरती को चौमासा से ही संरक्षित कर सकते हैं

भारत अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ आचार्य प्रो। कमलेश दत्त त्रिपाठी ने कहा कि आधुनिक दृष्टि प्रकृति के दोहन पर निर्भर है और धरती को चौमासा से ही संरक्षित कर सकते हैं। प्रो। फूलचंद जैन ने कहा कि जैनी अ¨हसा के सिद्धांत का व्यावहारिक प्रतिफलन चौमासा द्वारा होता है। केंद्र के चेयर प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने पौराणिक सृष्टि नियति का हवाला देते हुए चौमासा के आध्यात्मिक पक्ष की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने इसे लोक मंगल का उत्सव कहा, जबकि प्रो। युगल किशोर मिश्र ने चातुर्मास के वैदिक सिद्धांतों और इस दौरान होने वाले विभिन्न यज्ञों की चर्चा की। प्रो। विजय शुक्ल ने वेदों में बताई विधियों का उल्लेख किया। प्रो। सदानंद शाही ने कहा कि चौमासा किसानों के लिए फुर्सत तथा सृजन का कार्य है। प्राचीन काल में चौमासा के दौरान वर्षा ऋतु में विश्राम करने की सलाह दी जाती थी। आज आधुनिक युग में हमें प्रकृति से तालमेल करने की जरूरत है। स्वागत समन्वयक प्रो। सदाशिव कुमार द्विवेदी और धन्यवाद ज्ञापन प्रो। राकेश कुमार उपाध्याय ने किया। संचालन डा। अमित कुमार पांडेय ने किया। इस दौरान डा। प्रकाश उदय और राहुल चौधरी समेत दो दर्जन से अधिक लोग मौजूद थे।