- बदहाल है कबीर प्राकट्य स्थली लहरतारा तालाब, लोगों ने सुनाए सुनहरे दिनों की बातें

- 15 साल से दिन-ब-दिन लहरतारा तालाब की दशा बिगड़ती गई

कबीर प्राकट्य स्थली, लहरतारा तालाब की दशा देखकर नई बस्ती ही नहीं, बल्कि देश-विदेश के अन्य हिस्सों में मौजूद अनुयायी भी काफी मर्माहत हैं। जिस तालाब में लोगों ने तैरना सीखा, स्नान कर जवान हुए, गला भी तर किया और प्रचंड गर्मी में शीतलता मिली, पच्चीस साल बाद वह तालाब नाला हो जाएगा, कूड़े के ढेर से पट जाएगा, यह किसी ने नहीं सोचा था। प्राकट्य स्थल के आसपास के रहने वाले लोगों ने बताया कि प्रशासन की उपेक्षा के चलते हर दिन हमने इस तालाब को मरते देखा है।

वरुणा नदी से भी कनेक्ट था तालाब

लहरतारा नई बस्ती के लोगों की मानें तो लहरतारा तालाब का कनेक्शन वरुणा नदी से भी जुड़ा था। वरुणा का पानी इस तालाब में आता था। यहां से आगे मांडवी तालाब में जाता था, जो मंडुवाडीह चौराहे से थाना रोड पर है। लोग बताते हैं कि बहुत ही रमणी और मनोहारी दृश्य होता था इस तालाब का। आसपास के लोगों का अक्सर यही पर जमावड़ा होता था और सामाजिक मुद्दों पर बातचीत भी होती थी।

लोगों ने बताई कुछ यूं व्यथा

जब मैं इस बस्ती में व्याह कर आई थी तो तालाब में पानी बहता था। बच्चे स्नान करते थे। मेरे परिवार के लोग भी इसी में स्नान करते थे। प्रधान बनने के बाद मैंने कई बार इसके जीर्णाेद्धार का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाई। इसकी दशा देखकर मैं काफी दुखी हूं।

-सुषमा देवी, प्रधान

पहले अधिकतर घरों में पानी का कनेक्शन नहीं होता था। इसी तालाब में स्नान कर हम जवान हुए। सुबह-शाम इसी तालाब पर बितता था। करीब 15 साल से दिन-ब-दिन लहरतारा तालाब की दशा बिगड़ती गई। हमने हर दिन इस तालाब को मरते देखा है।

-महेंद्र सरोज

इस तालाब का पौराणिक महत्व है। कबीर दास का प्राकट्य स्थल भी है। इसी तालाब में मैंने तैरना भी सीखा, लेकिन प्रशासन की उपेक्षा के चलते आज इस तालाब की दशा ऐसी हो गई है कि यहां से गुजरने का भी मन नहीं करता।

-श्याम दास

मेरा पूरा बचपन और जवानी इसी तालाब पर बिता। खेलकूद के दौरान प्यास लगने पर मैंने इसी तालाब से अपना गला भी तर किया, लेकिन आज इसकी तरफ देखता हूं तो मन आहत हो जाता है। हर दिन किसी चमत्कार का इंतजार करता हूं।

-रतन लाल

मैं करीब तीस साल से यहां आ रहा हूं। शुरुआत में पर्वित लहरतारा तालाब के पानी से आचमन करता था। इसी तालाब के किनारे संत रविदास-कबीर दास बैठकर सामाजिक ताना-बाना पर परिचर्चा करते थे। आज इसकी दशा देखकर व्यथित हूं।

-मांगे राम

इस पर्वित तालाब से प्रचंड गर्मी के दिनों में काफी शीतलता मिलती थी। हर साल मैं अपने पूरे परिवार के साथ इस पर्वित स्थल पर आता हूं। पिछले कई सालों से इस तालाब की दुर्दशा देखता हूं तो मन यही कहता है कि प्रशासन से इसका जवाब मांगू।

-रघबीर सिंह

छोटी क्लास में पढ़ता था तो किताब में लहरतारा तालाब के बारे में पढ़ा था। इसे देखने की इच्छा मन में होती थी। सोचा था कि यह स्थान काफी रमणी होगा। यहां बैठने से काफी सुकून मिलेगा, लेकिन तालाब की हालत ऐसी होगी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था। काशी में संतों के स्थान की इस तरह उपेक्षा सही नहीं है।

-बख्शीश राम

मैं हर साल यहां आता हूं। शुरुआत में पर्वित लहरतारा तालाब का पानी प्रसाद के रूप में ग्रहण करता था। जब से इसकी यह दशा हुई, तब से मैं जब भी यहां आता हूं तो इस परिसर में पानी ही नहीं पीता हूं। बस्ती के बाहर जाने के बाद जल ग्रहण करता हूं।

-तलहेडी रंगडान