वाराणसी (ब्यूरो)अगर आप उठते-बैठते, सोते-जागते सोशल मीडिया पर हर वक्त एक्टिव रहते हैं तो अब भी वक्त है सावधान हो जाएंक्योंकि ये लत आपको दिमागी तौर पर बीमार कर सकता हैयह रोग इतना भयानक है कि आप डिप्रेशन में भी जा सकते हैंक्योंकि बनारस में इस तरह के केसेस लगातार बढ़ रहे हैंमंडलीय अस्पताल में मोबाइल एडिक व सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों को इस लत से छुटकारा दिलाने और उनकी काउंसलिंग करने के लिए बनाए गए मन कक्ष विभाग में ऐसे कई केस आ चुके हैं जो डिप्रेशन का शिकार हो चुके हंैयहां इस तरह महीने में 40 से 50 ऐसे केस आ रहे हैं, जो तब तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप पर लगे रहते हैं, जब तक उनकी आंखे नहीं बंद होतीकाउंसलर रूची चौरसिया बताती हैं कि काउंसलिग के दौरान पता चल रहा है कि शुरुआत में लोग इंस्टाग्राम व रील्स कुछ समय के लिए देखते हैं, फिर धीरे-धीरे यह इन पर हावी होता गयाजब तक आंखे खुली हैं और मोबाइल की बैटरी खत्म नहीं होती तब तक ये इस पर लगे रहते हैंक्योंकि इनका दिमाग बीमार हो चुका रहता हैगंभीर मामलों में इन्हें मनोचिकित्सक के पास रेफर किया जा रहा है, जहां इनका प्रॉपर ट्रीटमेंट होता है.

बॉडी इमेज इश्यू से बढ़ी परेशानी

पिछले कुछ साल से सोशल मीडिया पर अच्छा दिखने और दिखाने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा हैखासकर लड़कियां और महिलाएं बॉडी इमेज इश्यू को लेकर ज्यादा संवेदनशील हैंअगर कोई उनकी सुंदरता या शरीरिक फिटनेस को लेेकर निगेटिव कमेंट करता है तो वे जल्दी डिप्रेशन में चली जाती हैंटाइम्स जर्नल की स्टडी में हर 4 में से 1 युवा लड़की ने बॉडी इमेज इश्यू को माना है.

बढ़ती उम्र की टीनएजर्स ज्यादा प्रभावित

एक्सपर्ट का मानना है कि कम उम्र की लड़कियां सोशल मीडिया का तेजी से शिकार हो रही हैंउनके एक अध्ययन के अनुसार जिन लड़कियों ने 11 से 13 साल की उम्र के बीच सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताया वह अन्य की अपेक्षा एक साल बाद अपनी लाइफ से कम संतुष्ट दिखींलड़कियों पर लड़कों की अपेक्षा ज्यादा असर देखा जा रहा हैमन कक्ष के काउंसलर की माने तो एक हालिया स्टडी में पाया गया है कि सिर्फ बनारस ही नहीं दुनियाभर में लड़कियां सोशल मीडिया पर लड़कों से कही ज्यादा एक्टिव हैंइसके चलते करीब 60 फीसदी लड़कियों को उत्पीडऩ झेलना पड़ता है और वे डिप्रेशन में रही हैंइसका इस्तेमाल करने वाली 58 फीसदी लड़कियां मान रही है कि उन्हें सोशल मीडिया छोड़ पाना मुश्किल लगता है.

रिसर्च में भी सामने आ चुके हैं तथ्य

2022 में प्रकाशित अलबामा विश्वविद्यालय के रिसर्च च्च्सोशल मीडिया के उपयोग, व्यक्त्वि संरचना और अवसाद के विकास के बीच संबंधच्च् में यह दावा किया गया है कि सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल यंगस्टर्स को डिप्रेशन का शिकार बना रहा हैयंग लड़के, लड़किया अच्छा दिखने और दिखाने के चक्कर में फेसबुक, इंस्टाग्राम पर ज्यादा सक्रिय हो रहे हैंऐसे यंगस्टर्स में 6 माह के भीतर अवसाद के लक्षण दिखने लगते हैंजर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसॉर्डर रिपोट्र्स में प्रकाशित शोधके मुताबिक सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहने वाले लोगों में कम एक्टिव लोगों की अपेक्षा 49 फीसदी अधिक डिप्रेशन पाया गयायह शोध में 18 से 30 वर्ष आयु के वयस्कों पर किया गया है

सोशल मीडिया पर किस तरह की कितनी पोस्ट

पोस्ट/वीडियो लड़कियां 13-14 साल लड़कियां 15-17 साल लड़के 13-14 साल लड़के 15-17 साल

उपलब्धियां 41 59 42 49

परिवारिक 46 57 28 40

संवेदनशील 34 44 25 31

डेटिंग लाइफ 13 33 18 19

निजी समस्याएं 11 17 14 11

धर्म-कर्म 10 17 5 8

आंकडे प्रतिशत में है

सोर्स - प्यू रिसर्च सेंटर

सोशल मीडिया पर हर वक्त एक्टिव रहने वाले यंगस्टर्स और टीनएजर्स को मानसिक रूप से बीमार कर रही हैनींद चक्र खराब होने से मेमोरी स्लिपिंग बढ़ रही हैसुंदर और फिट दिखने-दिखने के चलते युवतियों की सक्रियता जितनी तेजी से बढ़ी है, मानसिक अवसाद भी उतने ही बढ़े हैंऐसे लोगों की काउंसलिंग की जा रही हैगंभीर मामलों में लांग टर्म ट्रीटमंट चलता है

डॉआरपी कुशवाहा, मनोचिकित्सक, मंडलीय अस्पताल

आज के इस बिजी लाइफ में यंगस्टर्स सिर्फ मोबाइल में ही अपनी दुनिया खोज रहे हंैकाउंसलिंग के लिए आने वाले यंगस्टर्स जिस तरह से अपनी प्रॉब्लम शेयर करते हैं, इससे यह पता लग रहा है कि इसका असर पूरी तरह से इनके दिलों दिमाग पर हावी हो चुका हैसुंदर फोटो अपलोड करने के बाद यदि लाइक्स नहंी मिल रहे हैं तो वे डिप्रेशन में आ रहे हैं, इसमें लड़कियों की संख्या सर्वाधिक हैऐसे में सोशल मीडिया का उतना ही उपयोग उचित है जितना जरूरी हो.

रूची चौरसिया, काउंसलर, मन कक्ष विभाग, मंडलीय अस्पताल