वाराणसी (ब्यूरो)जनपद में सरकार की योजनाएं घर-घर पहुंचाने के लिए विभाग लगातार प्रयासरत हैइसका ताजा उदाहरण है रोली और अक्षतउम्र क्रमश: 26 24 वर्ष होने के बावजूद इनका चलना-फिरना तो दूर खुद से करवट भी नहीं बदल सकते हैंबिस्तर पर भी खिसकने के लिए उन्हें गोद का सहारा लेना पड़ता हैउनकी परिस्थितियों को देखते हुए डीएम कौशल राज शर्मा व सीएमओ के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग की टीम जन्मजात दिव्यांगों के घर पहुंचीजांच पड़ताल के बाद में रोली व अक्षत का दिव्यांगता का प्रमाणपत्र घर पर ही बनायासीएमओ डासंदीप चौधरी ने बताया कि लक्सा रोड निवासी रोहित कुमार रस्तोगी की 26 वर्षीय पुत्री रोली व 24 वर्षीय पुत्र अक्षत स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफीÓ (एसएमए) से पीडि़त होने के कारण जन्म से ही दिव्यांग है

छोटे बच्चे ज्यादा होते प्रभावित

यह एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जो सबसे अधिक शिशुओं और छोटे बच्चों को प्रभावित करती हैएसएमए के शिकार बच्चे अपनी मांसपेशियों का उपयोग सही प्रकार से नहीं कर पाते हैं, क्योंकि यह बीमारी उनकी रीढ़ की हड्डी में नर्व सेल्स को खराब कर देती हैइस कारण मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैंएसएमए में बच्चों की मांसपेशियां पूरी तरह कमजोर और सिकुड़ जाती हैंइसके चलते स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि पीडि़त बिना सहारे के बैठ और चल नहीं पाता है

बिना सहारा बैठ नहीं सकते

बिना सहारे के वह उठ-बैठ भी नहीं सकतेउनकी इस गंभीर समस्या को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की टीम उनके घर पहुंचीइस टीम में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हाथी बाजार के हड्डी रोग विशेषज्ञ डादेवेन्द्र कुमार व दिव्यांग मेडिकल बोर्ड के सहयोगी अमलेंदु भूषण शामिल थेइस टीम ने आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा कर बीते दिनों रोली व अक्षत के दिव्यांगता का प्रमाणपत्र बनाया.

मांगी थी मदद

रोली और अक्षत के पिता रोहित रस्तोगी ने बताया कि जन्म से ही दिव्यांग दोनों बच्चों का दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाने के लिए उन्हें अस्पताल ले जाना होताइस संबंध में उन्होंने सीएमओ से मुलाकात कर मदद मांगी थीसीएमओ ने आश्वासन दिया था कि प्रमाणपत्र बनवाने के लिए उन्हें परेशान नहीं होना होगाइस अनुरोध के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम उनके घर पहुंची और दोनों बच्चों के दिव्यांगता का प्रमाणपत्र बना दियाउन्होंने इस सराहनीय कार्य के लिए डीएम और सीएमओ का आभार व्यक्त किया है.